झारखंड की उपराजधानी दुमका वैसे भी इस पिरदेश में एक अहम स्थान रखता है. इस सीट पर झामुमो का लंबे समय तक दबदबा रहा है. यह आरक्षित सीट है. यह सीट भी राजमहल की तरह ही अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीट रहा है. यहीं से झारखंड के वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन आते हैं.
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Lok Sabha Election 2024 Dumka Seat: झारखंड की उपराजधानी दुमका वैसे भी इस पिरदेश में एक अहम स्थान रखता है. इस सीट पर झामुमो का लंबे समय तक दबदबा रहा है. यह आरक्षित सीट है. यह सीट भी राजमहल की तरह ही अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीट रहा है. यहीं से झारखंड के वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन आते हैं. यह उनका गृह जिला है. इस लोकसभा क्षेत्र को झारखंड के तीन जिले जामताड़ा, देवघर और दुमका की विधानसभाओं को मिलाकर बनाया गया है.
इसके अंतर्गत दुमका की तीन, जामताड़ा के दो और देवघर की एक विधानसभा क्षेत्र आता है. 6 विधानसभा वाले इस लोकसभा सीट में शिकारीपाड़ा, नाला, जामताड़ा, दुमका, जामा और सारठ आता है. इस सीट पर 2019 के लोकसभा चुनाव में एक ऐसा कारनामा हुआ जिसने सबको हैरान कर दिया. इस सीट पर 9 बार से लगातार सांसद बन रहे कद्दावर झामुमो नेता, पार्टी के केंद्रीय अध्यक्ष व झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन को उनके राजनीति शिष्य सुनील सोरेन ने हरा दिया.
बता दें कि तीन बार से सुनील सोरेन और शिबू सोरेन आमने-सामने थे लेकिन 2014 के मोदी लहर में भी यह सीट शिबू सोरेन ने जीतकर दिखा दिया था कि उनके गढ़ में उनको परास्त करना मुमकिन नहीं है. इस सीट पर शिबू सोरेन ने 11 बार अपनी किस्मत को आजमाया है. अनुसूचित जनजाति सुरक्षित यह सीट झामुमो का गढ़ माना जाता है. हालांकि यहां से शिबू सोरेन को इससे पहले भाजपा के अभी प्रदेश अध्यक्ष बाबू लाल मरांडी भी एक बार शिकस्त दे चुके हैं.
इस लोकसभा सीट की 93 प्रतिशत आबादी गांवों में निवास करती है. यहां के वोटरों की बात करें तो इसमें से 40 प्रतिशत आदिवासी, 12 प्रतिशत मुस्लिम वोटर हैं. बता दें कि यहां से 1980 मे शिबू सोरेन को पहली बार जीत हासिल हुई थी. 1984 में कांग्रेस और 1998 में भाजपा के बाबू लाल मरांडी को छोड़ दें तो शिबू सोरेन को यहां कोई हरा नहीं पाया. हालांकि उनके विजय रथ को 2019 में उनके शिष्य सुनील सोरेन ने रोक दिया. इस सीट पर 2019 के चुनाव के दौरान मंच से कार्यकर्ताओं को शिबू सोरेन ने इशारों मे कह दिया था कि यह चुनाव उनका अंतिम चुनाव है. ऐसे में अब 2024 में देखना होगा कि आखिर अपने गढ़ को एक बार फिर हासिल करने के लिए झामुमो किस नेता को यहां उतारती है और भाजपा क्या एक बार फिर से गुरुजी के शिष्य सुनील सोरेन पर भरोसा करके उन्हें यहां का टिकट देती है.