जेडीयू का हाल जयललिता की अन्नाद्रमुक जैसा न हो जाए, इसलिए बेटे को विरासत सौंप सकते हैं CM नीतीश कुमार
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जेडीयू का हाल जयललिता की अन्नाद्रमुक जैसा न हो जाए, इसलिए बेटे को विरासत सौंप सकते हैं CM नीतीश कुमार

Bihar Politics: कोई भी नेता अपनी पार्टी को एआईएडीएमके जैसी स्थिति में छोड़कर नहीं जाना चाहेगा. किसी भी संगठन को नेतृत्व की जरूरत होती है और एक अच्छे नेता की खासियत है कि वह समय रहते दूसरे नंबर की लीडरशिप विकसित करे. देखना यह है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ऐसा कर पाते हैं या नहीं. 

JDU का हाल AIADMK जैसा न हो जाए, इसलिए बेटे को विरासत सौंप सकते हैं CM नीतीश

Bihar Politics: तमिलनाडु की दो बड़ी पार्टियों में से एक अन्नाद्रमुक का बुरा समय चल रहा है. बुरा समय इसलिए भी चल रहा है, क्योंकि जयललिता ने खुद के रहते पार्टी में दूसरे नंबर की लीडरशिप विकसित नहीं होने दी और उनकी अचानक मौत के बाद पार्टी में एक तरह से वैक्यूम क्रिएट हो गया. अन्नाद्रमुक लगातार इसका नुकसान झेल रही है और द्रमुक इसका माइलेज उठा रहा है. बिहार में जेडीयू का हाल अन्नाद्रमुक की तरह न हो जाए, इसलिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) अपने बेटे निशांत कुमार को राजनीति में लांच कर सकते हैं. आज की बात करें तो जेडीयू का वहीं हाल है, जैसा कि कभी अन्नाद्रमुक का होता था. 

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जयललिता सर्वेसर्वा थीं लेकिन दूसरे नंबर की लीडरशिप सर्वमान्य नहीं थी. जेडीयू में भी नीतीश कुमार सर्वेसर्वा हैं पर दूसरे नंबर के नेताओं के अपने अपने धड़े हैं. नीतीश कुमार के रिटायर होने की स्थिति में दूसरे नंबर के नेताओं के ​बीच वर्चस्व की लड़ाई छिड़ सकती है, जैसा कि अन्नाद्रमुक में हुआ. पन्नीरसेल्वम और पलानीसामी के धड़ों के अलावा शशिकला के गुट ने अन्नाद्रमुक को कई पावर सेंटर में खड़ा कर दिया. नतीजा यह है कि द्रमुक के नेता एमके स्टालिन एक के बाद एक लगातार कई चुनाव जीतते आ रहे हैं.

अगर निशांत कुमार जेडीयू में शामिल होकर नीतीश कुमार की विरासत को संभाल लेते हैं तो पार्टी भविष्य में भी एकजुट रह सकती है. स​ब जानते हैं कि निशांत कुमार का राजनीति में मन नहीं लगता तो यह भी जानना जरूरी है कि राजीव गांधी, राहुल गांधी, उद्धव ठाकरे, नवीन पटनायक, चौधरी अजीत सिंह को भी राजनीति नहीं भाती थी. इन लोगों ने बेमन से राजनीति ज्वाइन किया, लेकिन इनके चलते ही इनकी पार्टियों का वजूद बचा हुआ है. यह कह सकते हैं कि कम से कम इन नेताओं ने पार्टी बचाने का काम तो किया ही है.

तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक की हालत से सबक लेकर बसपा सुप्रीमो मायावती हों या फिर टीएमसी की ममता बनर्जी, अपने भतीजों को पार्टी की कमान सौंपने की दिशा में आगे बढ़ चुकी है. राष्ट्रीय स्तर पर सोनिया गांधी ने कांग्रेस को पूरी तरह राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के हवाले कर ही दिया है. यह माना जाता है कि अगर पिछले 2 दशक में राहुल गांधी पार्टी के नेता के रूप में नहीं उभरते तो कांग्रेस अब तक पता नहीं किस स्थिति में होती.

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जनता दल आपको याद होगा. इसी पार्टी के नेता के रूप में पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने रामो वामो यानी राष्ट्रीय मोर्चा और वाम मोर्चा की सरकार बनाई थी. आज जनता दल का क्या हाल है, आपमें से बहुत से लोग नहीं जानते. उसी जनता दल से समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, समता पार्टी, बीजू जनता दल, जनता दल यूनाइटेड, जनता दल सेक्यूलर, हरियाणा विकास पार्टी, लोक जनशक्ति पार्टी आदि कई पार्टियां निकली हैं, लेकिन चक्र निशान वाला जनता दल मिट गया, क्योंकि उस पार्टी में नेता तो बहुत थे पर विरासत संभालने वाला कोई नहीं था.

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