बिहार से निकला बगावत का फाॅर्मूला एकनाथ शिंदे और अजित पवार के कैसे काम आया?
Advertisement
trendingNow0/india/bihar-jharkhand/bihar1769551

बिहार से निकला बगावत का फाॅर्मूला एकनाथ शिंदे और अजित पवार के कैसे काम आया?

Bihar Politics: महाराष्ट्र में पिछले साल भर में चाहे शिवसेना में विद्रोह हुआ या फिर अब एनसीपी में हो रहा है, वो सब बिहार के फाॅर्मूले पर हो रहा है. बिहार में पशुपति कुमार पारस इस फार्मूले के सूत्रधार बताए जाते हैं. 

एकनाथ शिंदे और अजित पवार

महाराष्ट्र में एक साल के भीतर दो ऐसे बगावत हुए, जिससे राज्य ही नहीं देशभर की राजनीति में भूचाल आ गया. चाहे एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) के नेतृत्व में शिवसेना में बगावत हो या फिर शरद पवार (Sharad Pawar) की पार्टी एनसीपी में अजित पवार (Ajit PAwar) के नेतृत्व में हुई बगावत... मुंबई से लेकर दिल्ली तक राजनीतिक सरगर्मियां तेज रहीं. महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी सरकार का पतन हो गया तो एनडीए की नई युति ने एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में सरकार बनाई. अजित पवार वाला गुट भी एनडीए की नई युति के साथ चला गया और अजित पवार डिप्टी सीएम बन बैठे. महाराष्ट्र में बगावत की ये दोनों घटनाएं राष्ट्रीय राजनीति में भी अपना प्रभाव छोड़ गई हैं. पर आपको पता है कि बगावत की इन दोनों चिंगारियों का आधार क्या था. दरअसल, बिहार में बगावत का एक फाॅर्मूला निकला और इन दोनों दलों में जो विघटन हुआ, उनका आधार बिहार का ही वो फाॅर्मूला था. आइए, आपको डिटेल में समझाते हैं. 

सबसे लोजपा में पशुपति कुमार पारस ने की बगावत

2019 में लोक जनशक्ति पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष रामविलास पासवान ने दल की कमान अपने बेटे चिराग पासवान को सौंप दी थी. उसी साल के नवंबर में पार्टी कार्यकारिणी की बैठक में चिराग पासवान को पार्टी अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव पास हुआ. चिराग पासवान के पास संसदीय दल के नेता के भी जिम्मेदारी थी. जून, 2021 में चिराग पासवान को उस समय बड़ा झटका लगा, जब रामविलास पासवान के भाई पशुपति कुमार पारस ने अपने भतीजे चिराग पासवान के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंक दिया. पशुपति कुमार पारस के पास 6 में से 5 सांसदों का समर्थन हासिल था. पारस ने सबसे पहले चिराग पासवान को संसदीय दल के नेता पद से हटा दिया और खुद ही वो जिम्मेदारी संभाल ली. फिर राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक बुलाई और चिराग पासवान की जगह खुद ही अध्यक्ष बन गए. जिस तरह इस समय एकनाथ शिंदे शिवसेना के संस्थापक बाला साहेब ठाकरे के प्रति आस्था जताते हैं और अजित पवार एनसीपी के संस्थापक शरद पवार के प्रति आस्था जता रहे हैं, उसी तरह पशुपति कुमार पारस ने रामविलास पासवान के प्रति आस्था जताई और चिराग पासवान को अकेले बीच मंझधार में छोड़ दिया. 

चिराग पासवान ने चाचा पशुपति कुमार पारस के साथ सुलह की बहुत कोशिश की पर नाकाम रहे. चुनाव आयोग तक मामला पहुंचा और दोनों चाचा-भतीजे ने पार्टी और चुनाव निशान पर दावा ठोक दिया. चुनाव आयोग के फैसले के अनुसार रामविलास की बनाई लोक जनशक्ति पार्टी का नाम और बंगला के अलावा चुनाव निशान पशुपति कुमार पारस को हासिल हो चुका था. अपने ही पिता की बनाई पार्टी पर कब्जे की जंग में चिराग पासवान को हार मिली. बाद में चिराग पासवान ने लोक जनशक्ति पार्टी रामविलास नाम से नई पार्टी का गठन किया. 

पशुपति की राह पर चले एकनाथ शिंदे, शिवसेना टूटी

जब शिवसेना में बगावत हुई, तब एकनाथ शिंदे ने बिहार में हुई इसी बगावत के फाॅर्मूले को अपनाया. 20 जून 2022 को तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के खिलाफ बगावत करते हुए एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में 2 दर्जन विधायक गुजरात के सूरत पहुंच गए. शिवसेना के आला नेताओं को उम्मीद थी कि शिंदे की नाराजगी दूर कर ली जाएगी, पर बगावत का सिलसिला जो शुरू हुआ था, वो बढ़ता ही चला गया. एकनाथ शिंदे अपना कुनबा बढ़ाते चले गए. उद्धव कैंप के नेता उन्हें मनाने सूरत पहुंचे तो उसके बाद शिंदे गुट के विधायक गुवाहाटी निकल गए. एकनाथ शिंदे लगातार बालासाहेब ठाकरे के आदर्शों पर चलने की बात करते रहे, जिस तरह पशुपति कुमार पारस रामविलास पासवान के आदर्शों पर चलने की बात करते थे. बाद में जब उद्धव ठाकरे को लगा कि अब कुछ नहीं किया जा सकता, तो उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया और एकनाथ शिंदे ने बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बना ली और खुद ही मुख्यमंत्री बन बैठे. इसके बाद असली शिवसेना, पार्टी का निशान भी ले बैठे.

लोजपा और शिवसेना के बाद एनसीपी भी टूट गई

शिवसेना में बगावत के ठीक एक साल बाद एनसीपी में अजित पवार ने बगावत कर दी और डिप्टी सीएम पद की शपथ ले ली. उनके साथ 8 अन्य मंत्रियों ने भी शपथ ग्रहण कर लिया. जिस समय मुंबई में शपथ ग्रहण चल रहा था, शरद पवार मुंबई से बाहर पुणे में थे. उनकी बेटी सुप्रिया सुले भी उनके साथ थीं. अजित पवार ने भी वैसा ही किया, जैसे पशुपति कुमार पारस और एकनाथ शिंदे ने किया. विपक्ष के नेता की हैसियत से विधायक दल की बैठक बुलाई और राजभवन कूच कर गए. पहले डिप्टी सीएम पद की शपथ ली और फिर पार्टी और चुनाव निशान पर दावा ठोक दिया. शरद पवार ने प्रफुल्ल पटेल को निष्कासित किया तो पटेल ने जयंत पाटिल को प्रदेश अध्यक्ष से हटा दिया. शरद पवार को भगवान बताते रहे और उन्हीं के खिलाफ बगावत कर बैठे. 

Trending news