जेल से रिहा होने के बाद आनंद मोहन खुद को राजपूतों के नेता के रूप में स्थापित करने के लिए एक मुद्दे की तलाश में थे. उन्होंने मनोज झा की कविता ली और इसे इस तरह से तोड़-मरोड़ कर पेश किया कि यह आभास हो कि वह एकमात्र नेता हैं जिन पर राजपूत जाति के लोग भरोसा कर सकते हैं.
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Bihar Political News: बिहार की राजनीति में जातिवाद खूब चलता है. ओबीसी वोटबैंक की दम पर नीतीश कुमार और लालू यादव जैसे नेता इतने कामयाब हुए हैं. चिराग पासवान, पशुपति पारस और जीतन राम मांझी जैसे नेता दलित वोटबैंक की राजनीति करते हैं. मुकेश सहनी और उपेंद्र कुशवाहा जैसे भी कई नेता जिनकी अहमियत सिर्फ उनकी जाति के वोटरों के कारण है. लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व वाली राजद के पास मुसलमानों और यादवों का एक बड़ा वोट बैंक है. नीतीश कुमार की जद-यू के पास लव-कुश समीकरण (कुर्मी-कुशवाहा) है, जबकि बिहार में भाजपा के पास उच्च जातियों और बनिया (व्यापारी समुदाय) का मुख्य वोट बैंक है.
वोट बैंक की राजनीति का ताजा मामला राजद के राज्यसभा सांसद मनोज झा की एक कविता से शुरू हुआ है. बाहुबली नेता आनंद मोहन ने इसे ठाकुरों की शान से जोड़ दिया. जेल से रिहा होने के बाद आनंद मोहन खुद को राजपूतों के नेता के रूप में स्थापित करने के लिए एक मुद्दे की तलाश में थे. उन्होंने मनोज झा की कविता ली और इसे इस तरह से तोड़-मरोड़ कर पेश किया कि यह आभास हो कि वह एकमात्र नेता हैं जिन पर राजपूत जाति के लोग भरोसा कर सकते हैं. प्रदेश में राजपूत नेताओं का सूखा आनंद मोहन को सफल भी बनाता दिख रहा है.
आनंद मोहन की कोशिश सफल होगी?
वरिष्ठ राजपूत नेता रघुवंश प्रसाद सिंह का निधन हो गया है. बाहुबली नेता प्रभुनाथ सिंह को हत्या के एक मामले में दोषी ठहराया गया था और वह जेल की सजा काट रहे हैं. राजीव प्रताप रूडी और जनार्दन सिंह सिग्रीवाल को बीजेपी ने किनारे कर दिया है, जगदानंद सिंह ने अपनी राजनीतिक विरासत अपने बेटे सुधाकर सिंह को सौंप दी है. आनंद मोहन को एहसास हुआ कि मनोज झा की कविता खुद को उनकी राजपूत जाति के नेता के रूप में स्थापित करने का सही साधन हो सकती है.
राजपूतों की चिंता या राजनीतिक बदला?
संसद के विशेष सत्र के दौरान मनोज झा द्वारा ठाकुर का कुआं नामक कविता का उल्लेख करने के 5 दिन बाद आनंद मोहन के बेटे ने इसे मुद्दा बना दिया, लेकिन असली कारण वह शर्मिंदगी थी जो आनंद मोहन को कुछ दिनों पहले बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के आवास पर झेलनी पड़ी थी. दरअसल, आनंद मोहन राबड़ी देवी के आवास के गेट के बाहर 10 मिनट तक इंतजार करते रहे लेकिन लालू प्रसाद ने कथित तौर पर उनका स्वागत करने से इनकार कर दिया. हालांकि बाद में राजद ने सफाई दी कि लालू प्रसाद ने गेट पर मौजूद अधिकारियों को उन्हें अंदर लाने का संदेश दिया लेकिन तब तक आनंद मोहन वहां से निकल चुके थे.
अपमान का बदला ले रहे आनंद मोहन?
सूत्रों ने बताया कि मोहन अपनी पत्नी लवली आनंद के लिए शिवहर, सहरसा, वैशाली या आरा से लोकसभा टिकट चाहते हैं. राबड़ी आवास में हुए अपमान के चलते आनंद मोहन ने लालू यादव के करीबी नेता मनोज झा को लपेट लिया है. आनंद मोहन सिंह ने मनोज झा पर तीखा हमला बोला और यहां तक कह दिया कि अगर मैं राज्यसभा में होता तो उनकी जीभ काट देता. आनंद मोहन ने कहा कि मनोज झा फिटकिरी हैं, जो नहीं चाहते कि समुदाय एकजुट हो. इसलिए वह इस तरह के बयान दे रहे हैं. वह भाजपा के एजेंट हैं. एक बार जब बिहार में राजद कमजोर हो जाएगा तो वह सबसे पहले भाजपा में जाएंगे.
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बीजेपी के राजपूत नेता एक्टिव हुए
पूर्व सांसद ने कहा कि मैं उसके चाचा को भी जानता हूं. उन्होंने समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव जीता लेकिन जब उन्होंने केंद्र में कांग्रेस की सरकार बनती देखी तो वहां चले गए. फिटकिरी झा भी ऐसा ही करेंगे. आनंद मोहन के इस रुख के बाद भाजपा ने तुरंत अपने सवर्ण नेताओं को एक्टिव कर दिया. बीजेपी नेता राघवेंद्र प्रताप सिंह, नीरज कुमार बब्लू और संजय सिंह ने एक कदम आगे बढ़कर मनोज झा को चेतावनी दी. राघवेंद्र प्रताप ने झा का सिर कलम करने की धमकी दी. आनंद मोहन के इस रुख को बीजेपी ने बखूबी समझा. भगवा ब्रिगेड को पता था कि अगर आनंद मोहन ने खुद को राजपूत नेता के रूप में स्थापित किया, तो पार्टी का एक बड़ा वोट बैंक उनसे छीन लिया जाएगा.
मनोज झा विवाद से राजद को नुकसान?
लालू को पता है कि इस विवाद का उनकी पार्टी पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा. तेजस्वी यादव भले ही ए टू जेड की बात करें लेकिन ऊंची जातियां राजद के साथ नहीं आएंगीं. इसी कारण लालू प्रसाद ने मनोज झा का बचाव करते हुए कहा कि उन्होंने किसी जाति या समुदाय को ठेस पहुंचाने के लिए गलत बयान नहीं दिया है. जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने भी मनोज झा का बचाव किया और कहा कि उन्होंने ऐसा कोई बयान नहीं दिया है जिससे किसी जाति या समुदाय को ठेस पहुंचे.
आनंद मोहन से बीजेपी को नुकसान?
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि नीतीश कुमार सरकार ने आनंद मोहन को रिहा करने के लिए बिहार के जेल मैनुअल में बदलाव किया था. उनका असल मकसद बीजेपी के ऊंची जाति के वोट बैंक को नुकसान पहुंचाना था. यह बीजेपी को चोट पहुंचाने के लिए नीतीश कुमार की बदले की चाल थी. दूसरी ओर नीतीश कुमार और लालू प्रसाद भी बिहार में जाति आधारित सर्वे कराने गए थे. यह लगभग पूरा हो चुका है और जल्द ही सार्वजनिक डोमेन में आ जाएगा. जाति आधारित सर्वेक्षणों को बिहार में भाजपा को हराने के साधन के रूप में देख रहे हैं.
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जातियों का हिसाब-किताब
बिहार की सामाजिक संरचना के मुताबिक ऊंची जातियों को बीजेपी का कोर वोटर माना जाता है और विपक्षी पार्टियां भी इससे इनकार नहीं कर रही हैं. अगर हम बिहार में मतदाताओं का विश्लेषण करें, तो ब्राह्मण, भूमिहार और राजपूत जैसी उच्च जातियों की तुलना में ओबीसी, ईबीसी, मुस्लिम बड़ी संख्या में हैं. राज्य में लगभग 19 फीसदी ऊंची जाति, 16 फीसदी दलित, 17 फीसदी मुस्लिम, 16 फीसदी यादव और 38 फीसदी ओबीसी और ईबीसी मतदाता हैं. राजनीतिक नेता दावा कर रहे हैं कि जाति आधारित सर्वेक्षण भाजपा की तुलना में राजद, जद-यू, वाम दलों और कांग्रेस के लिए समान रूप से फायदेमंद होगा.
जातियों की वास्तविक संख्या सार्वजनिक होने के बाद राजद, जदयू, वामपंथी दलों और कांग्रेस जैसी पार्टियों के लिए ओबीसी, ईबीसी, दलित, यादव और अल्पसंख्यकों के मतदाताओं को मनाना आसान हो जाएगा, जो बिहार में ऊंची जातियों की तुलना में बड़ी संख्या में हैं. यदि भाजपा इन जातियों के उम्मीदवारों को टिकट देती है तो मतदाताओं के मन में विश्वास की कमी होगी. तब उन्हें बीजेपी से ज्यादा भरोसा राजद जद यू लेफ्ट और कांग्रेस के उम्मीदवारों पर होगा.
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2020 विधानसभा चुनाव के नतीजे
2020 के चुनाव के बाद बिहार में 243 विधानसभा सीटें हैं और 52 विधायक यादव जाति के हैं. यादवों को राजद का मुख्य मतदाता माना जाता है और पार्टी के पास अधिकतम 35 विधायक हैं, कांग्रेस के 1, सीपीएम के 1, सीपीआई (एमएल) के 2, बीजेपी के 7, जेडी-यू के 5 और वीआईपी का 1 विधायक हैं. नतीजतन, बीजेपी-आरएसएस ने 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले आरक्षण कार्ड खेला है. आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने हाल ही में नागपुर में इस आशय का बयान दिया था और देश में आरक्षण का समर्थन किया था.
आरक्षण पर RSS ने अपना स्टैंड बदला
मोहन भागवत के बयान पर पलटवार करते हुए राजद प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने कहा था कि हमारे नेता लालू प्रसाद यादव पूरी जिंदगी आरक्षण की वकालत करते रहे और इस मुद्दे पर कायम हैं. मोहन भागवत ही वो शख्स हैं जिन्होंने 2015 में सार्वजनिक बयान दिया था कि आरक्षण पर पुनर्विचार की जरूरत है. वह अपने ही बयान का खंडन कर रहे हैं. वह आरक्षण समर्थक टिप्पणियां कर रहे हैं क्योंकि उन्हें आगामी लोकसभा चुनाव में हार दिख रही है. उसकी बातों पर कोई यकीन नहीं करेगा. उनका बयान बिहार में जाति आधारित सर्वेक्षण का मुकाबला करने के लिए राजनीति से प्रेरित है.