Dev Uthani Ekadashi: देव उठनी एकादशी का क्या है महत्व, जानिए व्रत से जुड़ी खास बातें
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Dev Uthani Ekadashi: देव उठनी एकादशी का क्या है महत्व, जानिए व्रत से जुड़ी खास बातें

Dev Uthani Ekadashi 2022: देव उठनी एकादशी या प्रबोधिनी एकादशी की महानता सबसे पहले भगवान ब्रह्मा ने ऋषि नारद को सुनाई थी और इसका उल्लेख स्कंद पुराण में मिलता है.

Dev Uthani Ekadashi: देव उठनी एकादशी का क्या है महत्व, जानिए व्रत से जुड़ी खास बातें

पटनाः Dev Uthani Ekadashi 2022 Shubh Muhurt : सनातन परंपरा में कार्तिक मास की एकादशी को देवोत्थान एकादशी के नाम से जाना जाता है. इस दिन भगवान विष्णु अपनी चार माह की नींद से जागते हैं. इसलिए यह एकादशी देव प्रबोधिनी भी कहलाती है. इसी दिन देवी तुलसी का शालिग्राम जी से विवाह भी कराया जाता है. इस बार देवोत्थान एकादशी 4 नवंबर यानी कि शुक्रवार को है. इसके बाद शनिवार यानी 5 नवंबर को तुलसी विवाह कराया जाएगा. 

प्रबोधिनी एकादशी का महत्व
प्रबोधिनी एकादशी की महानता सबसे पहले भगवान ब्रह्मा ने ऋषि नारद को सुनाई थी और इसका उल्लेख स्कंद पुराण में मिलता है. यह हिंदुओं के लिए बहुत महत्व रखता है क्योंकि यह विवाह, नामकरण समारोह, गृह प्रवेश आदि जैसे शुभ समारोहों की शुरुआत का प्रतीक होता है. प्रबोधिनी एकादशी स्वामीनारायण संप्रदाय के बीच अत्यधिक महत्व रखती है. यह दिन गुरु रामानंद स्वामी द्वारा स्वामीनारायण की धार्मिक दीक्षा का भी होता है. भक्त जीवन भर किए गए अपने बुरे कर्मों और पापों की समाप्ति हेतु उपवास का पालन करते हैं, साथ ही प्रबोधिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से व्यक्ति मोक्ष प्राप्त कर सकता है और मृत्यु के पश्चात वैकुंठ को पाता है.

देवउठनी एकादशी 2022 मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार देवउठनी एकादशी तिथि 03 नवंबर 2022 को शाम 07 बजकर 30 मिनट पर शुरू हुई और देवउत्थान एकादशी तिथि का समापन 04 नवंबर 2022 को शाम 06 बजकर 08 मिनट पर है. देवउठनी एकादशी व्रत पारण समय -
सुबह 06.39 - सुबह 08.52 (5 नवंबर 2022)

देवउठनी एकादशी पर विष्णु जी को कैसे जगाएं ?
देवउठनी एकादशी पर श्रीहरि की रात्रि में शुभ मुहूर्त में पूजा की जाती है. आंगन में चूना और गेरू से रंगोली बनाई जाती है जिस पर गन्ने मंडप बनाते हैं. इसमें भगवान विष्णु के शालीग्राम स्वरूप की पूजा की जाती है. शालीग्राम जी को नए वस्त्र और जनेऊ अर्पित करने के बाद उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये, त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत् सुप्तं भवेदिदम॥ इस मंत्र तेज स्वर में उच्चारण करते हुए श्रीहरि को जगाया जाता है. इस दिन 11 दीपक देवी-देवताओं के निमित्त जलाएं जाते हैं.

 

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