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पटना/रांची: महाशिवरात्रि का त्योहार 18 फरवरी को है. इस दिन पूरे धूमधाम से महादेव की बारात निकलेगी. ऐसे में शिव मंदिरों में इसकी तैयारी जोरों पर है.आपको बता दें शिवरात्रि के मौके पर लोग भगवान शिव की पूजा के साथ ही व्रत भी रखते हैं. लोग मोक्ष की प्राप्ति के लिए भी महाशिवरात्रि के दिन शिव का रुद्राभिषेक करते हैं. ऐसे में झारखंड में भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक बाबा बैद्यनाथ का मंदिर स्थित है. इसके साथ बिहार और जारखंड में कई प्रसिद्ध शिव मंदिर हैं, जहां इस माहाशिवरात्रि जलाभिषेक कर आप मोक्ष को पा सकते हैं.
बैद्यनाथ मंदिर (देवघर ), झारखंड
झारखंड का देवघर , जिसे बैद्यनाथ धाम भी कहा जाता है. यह बारह ज्योतिर्लिंग में से एक है और इसी के साथ यह 51 शक्ति पीठों में से एक पीठ भी है. यही कारण है कि इस महादेव के शिवलिंग को कामना लिंग कहा जाता है क्योंकि यहां शिव और शक्ति दोनों की पूजा एक साथ होती है. यह मंदिर पूरी दुनिया में श्रावण के मेले के लिए प्रसिद्ध है. बता दें कि सावन के महीने में यहां करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु एक महीने में जलाभिषेक करने आते हैं. यहां के बाद आंध्र प्रदेश के श्रीशैलम में ज्योतिर्लिंग और शक्तिपीठ एक साथ हैं. देवघर में जुलाई और अगस्त (सावन के महीने में) में श्रद्धालु भारत के विभिन्न हिस्सों से सुल्तानगंज में गंगा से जलभर यहां पैदल आते हैं और बाबा बैद्यनाथ का जलाभिषेक करते हैं. यह पूरी दूरी लगभग 108 किमी है जिसे कांवड़िये खाली पैर कांवड़ लेकर पूरा करते हैं.यह एशिया का सबसे लंबा मेला है.
यह वह स्थान है जहां लंका के राजा रावण ने भगवान शिव को एक-एक करके अपने दस सिर चढ़ाए थे.रावण ने ही यह शिवलिंग स्थापित किया था. इस वजह से इसे रावणेश्वर ज्योतिर्लिंग भी कहा जाता है. वहीं भगवान को दुःख हर्ता और वैद्य के रूप में पुकारते हैं ऐसे में इन्हें बैद्यनाथ. वहीं एक कथा के अनुसार इसे बैजू नाम के पशु चराने वाले ने स्थापित किया था इसलिए उसका नाम बैद्यनाथ पड़ा. यहां मंदिर का द्वार पूर्व की ओर है और यह एक पिरामिड के समान बुर्ज की तरह एक पत्थर की संरचना है, जो 72 फीट ऊंचा है. इसके ऊपर तीन सोने के कलश हैं, साथ में एक पंचशूल (एक त्रिशूल के आकार में पांच चाकू) हैं. चंद्रकांता मणि नामक एक आठ पंखुड़ियों वाला कमल भी है.
अजगैबीनाथ मंदिर, भागलपुर, सुल्तानगंज (बिहार)
अजगैबीनाथ मंदिर भगवान शिव के दुर्लभ प्राचीन हिंदू मंदिरों में से एक है और भागलपुर जिले के सुल्तानगंज में स्थित है. मंदिर का प्रांगण मनमोहित करने है वाला है और यहां के पत्थरों पर उत्कृष्ट नक्काशी एवं शिलालेख श्रद्धालुओं को आकर्षित करते हैं. मंदिर के साथ-साथ, आपको पवित्र गंगा नदी की उपस्थिति भी देखने को मिलेगी. यहां श्रावणी मेले का बहुत महत्व है और इसे मंदिर में बड़े पैमाने पर मनाया जाता है. अजगैबीनाथ मंदिर की अपनी मान्यताएं हैं और यह यहां का दर्शनीय स्थल है.
सुल्तानगंज पारंपरिक रूप से ऋषि जाह्नू से जुड़ा हुआ है. जलमार्ग गंगा ने समुद्र की ओर जाते हुए अपनी तेज लहरों से जह्नु ऋषि को विचलित कर दिया. ऋषि ने चिढ़कर धारा को निगल लिया.
किंवदंती के अनुसार, भगवान शिव को यहां अपना धनुष दिया गया था, जिसे अजगैबी के नाम से जाना जाता है. इस स्थान का पुराना नाम जहाँगीरा था जो जाह्नु मुनि के नाम से प्राप्त हुआ था. जहाँगीर का नाम जाह्नू गिरी (जह्नू की पहाड़ी) के नाम से पड़ा है. सुल्तानगंज की मुरली पहाड़ी गंगा के तट पर बसी हुई है, जहां से गंगा के मध्य में अजगैबीनाथ मंदिर जाने के लिए नाव लेनी पड़ती है. यह माना जाता है कि भगवान शिव स्वयं यहां अभयारण्य में प्रकट हुए थे.
बासुकीनाथ धाम (दुमका), झारखंड
बासुकीनाथ झारखंड के दुमका जिले में स्थित है. यह देवघर –दुमका राज्य राजमार्ग पर स्थित है और दुमका के उत्तर-पश्चिम में लगभग 25 किमी दूर है. यह हिंदुओं के लिए तीर्थयात्रा का एक स्थान है. यहां बाबा बासुकीनाथ या नागनाथ की पूजा होती है. कहते हैं कि यहां जलाभिषेक कर जो भी मांगों बाबा वह सभी मनोकामना पूरी करते हैं. देश के विभिन्न हिस्सों से लाखों और लाखों लोग भगवान शिव की पूजा करने के लिए यहां आते हैं. श्रावण में देवघर आने वाले लोग यहां भगवान शिव की पूजा करने के लिए जरूर आते हैं.इन्हें फौजदारी बाबा के नाम से भी लोग पूजते हैं. इस मंदिर की संरचना काफी पुरानी है और इसके बारे में मान्यता है कि इसे बासुकी गड़ेरिये ने बनवाया इसलिए इसका नाम बाबा बासुकीनाथ पड़ा.
बाबा नागेश्वरनाथ (भगवान शिव) मंदिर, सीतामढ़ी, बिहार
बिहार के पुपरी सीतामढ़ी में बाबा नागेश्वरनाथ (भगवान शिव)का प्रसिद्ध मंदिर है. ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव खुद नागेश्वर नाथ महादेव के रूप में यहां प्रकट हुए थे. पुपरी का नागेश्वर नाथ मंदिर मुख्य नगर से 26 किलोमीटर की दूरी पर है. इसका निर्माण वर्ष 1968 में करवाया गया था. मंदिर के पुजारी प्रफुल्ल शंकर झा बताते हैं, यहां का शिवलिंग धरती के गर्व से निकला था. शिवरात्रि के अवसर पर सुबह से ही यहां श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है तथा संध्या पहर पूजा-अर्चना होती है इसके बाद स्थानीय श्रद्धालुओं द्वारा मंदिर का निर्माण कराया गया है.
हरिहर नाथ मंदिर, सोनपुर, बिहार
बाबा हरिहरनाथ शिवलिंग विश्व का एकमात्र ऐसा शिवालय है जिसके आधे भाग में शिव (हर) और शेष में विष्णु (हरि) की आकृति है. एक ही गर्भगृह में विराजे दोनों देव एक साथ हरिहर कहलाते हैं.
पूर्व मान्यता है कि इसकी स्थापना स्वयं ब्रह्मा ने शैव और वैष्णव संप्रदाय को एक-दूसरे के नजदीक लाने के लिए की थी.
एक तथ्य यह भी है कि इसी स्थल पर लंबे संघर्ष के बाद शैव व वैष्णव मतावलंबियों का संघर्ष विराम हुआ था. कथा के अनुसार, श्री रामचंद्र ने गुरु विश्वामित्र के साथ जनकपुर जाने के दौरान यहां रुककर हरि और हर की स्थापना की थी.उनके चरण चिह्न हाजीपुर स्थित रामचौरा में मौजूद हैं. इस क्षेत्र में शैव, वैष्णव और शाक्त संप्रदाय के लोग एक साथ कार्तिक पूर्णिमा का स्नान और जलाभिषेक करते हैं. साल 1757 के पहले मंदिर इमारती लकड़ियों और काले पत्थरों के शिला खंडों से बना था.
हिंदू धर्म के अनुसार, कार्तिक पूर्णिमा के दिन यहां स्नान करने से सौ गोदान का फल प्राप्त होता है. मान्यता है कि कभी भगवान राम भी यहां पधारे थे और बाबा हरिहरनाथ की पूजा-अर्चना की थी.
इसी तरह सिख ग्रंथों में यह जिक्र है कि गुरु नानक यहां आए थे. बौद्ध धर्म के अनुसार अंतिम समय में भगवान बुद्ध इसी रास्ते कुशीनगर गए थे. जहां उनका महापरिनिर्वाण हुआ था. पुराणों के अनुसार, भगवान विष्णु के दो भक्त जय और विजय शापित होकर हाथी (गज) और मगरमच्छ (ग्राह) के रूप में धरती पर उत्पन्न हुए थे. एक दिन कोनहारा के तट पर जब गज पानी पीने आया था तो ग्राह ने उसे पकड़ लिया था. फिर गज ग्राह से छुटकारा पाने के लिए कई सालों तक लड़ता रहा. तब गज ने बड़े ही मार्मिक भाव से अपने हरि यानी विष्णु को याद किया. तब कार्तिक पूर्णिमा के दिन विष्णु भगवान ने उपस्थित होकर सुदर्शन चक्र चलाकर उसे ग्राह से मुक्त किया और गज की जान बचाई. इस मौके पर सारे देवताओं ने यहां उपस्थित होकर जयजयकार की थी.
माधवेश्वर नाथ महादेव मंदिर, दरभंगा, बिहार
माधवेश्वर नाथ महादेव मंदिर की स्थापना दरभंगा के महाराजा माधव सिंह ने 350 वर्ष पूर्व करायी थी. इन्हीं के नाम पर मंदिर का नाम माधवेश्वर नाथ महादेव मंदिर पड़ा. मंदिर के ठीक सामने तालाब खुदवाया गया. इस तालाब में कई तीर्थस्थल से जल मंगवाकर डाला गया था. आज भी लोग शिवलिंग पर इसी तालाब से जल लेकर अर्पण करते हैं. शिवरात्रि, सोमवारी एवं नरक निवारण चतुर्दशी के दिन हजारों श्रद्धालु यहां सिर झुकाने आते हैं. अन्य दिनों में भी भक्तों का तांता लगा रहता है. विशेष दिन मंदिर के अगल-बगल पूजा सामग्री की कई दुकानें सज जाती है. शिवरात्रि में तीन दिनों तक अखण्ड रामधुन, नरक निवारण चतुर्दशी में महादेव का श्रृंगार व प्रत्येक सोमवारी को विशेष शृंगार की यहां परंपरा है. मंदिर की देखभाल कामेश्वर सिंह न्यास समिति करती है.
कुशेश्वर स्थान, दरभंगा, बिहार
बाबा कुशेश्वर् नाथ का शिव मंदिर जिला मुख्यालय से लगभग 70 किलोमीटर दूर है. यह मंदिर मिथिला में बाबाधाम के नाम के रूप में प्रचलित है. इस मंदिर में उत्तर बिहार , नेपाल तथा झारखण्ड तक के भक्त गन पूजा करने के लिए आते है. पक्षी प्रेमियों के लिए भी यह एक पसंदीदा जगह है क्योंकि आपको एक झील मिलेगी जहां बड़ी संख्या में दुर्लभ प्रजाति के पक्षी यहां सर्दियों के दौरान प्रवास करते हैं.
प्राचीन शिव मंदिर , कैथा, रामगढ (झारखंड)
हज़ारीबाग़ जिले के रामगढ़ प्रखंड अंतर्गत कैथा ग्राम रामगढ़ बोकारो मार्ग पर स्थित है. इस गांव में यह शिव मंदिर है. मंदिर लखौरी ईंट का बना है. यह मुग़ल-हिन्दू स्थापत्य का अद्भुत नमूना है. मंदिर लगभग 300 वर्ष पुराण है. कैथा मंदिर रामगढ़ से बोकारो जाने वाले मार्ग पर लगभग 3 किलोमीटर की दूरी पर है.
आम्रेश्वर धाम, खूंटी, रांची (झारखंड)
अंगरबारी हिंदू मंदिर परिसर है जिसे मूल रूप से आम्रेश्वर धाम के नाम से जाना जाता है और बाद में इसका नाम बदलकरशंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती रख दिया गया. यह एक मंदिर है जिसमें भगवान शिव, राम और सीता, हनुमान और गणेश के मंदिर हैं. माना जाता है कि इस मंदिर में एक स्वयंभू शिव लिंग है जिसकी नियमित रूप से पूजा की जाती है. मंदिर को आम्रेश्वर धाम भी कहा जाता है क्योंकि पौराणिक कथाओं के अनुसार देवता की पूजा एक आम के पेड़ से होती थी. मंदिर में मुख्य शिवलिंग है, जिसके ऊपर छत नहीं है. यह इस कारण से है कि हर अवसर पर जब पवित्र शिवलिंग के चारों ओर एक मंदिर बनाने का प्रयास किया गया था; भगवान शिव उस पर काम करने वाले व्यक्ति के सपने में आए और कहा छत बनाने के लिए आगे बढ़ो. वर्तमान में मुख्य शिवलिंग एक बरगद के पेड़ के नीचे है.
हर साल सावन के मौसम के दौरान स्थानीय त्यौहार एक महीने तक मनाया जाता है. यह जिला मुख्यालय से 9 किमी दूर खूंटी-तोरपा रोड पर स्थित है.
(इनपुट- संकरेश कुमार)