Lord Shiva Story: आखिर क्यों पसंद है महादेव को बेलपत्र, जानिए इसकी रोचक कथा
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Lord Shiva Story: आखिर क्यों पसंद है महादेव को बेलपत्र, जानिए इसकी रोचक कथा

Lord Shiva Story: महादेव शिव का कहना है कि बिल्व के पत्ते उनकी जटा के समान हैं. उसका त्रिपत्र यानी तीन गुण, सत्व, रज और तमस के प्रतीक हैं. ये तीन शक्तियां ब्रह्म, विष्णु और महेश के रूप हैं और यही त्रिदेवियां भी हैं.

 Lord Shiva Story: आखिर क्यों पसंद है महादेव को बेलपत्र, जानिए इसकी रोचक कथा

Lord Shiva Story: सनातन परंपरा और पंचांग के अनुसार सावन माह का विशेष समय जारी है. इस दौरान शिलालयों में श्रद्धालुओं की भीड़ है और लोग महादेव को प्रसन्न करने के लिए उनपर जलाभिषेक कर रहे हैं. महादेव शिव पर जल अर्पण करने के साथ बेल पत्र चढ़ाने की भी परंपरा है, साथ ही इसका विशेष महत्व भी है. बेलपत्र भगवना शिव को विशेष प्रिय है. इसे त्रिदल भी कहते हैं कि, क्योंकि यह तीन पत्तियों के समूह में होता है. संस्कृत में सूक्ति है त्रिदलं त्रिगुणाकारं. बेल के पत्तों के तीन समूह तीन गुणों और तीन विकारों के प्रतीक हैं. महादेव को ये क्यों प्रिय हैं, इसका जवाब एक पुराण कथा में मिलता है. 

नारद मुनि ने पूछा प्रश्न
दरअसल, यही प्रश्न एक बार नारद मुनि ने खुद महादेव से पूछा था. उन्होंने कहा- हे महाशिव, आपको बिल्वपत्र (बेलपत्र) क्यों प्रिय हैं. तब भगवान शिव ने कहा कि मैं केवल भाव का भूखा हूं. फिर भी कोई श्रद्धा से मुझे जल के साथ-साथ बिल्वपत्र चढ़ाता है तो मुझे प्रसन्नता होती है. जो अखंड बिल्वपत्र मुझे श्रद्धा से अर्पित करते हैं मैं उन्हें अपने लोक में स्थान देता हूं. उन्होंने इसे विस्तार से बताया.

भगवान शिव ने दिया उत्तर
महादेव शिव का कहना है कि बिल्व के पत्ते उनकी जटा के समान हैं. उसका त्रिपत्र यानी तीन गुण, सत्व, रज और तमस के प्रतीक हैं. ये तीन शक्तियां ब्रह्म, विष्णु और महेश के रूप हैं और यही त्रिदेवियां भी हैं. जिन्हें महासरस्वती, महालक्ष्मी और महाकाल कहा जाता है. यह तीन ऋण से (पितृ, देव और गुरु) मुक्त कराने वाले हैं और तीन लोकों का आधार हैं. खुद महालक्ष्मी ने शैल पर्वत पर विल्ववृक्ष रूप में जन्म लिया था. यह सुनकर पार्वती जी ने जिज्ञासा में पूछा कि देवी लक्ष्मी ने आखिर विल्ववृक्ष का रूप क्यों लिया? 

देवी सरस्वती से विचलित हुईं मां लक्ष्मी
तब महादेव शिव ने बताया कि देवी वाग्देवी सरस्वती ने मेरे मंत्रों और ऋचाओं को सुंदर स्वर प्रदान किए. जब देवताओं ने सस्वर मेरी स्तुति की तो मैं शीघ्र प्रसन्न हो गया. इससे भगवान विष्णु देवी सरस्वती के प्रति आभारी हो गए और उनके हृदय में देवी सरस्वती के लिए अपार स्नेह भर गया. उस हृदय में देवी लक्ष्मी का निवास था. देवी सरस्वती के लिए इस तरह का स्नेह आना उन्हें अतिक्रमण जैसा लगा. ऐसे में लक्ष्मी देवी चिंतित और नाराज होकर श्री शैल पर्वत पर चली गईं.

देवी लक्ष्मी ने किया कठिन तप
वहां उन्होंने शिवलिंग विग्रह स्थापित किया और कठिन तपस्या करने लगीं. इस दौरान शीत-वर्षा और धूप में तपस्या करते हुए उन्हें लगा कि महादेव को इन ऋतुओं से कष्ट होता होगा. इसी चिंता और उग्र तपस्या के कारण देवी पसीने-पसीने हो गईं. उन्होंने मन की शक्ति से पर्वत पर गिए अपने पसीने की बूंद से बेल के पेड़ का स्वरूप लिया और मेरे ऊपर छाया करने लगीं और कई हजार सालों तक मेरी तपस्या करती रहीं. इस दौरान बेल के पत्र मेरे ऊपर गिरते हुए चढ़ते रहे. इस तरह कठिन साधना के बाद में प्रकट हुआ. महालक्ष्मी ने मांगा कि श्री हरि के हृदय में देवी सरस्वती के लिए जो स्नेह हुआ है वह समाप्त हो जाए.

भगवान शिव ने किया शंका समाधान
तब मैंने महालक्ष्मी को समझाया कि श्री हरि के हृदय में आपके अलावा किसी और के लिए कोई प्रेम नहीं है. देवी सरस्वती के प्रति तो केवल उनकी श्रद्धा है. यह सुनकर लक्ष्मी जी प्रसन्न हो गईं और पुनः श्री विष्णु के ह्रदय में स्थित होकर निरंतर उनके साथ विहार करने लगीं. बिल्व पत्र के कारण हरिप्रिया की शंका का समाधान हुआ था, इसलिए उन्होंने बिल्वपत्रों से सदैव मेरी पूजा की. बेल पत्र इस कारण मुझे बहुत प्रिय हैं. जो बेलपत्र पर चंदन से मेरा नाम अंकित करके मुझे अर्पण करता है मैं उसे सभी पापों से मुक्त करके अपने लोक में स्थान देता हूं.

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