Vat Savitri Vrat 2024: वट सावित्री व्रत हर साल ज्येष्ठ महीने की अमावस्या को रखा जाता है. इस साल यह व्रत 6 जून 2024 को रखा जाएगा. इस दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और संतान प्राप्ति के लिए व्रत रखती हैं. वे विधि-विधान से वट वृक्ष (बरगद के पेड़) की पूजा करती हैं. इस दौरान महिलाएं बिना पानी पिए व्रत रखती हैं और पूजा-पाठ के बाद ही व्रत खोलती हैं.
वट सावित्री व्रत के दिन विवाहित महिलाएं सोलह श्रृंगार करके अपने पति की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य के लिए व्रत रखती हैं, जैसे करवा चौथ पर करती हैं. अगर आप भी वट सावित्री का व्रत रख रही हैं, तो पूजा की सारी सामग्री पहले से ही इकट्ठा कर लें ताकि पूजा के समय कोई परेशानी न हो.
सनातन पंचांग के अनुसार 6 जून को ज्येष्ठ अमावस्या है. इस दिन शनि जयंती और वट सावित्री व्रत मनाया जाता है. सनातन शास्त्रों के अनुसार ज्येष्ठ अमावस्या पर शनिदेव का अवतरण हुआ था. इसी दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और पुत्र प्राप्ति के लिए वट सावित्री व्रत रखती हैं.
ज्योतिष शास्त्र में वट सावित्री व्रत पर विशेष उपाय करने का भी महत्व है. इन उपायों से व्रती को मनचाहा फल मिलता है. इस दिन अविवाहित लड़कियां जल्दी शादी के लिए वट वृक्ष की विशेष पूजा करती हैं. अगर आपकी शादी में भी कोई बाधा आ रही है, तो वट सावित्री व्रत पर पूजा के समय ये उपाय जरूर करें.
अविवाहित लड़कियां जल्दी शादी के लिए वट सावित्री व्रत के दिन स्नान के बाद विधि-विधान से वट वृक्ष की पूजा करें. इस दौरान वट वृक्ष की 108 बार परिक्रमा जरूर करें. यदि आप शारीरिक रूप से सक्षम नहीं हैं, तो 21 बार परिक्रमा करें.
वट सावित्री व्रत के दिन वट वृक्ष की विधिपूर्वक पूजा करें. जल में रोली मिलाकर अर्घ्य दें. फिर सात बार परिक्रमा करते हुए लाल रंग का धागा वृक्ष में बांधें और भगवान विष्णु से शीघ्र विवाह की प्रार्थना करें.
वट सावित्री व्रत के दिन विधिपूर्वक भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा करें. इस समय भगवान शिव को तीन जटा वाला नारियल अर्पित करें और नारियल अर्पित करते समय 'ॐ सृष्टिकर्ता मम विवाह कुरु कुरु स्वाहा' मंत्र का जाप करें. इस उपाय से भी शीघ्र विवाह के योग बनते हैं.
इस दिन बरगद के वृक्ष की पूजा कर महिलाएं देवी सावित्री के त्याग, पति प्रेम और पतिव्रता धर्म की कथा का स्मरण करती हैं. यह व्रत स्त्रियों के लिए सौभाग्यवर्धक, पापहारक, दुःखप्रणाशक और धन-धान्य प्रदान करने वाला होता है. जो महिलाएं सावित्री व्रत करती हैं, वे पुत्र, पौत्र और धन प्राप्त कर लंबे समय तक सुखपूर्वक जीवन बिताती हैं और अंत में पति के साथ ब्रह्मलोक को प्राप्त करती हैं.
ऐसी मान्यता है कि वट वृक्ष की जड़ों में ब्रह्मा, तने में भगवान विष्णु और डालियों में त्रिनेत्रधारी शंकर का निवास होता है और इसकी नीचे लटकी शाखाओं को देवी सावित्री का रूप माना जाता है. इसलिए इस वृक्ष की पूजा से सभी मनोकामनाएं शीघ्र पूर्ण होती हैं. इस पर्व के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण का भी संदेश मिलता है. वृक्ष होंगे तो पर्यावरण बचा रहेगा और तभी जीवन संभव है.
पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ अमावस्या की तिथि 5 जून को शाम 7 बजकर 54 मिनट पर शुरू होगी और 6 जून को शाम 6 बजकर 7 मिनट तक रहेगी. इसके आधार पर उदय तिथि के हिसाब से वट सावित्री व्रत 6 जून को रखा जाएगा.
सावित्री और माता पार्वती की मूर्ति बनाने के लिए गाय का गोबर, चावल और हल्दी के पेस्ट में थोड़ा सा पानी मिलाकर मिश्रण बना लें. उसके बाद थापा बनाएं. इसके साथ कच्चा सूत या सफेद धागा, बांस का पंखा, लाल कलावा, बरगद की एक कोपल, खरबूज, आम, केला फल, फूल, फूलों की माला, बताशा, सिंदूर, रोली, इत्र, सुपारी, पान, लाल कपड़ा, अक्षत, सुहाग का सामान, नकद रुपए, भिगोया हुआ चना, 14 गेहूं के आटे से बनी हुई पूड़ियां, 14 आटा और गुड़ से बने गुलगुले, स्टील या कांसे की थाली, मिठाई, धूप, मिट्टी या पीतल का दीपक, घी, एक लोटा और गिलास जैसी चीजें तैयार करें.
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