बिहार की मोक्ष नगरी उमानाथ धाम 22 वर्षों से एक मुक्ति धाम के लिए तरस रहा है. उत्तरी बिहार के कई जिलों से यहां लोग अपने परिजनों के अंतिम संस्कार के लिए आते हैं. उत्तरायण गंगा होने के कारण हिंदू धर्म में उमानाथ घाट पर दाह संस्कार का विशेष महत्व है. वहीं नगर परिषद के अधिकारी उमानाथ धाम पर जमीन उपलब्ध नहीं होने की बात कह पल्ला झाड़ ले रहे हैं.
उमानाथ घाट के सती स्थान पर रोज 100 से अधिक शवों का दाह संस्कार होता है. यहां शवों के अंतिम संस्कार के लिए दो शेड भी बने हैं, पर इन पर अतिक्रमणकारियों का कब्जा है. हालत यह है कि लोगों को शव जलाने के लिए गंगा घाट पर जगह भी उपलब्ध नहीं होती है.
गंगा नदी में ही शव की अधजली अस्थियां और कूड़ा करकट प्रवाहित कर दिया जाता है. श्मशान घाट पर गंदगी के कारण कुत्ते और अन्य जानवर घूमते रहते हैं. मृतकों के रामनामी वस्त्र भी घाट पर ही चारों तरफ बिखरे रहते हैं. उमानाथ घाट पर बिखरी गंदगी और अव्यवस्था से परेशान बाहर से आए लोग किसी तरह अपने परिजनों का अंतिम संस्कार करने को मजबूर हैं.
उमानाथ धाम पर 2002 से ही मोक्ष धाम बनाने की मांग उठती रही है. इसके अलावा सती स्थान पर एक इलेक्ट्रिक और वुडन शवदाह गृह का भी निर्माण होना है, लेकिन 22 वर्षों से बाढ़ नगर परिषद द्वारा जमीन उपलब्ध नहीं कराए जाने के कारण यहां मोक्ष धाम का काम अधर में लटका है.
नगर परिषद के एग्जीक्यूटिव संतोष कुमार रजक बताते हैं कि उमानाथ मंदिर नगर परिषद क्षेत्र में आता है, जबकि सती स्थान ग्रामीण क्षेत्र में है. यहां सरकारी जमीन उपलब्ध नहीं है. इसके बारे में कई बार वरीय अधिकारियों से भी बात की गई, पर आज तक जमीन की पहचान नहीं हो पाई.
वे कहते हैं कि अब तो रैयत से ही उम्मीद है कि वे अपनी कुछ जमीन मोक्ष धाम के लिए नगर परिषद को दान कर दें. ऐसे में यहां के लोगों का मोक्ष धाम का सपना अब तभी पूरा होगा, जब लोग अपनी जमीन नगर परिषद को दान कर दें.
रिपोर्ट: चंदन राय
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