Independence Day 2022: तिलका मांझी भारतीय स्वाधीनता संग्राम की लड़ाई के पहले शहीद थे. तिलका मांझी ने संथालों के प्रसिद्ध 'संथाल विद्रोह' का भी नेतृत्व किया था
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पटना: देश को आजाद हुए 75 साल पूरे हो गए हैं, लेकिन आज भी ऐसा लगता है मानों ये कल की बात हो. देश को आजादी ऐसे ही नहीं मिली इसके लिए कई वीर लोगों ने अपनी जान गंवाई है. कई माताओं की गोद सूनी हुई, तो कई बहनों से राखी बांधने वाली कलाई छिन गई. देश को आजाद कराने में न जाने कितने वीर हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए और कितने लोगों ने अंग्रेजों की गोलियां खाई. आज भी हम उन वीरों की जब बात करते हैं तो हमारा सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है.
भारत के स्वतंत्रता की लड़ाई की बात हो और उसमें बिहार का जिक्र न हो ऐसा मुमकिन ही नहीं है. आजादी के 75 साल पूरे होने पर हम आपको बिहार के पांच ऐसे वीर जवानों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्होंने आजादी की लड़ाई में अंग्रेजों की दांत खट्टे कर दिए.
तिलका मांझी
11 फरवरी 1750 में बिहार के सुल्तानगंज में जन्मे तिलका मांझी भारतीय स्वाधीनता संग्राम की लड़ाई के पहले शहीद थे. अंग्रेजी शासन के खिलाफ उन्होंने लंबी लड़ाई छेड़ी. तिलका मांझी ने संथालों के प्रसिद्ध 'संथाल विद्रोह' का भी नेतृत्व किया था. लोग उन्हें 'जाबरा पहाड़िया' के नाम से भी पहचानते थे.
वीर कुंवर सिंह
भारत मां को गुलामी के शिकंजे से आजाद कराने में कई वीर जवानों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इन्हीं क्रांतिकारियों में से एक थे वीर कुंवर सिंह. अपनी वीरता के लिए मशहूर इस स्वतंत्रता सेनानी का जन्म 13 नवम्बर 1777 में
बिहार के भोजपुर जिले के जगदीशपुर गांव में हुआ. 1857 में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ इन्होंने बिगुल फूंक दिया. इस आह्वान में ना तो कोई जाति था और ना तो कोई मजहब अगर कुछ था तो सिर्फ और सिर्फ देश भक्ति जो हर हाल में अपने देश को गुलामी की जंजीरों से छुड़ाना चाहता था. इसी आह्लान में बलिया के मंगल पांडे की बहादुरी ने देशभर में तहलका मचा दिया और बिहार के साथ-साथ देश के कई विद्रोह की आग भड़क उठी.
बाबू अमर सिंह
बाबू अमर सिंह बाबू कुंवर सिंह के सबसे छोटे भाई थे. जगदीशपुर छोटी रियासत होते हुए भी उसका प्रभाव बिहिया आदि स्थानों पर था. जगदीशपुर के जमींदार को मुगल सम्राट शाहजहां ने राजा की उपाधि प्रदान की थी. जगदीशपुर के अंतिम शासक राजा अमर सिंह ही थे. कुंवर सिंह के गद्दी छोड़ने के बाद अमर सिंह ने बिहार में 8 महीनों तक क्रांति का नेतृत्व किया था. कुंवर सिंह उस समय उत्तर पश्चिमी क्षेत्रों में लड़ने में व्यस्त थे.
सतीश चंद्र झा
अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन में पटना सचिवालय भवन के ऊपर तिरंगा फहराने वाले में सतीश चंद्र झा का नाम शामिल है. 1942 में गांधी के आह्वान पर अंग्रेजों भारत छोड़ो को लेकर हुए अगस्त क्रांति के समय 11 अगस्त दिन के दो बजे पटना के सचिवालय पर झंडा फहराने निकले थे. अंग्रेजी शासन के आदेश पर पुलिस ने देश के आजादी के दीवानों पर गोलियां बरसाई. इस हमले में सतीश चंद्र झा शहीद हो गए थे.
राजेंद्र सिंह
सारण जिले के नायागांव के रहने वाले राजेंद्र सिंह पटना सचिवालय भवन के ऊपर तिरंगा फहराने के दौरान शहीद हुए थे. उनका पूरा परिवार पटना के अनिसाबाद और दानापुर में रहता है. आज भी उनके परिवार के लोग उन्हें यादकर गर्व महसूस करते हैं. बता दें कि अगस्त क्रांति के समय 11 अगस्त दिन के भारत मां के 7 वीर सपूत पटना के सचिवालय पर झंडा फहराने निकले थे. तभी अंग्रेजों ने इन पर हमला कर दिया.
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