इसे कहते हैं बिहार का 'खजुराहो', आज अपनी बदहाली पर बहा रहा आंसू
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इसे कहते हैं बिहार का 'खजुराहो', आज अपनी बदहाली पर बहा रहा आंसू

बिहार के हाजीपुर का नेपाली मंदिर जो शिव को समर्पित है. यह पूरी तरह से लकड़ी का बना है. इसे देखने लोग आते तो हैं लेकिन जिस अव्यवस्था का शिकार यह मंदिर है उसके बाद इसे संभालने वाला कोई बचा नहीं है.

(फाइल फोटो)

पटना: बिहार जो कि हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध धर्म की आस्था का केंद्र है. यहां का इतिहास इतना समृद्ध रहा है कि एक जमाने में यहां से पूरे अखंड भारत का शासन चलता था. इसके साथ ही आपको बता दें कि बिहार में पुरातन कालीन कई ऐसे स्मारक और मंदिर हैं जिसके केवल अवशेष ही अब आपको मिल जाएंगे. सरकारी उदासीनता और रखरखाव का अभाव इन स्थलों के संजोने में बाधक बन गया. ऐसे ही बिहार में एक 'खजुराहो' भी है जो आज अपनी बदहाली पर आंसू  बहा रहा. 

बिहार का प्रसिद्ध वैशाली जिला जो जैन और हिंदू दोनों धर्म को मानने वालों के लिए प्रमुख आस्था के केंद्रों में से एक रहा है. यहां गंगा और गंडक के पवित्र संगम पर एक जगह है कोनहारा घाट. आप यहां पहुंचिए तो आपको जीवन और मृत्यु दोनों के साथ की शांति महसूस होगी. दरअसल यहां शवों को जलाने का काम होता है. ऐसे में यहां गंगा और गंडक के पवित्र संगम के इस घाट की शांति या तो मंदिर में लगी घंटी की आवाज से टूटती है या फिर राम नाम सत्य है के नारों से. यहां स्थित है मिनी खजुराहो जो बिहार का खजुराहो भी कहा जाता है. 

बिहार के हाजीपुर का नेपाली मंदिर जो शिव को समर्पित है. यह पूरी तरह से लकड़ी का बना है. इसे देखने लोग आते तो हैं लेकिन जिस अव्यवस्था का शिकार यह मंदिर है उसके बाद इसे संभालने वाला कोई बचा नहीं है. इस लकड़ी के बने मंदिर में काम कला के विभिन्न आसनों को ऐसे उकेरा गया है मानो आप खजुराहो आए हो और यहां आप इन चित्रों को निहार रहे हों. 

बताते हैं कि मंदिर का निर्माण नेपाली सेना के कमांडर मातंबर सिंह थापा ने कराया था. शायद यही वजह रही कि इस मंदिर को नेपाली मंदिर के नाम से जाना जाता है. आज यह मंदिर जर्जर हालत में पहुंच गया है. लोग यहां दिन में ताश खेलते और रात को कई लोग चारपाई लगाकर यहां सोते भी हैं, लेकिन एक समय था जब इस मंदिर को काफी ख्याति प्राप्त थी और लोग दूर-दूर से इसे देखने के लिए आते थे. 

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खजुराहो के मंदिर में भले पत्थर को तराश कर चित्र उकेरे गए हों लेकिन यहां तो लकड़ी पर यह काम कला की तस्वीरें बनाई गई हैं और इसे यहां मंदिर की दीवार पर सजाया गया है.पैगोडा शैली  में इस पूरे मंदिर को तैयार किया गया है. तकरीबन 500 साल पुराने इस मंदिर को आज देखने वाला कोई नहीं रहा है. सरकार ने भी इसकी सुधी नहीं ली है और यह बदहाली और अव्यवस्था का शिकार है. मंदिर की दीवारें ढह रही हैं तो यहां की लकड़ियों को दीमक खा रहे हैं. दीवारों को यहां आनेवाले लोगों ने अपनी ओछी हरकतों से गंदा कर रखा है. 

यह सरकार के द्वारा संरक्षित स्मारक के बाद भी इतनी बदहाल स्थिति में है कि क्या कहना. यहां मंदिर में भगवान शिव का एक शिवलिंग है. यहीं पास ही में एक कबीर मठ भी है. यहां से लगातार मूर्तियों की चोरियों होती रही. 2008 में यहां से सारी अष्टधातु की मूर्तियां गायब हो गईं. इस मंदिर में चारों दिशाओं से प्रवेश द्वारा बना हुआ है और काम कला के चित्रण के साथ मन पर नियंत्रण पाने के बारे में भी बताया गया है.  

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