लोकपर्व सतुआन के बारे में जानते हैं आप, क्यों माना जाता है इस दिन से मिथिला में नए वर्ष की शुरुआत
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लोकपर्व सतुआन के बारे में जानते हैं आप, क्यों माना जाता है इस दिन से मिथिला में नए वर्ष की शुरुआत

बिहार और यूपी के पूर्वी हिस्से में मनाया जाने वाला त्योहार सतुआन अपने आप में खास है. बैसाख के इस तपते महीने में जब धरती गर्म हो रही होती है जब सूरज का ताप लोगों को जला रहा होता है तो इस चढ़ते सूरज के ताप को सहने की क्षमता पाने का यह त्योहार सतुआन अपने आप में खास है.

(फाइल फोटो)

Sattuani Festival: बिहार और यूपी के पूर्वी हिस्से में मनाया जाने वाला त्योहार सतुआन अपने आप में खास है. बैसाख के इस तपते महीने में जब धरती गर्म हो रही होती है जब सूरज का ताप लोगों को जला रहा होता है तो इस चढ़ते सूरज के ताप को सहने की क्षमता पाने का यह त्योहार सतुआन अपने आप में खास है. इसे जुड़शीतल त्यौहार के नाम से भी बिहार के मिथिलांचल के लोग मनाते हैं और इससे मिथिला में नए वर्ष की शुरुआत का प्रतीक कहा जाता है. बता दें कि इस बार 15 अप्रैल को शनिवार के दिन यह त्यौहार होगा. 

प्रकृति के इस पर्व को एक बार ध्यान से देखिए तो आपको पता चलेगा कि इसको किस सिद्धांतों से जोड़ा गया है. बता दें कि सतुवान के एक दिन पहले बिहार के अंग क्षेत्र में 'टटका बासी' पर्व मनाया जाता है. पूर्वजों की कहावत आपको याद होगी चैत के नीम, बैसाख के बेल, जेठ मास पनियोतो ठेल...मतलब इस पर्व में सत्तु जिसकी तासीर ठंडी होती है और जेठ के महीने की शुरुआत से पहले पानी डला हुआ खाना. मतलब आप एक महीने के जाने और दूसरे महीने के आने की तैयारी करते हैं. 

बिहार में एक कहावत और भी है सत्तु के चार यार चोखा, चटनी, प्याज, अचार. मतलब आम की चटनी के साथ प्याज, अचार और सत्तु खाकर इस पर्व को मनाने की परंपरा है. इस दिन सूरज कर्क रेखा से दक्षिण की ओर जाना प्रारंभ करता है और इस दिन खरमास भी खत्म हो जाता है. यह मूलतः आम के नए फल के साथ खेतों में आई चने और जौ की नई फसल के स्वागत का त्योहार है. 

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यह पर्व मूलतः गर्मी के आ जाने की तरफ इशारा करता है, इसके साथ ही हम यह भी कह सकते हैं कि यह ग्रीष्म ऋतु के स्वागत का पर्व है. इसी दिन सूर्य का राशि परिवर्तन भी होता है. इसके एक दिन पहले मटके में पानी भरकर रखा जाता है और उसे अगले दिन पेड़ की जड़ों में डाला जाता है. इसी जल का पूरे घर में छींटा देते हैं. विषु कानी पर्व के रूप में इसे दक्षिण भारत में मनाया जाता है. यह पर्व भगवान विष्णु को समर्पित है. यहां भी यह मिथिला की तरह ही नव वर्ष का प्रतीक है. इस दिन सूर्य मीन राशि को छोड़कर मेष राशि में प्रवेश करेंगे. 

 

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