Bihar Diwas: बिहार का इतिहास क्यों इतना समृद्धशाली, एक बार अपनी नजरों से देखिए
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Bihar Diwas: बिहार का इतिहास क्यों इतना समृद्धशाली, एक बार अपनी नजरों से देखिए

बंगाल से अलग कर 22 मार्च 1912 को अंग्रेजों ने एक राज्य का गठन किया और नाम रखा बिहार. इसी समयांतराल में बंगाल से एक और राज्य अलग हुआ जिसका नाम था उडीसा जो आज का ओडिशा है. अंग्रेजों ने तब बिहार की राजधानी के रूप में पटना को चुना.

बिहार का गौरवशाली इतिहास

पटना: बंगाल से अलग कर 22 मार्च 1912 को अंग्रेजों ने एक राज्य का गठन किया और नाम रखा बिहार. इसी समयांतराल में बंगाल से एक और राज्य अलग हुआ जिसका नाम था उडीसा जो आज का ओडिशा है. अंग्रेजों ने तब बिहार की राजधानी के रूप में पटना को चुना. अब आप सोच रहे होंगे कि यह नाम 'बिहार' आखिर क्यों तो आपको बता दें कि इसका मतलब होता है मंदिर या मठ. मतलब आप इसके नाम से अंदाजा लगा सकते हैं कि बिहार किस समृद्धशाली ऐतिहासिक धरोहर का परिचायक है. जहां अनगिनत संख्या में मंदिर और मठ मौजूद थे. यह भारत के समृद्ध इतिहास का भी परिचायक रहा है. यहां सनातन संस्कृति से लेकर, सिख. जैन और बौद्ध धर्म तक सभी ने अपने आप को समय के साथ फलता-फूलता और बेहतर होता पाया.  

बिहार को पुराने जमाने में मगध के नाम से जाना जाता है. जी हां वही मगध जिसका साम्राज्य विस्तार इतना था कि आज के कई देश की सीमा उसमें सिमट जाए. इसकी राजधानी हुआ करती थी पाटलिपुत्र जिसे आज का पटना कहते हैं. पटना वह भी नाम क्यों तो आपको बता दें कि यहां माता पटन देवी का मंदिर है जिसके नाम पर इस शहर का नाम पटना रखा गया. बौद्ध धर्म के लोग यहां जहां निवास करते थे उसे विहार कहा जाता था जिसके नाम पर इसे बिहार कहा जाने लगा. हालांकि अंग्रेजों से पहले 12वीं शताब्दी में मुगल इस विहार की भूमि होने के कारण बिहार कहने लगे. यहां सबसे पहले गोपालवंश का शासन शुरू हुआ लेकिन बिम्बिसार को इस मगध राज्य  का वास्तविक संस्थापक माना जाता है. जिन्होंने राजगीर को अपनी राजधानी बनाई. 

बता दें कि बिहार के सबसे पुराने जिले की बात की जाए तो वह पूर्णिया है. जिसे 1170 में ईस्ट इंडिया कंपनी के जमाने में बनाया गया. वन क्षेत्र होने के कारण पूर्णिया को पूर्ण+अरन्य यानी पूर्ण जंगल से अच्छादित क्षेत्र कहा जाता रहा. यहीं की वह धरती है जिसने महावीर को जन्म दिया. उनका जन्म वैशाली में हुआ. वहीं इसी धरती पर भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई इसलिए यह ज्ञान की भूमि के नाम से भी जाना जाता है. हालांकि पाटलिपुत्र की स्थापना का श्रेय अजातशत्रु को जाता है. अजातशत्रु के बाद मगध की सत्ता शिशुनाग राजवंश के हाथ में चली गई.  इसके बाद नंद वंश ने यहां शासन किया जहां महापद्मानंद और धनानंद दो बड़े शासक हुए. यहां से इस साम्राज्य ने एक और समृद्धशाली छलांग लगाई और मौर्य वंश के हाथ में मगध की सत्ता गई. परम प्रतापी राजा चन्द्रगुप्त मौर्य ने यहां की गद्दी संभाली और इसका सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, धार्मिक और आर्थिक हर क्ष्त्र में विकास हुआ फिर बिन्दुसार से होते हुए यहां सम्राट अशोक तक का शासन चला. 

ये वही प्रदेश है जहां प्रभु श्रीराम की पत्नी माता जानकी यानी सीता का जन्म हुआ था. यहां शिक्षा के कई प्रमुख केंद्र रहे जिसमें नालंदा विश्वविद्यालय और विक्रमशिला विश्वविद्यालय प्रमुख थे. गुप्तवंश के समय तो यहां की शिक्षा व्यवस्था की चर्चा दुनिया भर के देशों में थी. तब यह एक समृद्ध राज्य था और उस युग को तब यहां का स्वर्ण युग कहा जाता रहा है. यहां शेरशाह सूरी ने भी राज किया. सासाराम में आज भी उसका मकबरा है. इस राज्य की सांस्कृतिक समृद्धि का अंदाजा इस बात से लागाया जा सकता है कि यहां रामायण के रचियता वाल्मिकी रहते थे. यहां की धरती पर भगवान महावीर और गुरु गोविंद सिंह ने जन्म लिया. यहां भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई.  बिहार की मुख्य भाषाओं में हिंदी, भोजपुरी, मैथिली, उर्दू,मगही, अंगिका बोली जाती है. आज यह जनसंख्या की दृष्टि से देश का तीसरा और क्षेत्रफल की दृष्टि से 12वां बड़ा राज्य है.

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