थावे में मां दुर्गा का मंदिर है. यहां पर नवरात्रि के दिनों में अच्छी खासी भीड़ देखने को मिलती है. लोगों का कहना है कि यहां पर आने वाले सभी श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं पूरी होती है.
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Gopalganj: नवरात्रि के त्यौहार की शुरुआत 26 सितंबर से हो गई थी. देश में नवरात्रि की चारों ओर धूम है. इन दिनों लोग अपने घरों में कलश की स्थापना करते हैं और उपवास रखते हैं. नवरात्रि में मां दुर्गा के 9 स्वरूपों की पूजा की जाती है. देश में मां के 52 शक्तिपीठ हैं. जिसमें से एक ऐसा ही देवस्थान गोपालगंज के थावे में है. यहां पर थावे मंदिर की बहुत अहमियत है. थावे में मां दुर्गा का मंदिर है. यहां पर नवरात्रि के दिनों में अच्छी खासी भीड़ देखने को मिलती है. इस मंदिर में बिहार समेत, आसपास के राज्य के श्रद्धालु भी माता के दर्शन और पूजन के लिए आते हैं. लोगों का कहना है कि यहां पर आने वाले सभी श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं पूरी होती है.
कई नामों से पुकारा जाता है मां दुर्गा को
यह मंदिर गोपालगंज जिला मुख्य से करीब 6 किलोमीटर दूर सिवान जाने वाले रास्ते पर थावे नामक स्थान पर है. यहां पर दुर्गा मंदिर थावे वाली का एक बहुत प्राचीन मंदिर है. मां थावे वाली को कई नामों से पुकारा जाता है. उन्हें सिंहासनी भवानी, थावे भवानी और रहषु भवानी कहा जाता है. हर साल शारदीय नवरात्रों में श्रद्धालुओं की भीड़ कई गुना बढ़ जाती है.
कामाख्या स्थान से चलकर पहुंची थी थावे
हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार मां अपने भक्त रहषु के बुलाने पर असम के कामाख्या स्थान से चलकर थावे पहुंची थी. बताया जाता है कि मां कामाख्या से चलकर कोलकाता से पटना पहुंची, जहां वे पटन देवी के नाम से जानी जाती हैं. इसके बाद वे आमी, जो कि छपरा जिले में मां दुर्गा का एक प्रसिद्ध मंदिर हैं, उसके बाद वहां से मां घोड़ा घाट पहुंची और फिर वहां से थावे पहुंची. जिसके बाद उन्होंने रहषु के मस्तक को दो हिस्सों में करके अपने दर्शन दिए.
जानिए क्या है इसके पीछे की कथा
कहानियों के अनुसार चेरो वंश के मनन सिंह थावे के राजा हुआ करते थे. राजा मनन सिंह अपने आप को मां दुर्गा का सबसे बड़ा भक्त बताया करते थे. बताया जाता है कि उनके शासन के दौरान थावे में अकाल पड़ गया था. लोग खाने को तरस रहे थे. वहीं, थावे में मां कामाख्या देवी का एक बहुत बड़ा भक्त रहषु रहता था. जो कि देवी मां की पूजा आराधना करता रहता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार रहषु मां दुर्गा की कृपा से घास काटता था और रात में देवी मां अपने सात बाघों पर सवार होकर आती थी. जिसके बाद वही घास रात में चावल में बदल जाती थी. वही चावल अगले दिन थावे के लोगों में बांट दिया जाता था. हालांकि राजा मनन सिंह को इस बात पर विश्वास नहीं था. राजा मनन सिंह रहषु को ढोंगी कहता था और उसने मां को बुलाने को कहा था. उसके बाद रहषु ने मां कामाख्या से प्रार्थना की और वे असम से कोलकाता, पटना और आमी होते हुए थावे पहुंची. जिसके बाद राजा के सभी भवन गिर गए और राजा की मौत हो गई.
वहीं, मां कामाख्या देवी ने जहां पर दर्शन दिए वहां, पर एक भव्य मंदिर है. इसके अलावा थोड़ी ही दूरी पर रहषु भगत का भी मंदिर बना हुआ है. लोगों का कहना है कि श्रद्धालु यहां पर मां के दर्शन के लिए आते हैं और उसके बाद सभी भक्त रहषु के भी दर्शन जरूर करते हैं, यदि भक्त रहषु के दर्शन नहीं करते हैं तो उनकी पूजा अधूरी रह जाती है. वहीं, मंदिर में हर साल अष्टमी के दिन बलि दी जाती है.
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