Pashupati Paras: रामविलास का साथ छूटते ही बुझ गई थी लालू की 'लालटेन'! क्या तेजस्वी को राजनीतिक विरासत वापस दिला पाएंगे पशुपति पारस?
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Pashupati Paras: रामविलास का साथ छूटते ही बुझ गई थी लालू की 'लालटेन'! क्या तेजस्वी को राजनीतिक विरासत वापस दिला पाएंगे पशुपति पारस?

Bihar Politics: लालू यादव और पासवान परिवार की दोस्ती काफी पुरानी है. पशुपति पारस के भाई दिवंगत पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान दोनों ने जेपी आंदोलन ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था. 2005 से पहले तक लालू यादव और रामविलास पासवान की दोस्ती काफी गहरी थी. 2005 में पुत्रमोह के कारण दोनों के रास्ते अलग हो गए. 

पशुपति पारस

Bihar Politics: चुनाव की गहमा-गहमी के बीच राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री पशुपति पारस काफी आशांत दिख रहे हैं. एनडीए में एक भी सीट नहीं मिलने से नाराज होकर उन्होंने मोदी सरकार से इस्तीफा दे दिया है. हालांकि, एनडीए से बाहर जाने पर अभी तक कोई फैसला नहीं लिया है. वह आगे की राजनीति के लिए मंथन करने में जुटे हैं और अपनी पार्टी के नेताओं से सलाह-मशविरा लेने के बाद ही कोई कदम उठाएंगे. वहीं राजद की ओर से उनके लिए महागठबंधन के दरवाजे खोल दिए गए हैं. लालू परिवार भी पारस का स्वागत करने के लिए तैयार बैठा है. राजद सुप्रीमो लालू यादव के बड़े बेटे और पूर्व मंत्री तेज प्रताप यादव ने कहा कि अगर वह (पशुपति पारस) महागठबंधन में आते हैं तो मैं उनका स्वागत करूंगा. सूत्रों के मुताबिक, पशुपति पारस को महागठबंधन में लाने के लिए लालू यादव ने ही संपर्क साधने का निर्देश दिया है. 

वैसे भी लालू यादव और पासवान परिवार की दोस्ती काफी पुरानी है. पशुपति पारस के भाई दिवंगत पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान दोनों ने जेपी आंदोलन ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था. लालू यादव, नीतीश कुमार, शरद यादव और रामविलास पासवान की चौकड़ी ने मिलकर जनता दल बनाई थी. इस चौकड़ी ने ही बिहार में पिछड़ों की राजनीति की नींव रखी और जबरदस्त सफलता पाई. हालांकि बाद में ये चौकड़ी बिखर गई और सबकी राहें अलग-अलग हो गईं. हालांकि, इसके बाद भी समय-समय पर एक-दूसरे के साथ खड़े दिखाई दिए. 2005 से पहले तक लालू यादव और रामविलास पासवान की दोस्ती काफी गहरी थी. 2005 में पुत्रमोह के कारण दोनों के रास्ते अलग हो गए. इसका असर ये हुआ कि उसके बाद लालू को सत्ता का सुख नहीं मिल पाया. बीच में दो बार नीतीश कुमार ने उनके बेटों को जरूर सत्ता में भागीदार बनाया, लेकिन वह भी अल्पसमय के लिए.

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अब लालू यादव पशुपति पारस के रूप में एक दलित नेता को अपने साथ जोड़ना चाहते हैं. जो रामविलास पासवान की तरह ही उन्हें फायदा दिला सके. उनका मानना है कि अगर पारस ने महागठबंधन का हाथ थाम लिया तो इससे तेजस्वी को फायदा ही होना है, नुकसान नहीं. सूत्रों के मुताबिक, राजद की ओर से पारस को दो सीटें देने का प्रस्ताव रखा गया है. महागठबंधन में आने पर पारस को हाजीपुर और समस्तीपुर सीट दी जा सकती है, लेकिन नवादा को लेकर पेंच फंस रहा है. इसे राजद अपने पास रखना चाहती है, जबकि इस सीट से अभी पारस की पार्टी रालोजपा के चंदन सिंह सांसद हैं. 

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बता दें कि अभी पशुपति पारस की सियासी ताकत का अंदाजा लगा पाना असंभव है, क्योंकि मोदी सरकार में मंत्री बनने के अलावा उनके पास कोई बड़ी उपलब्धि नहीं है. केंद्र में मंत्री बनने के बाद से पारस का बिहार से संबंध भी खत्म हो गया. उन्होंने ना तो कोई रैली की ना ही अपने जाति के वोटरों का सम्मेलन, जिसमें आई भीड़ उनकी ताकत को दिखाती. इतना ही नहीं पारस ने अलग पार्टी तो बना ली लेकिन उनकी पार्टी ने अभी तक कोई चुनाव नहीं लड़ा. हालांकि, इसके बाद भी उनके महागठबंधन में आने से राजद को कोई नुकसान नहीं होने वाला है. अलबत्ता वह एनडीए को ही डैमेज कर सकते हैं.

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