Lok Sabha Election 2024: चाहे कुछ भी हो जाए, पटनासाहिब और पाटलिपुत्र के अलावा इन सीटों पर समझौते के मूड में नहीं है भाजपा
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Lok Sabha Election 2024: चाहे कुछ भी हो जाए, पटनासाहिब और पाटलिपुत्र के अलावा इन सीटों पर समझौते के मूड में नहीं है भाजपा

Lok Sabha Election 2024: लोकसभा चुनाव 2019 की तुलना में लोकसभा चुनाव 2014 का सेनेरियो काफी हद तक बदल चुका है. बिहार की बात करें तो उपेंद्र कुशवाहा और जीतनराम मांझी पिछले चुनाव में राजद और कांग्रेस खेमे में थे, अब एनडीए खेमे में आ चुका है. अब राजद खेमे में कांग्रेस और वामदलों का ही साथ होगा. वीआईपी का अभी तक तय नहीं हुआ है कि वह कहां जाएगी. 

पीएम मोदी से मिले बिहार के दोनों डिप्टी सीएम (File Photo)

Lok Sabha Election 2024: नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) के एनडीए (NDA) में वापसी के बाद से बिहार भाजपा (Bihar BJP) को लेकर लगातार कयासबाजी हो रही है कि वह लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election 2024) में कितनी सीटों पर फाइट करेगी? सहयोगी दलों को कितनी सीटें देगी? पुराने सहयोगियों का क्या होगा? क्या नीतीश कुमार के चलते चिराग पासवान (Chirag Paswan) और उपेंद्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) का कद छोटा होगा? क्या होगा जब राजद (RJD), कांग्रेस (Congress) और वामदलों के खिलाफ भाजपा (BJP) का यह जंबो गठबंधन मैदान में उतरेगा? मोदी फैक्टर से सभी को आस है, लिहाजा नीतीश कुमार से मधुर संबंध या खटरपटर का अब कोई मतलब नहीं रह गया है. मतलब साफ है, चिराग पासवान, उपेंद्र कुशवाहा, जीतनराम मांझी (Jitanram Manjhi) और पशुपति कुमार पारस (Pashupati Kumar Paras) एनडीए में हैं और आगे भी रहेंगे. समय-समय पर इन सभी नेताओं ने NDA से बाहर जाने का गम झेल लिया है. अब सवाल यह है कि भाजपा इतने सारे दलों को कैसे एडजस्ट करने वाली है. यहां एक बात साफ कर देना चाहिए कि चाहे कुछ भी हो जाए, भाजपा शहरी सीटों (Urban Seats) पर किसी भी तरह के समझौते के मूड में नहीं है. वह सहयोगियों को एक सीट कम या ज्यादा दे सकती है पर शहरी सीटों पर किसी भी सहयोगी की दखलंदाजी को बर्दाश्त नहीं करने वाली.

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भाजपा को लेकर राजनीतिक विशेषज्ञ भी मानते हैं वह शहरी सीटों पर खुद चुनाव लड़ेगी और सहयोगियों को इन पर फटकने भी नहीं देगी. शहरी सीट भाजपा के लिए जीत की गारंटी हैं. पार्टी चाहे किसी को भी टिकट दे दे, जीत तय मानी जाती है. बिहार में भाजपा के हिस्से में पटना की दोनों सीटें पाटलिपुत्र और पटना साहिब के अलावा पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण, दरभंगा, मुजफ्फरपुर, मधुबनी और सारण सीट पर सहयोगी दलों से किसी तरह की बातचीत नहीं होगी. यानी इन सीटों को भाजपा की झोली में तय माना जा रहा है. 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने इन सीटों पर एकतरफा जीत दर्ज की थी. 

2019 में भाजपा के कोटे में कौन सी सीटें 

लोकसभा चुनाव 2019 में भाजपा ने सासाराम, उजियारपुर, सारण, महाराजगंज, शिवहर, मुजफ्फरपुर, अररिया, दरभंगा, मधुबनी, पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण, औरंगाबाद, बक्सर, आरा, पाटलिपुत्र, पटना साहिब और बेगुसराय सीटों पर चुनाव लड़ा था और इन सभी सीटों पर जीत हासिल की थी. वहीं जेडीयू की बात करें तो गया, भागलपुर, वाल्मीकिनगर, सीतामढ़ी, झंझारपुर, सुपौल, किशनगंज, कटिहार, मधेपुरा, पूर्णिया, बांका, मुंगेर, गोपालगंज, सीवान, काराकाट, जहानाबाद, नालंदा पर फाइट किया था.

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किशनगंज के अलावा जेडीयू सभी सीटों पर जीत गई थी. इसलिए जेडीयू की चाहत इस बार किशनगंज को छोड़ ​शिवहर सीट पर बढ़ गई है. आनंद मोहन के जेल से बाहर आने के बाद नीतीश कुमार को लगता है कि शिवहर सीट पर जेडीयू की स्वाभाविक दावेदारी बनती है. अब देखना यह है कि शिवहर सीट बीजेपी नीतीश कुमार की जेडीयू के लिए छोड़ती है या नहीं. 

लोजपा ने हाजीपुर, खगड़िया, वैशाली और जमुई के अलावा नवादा समस्तीपुर सीट पर लड़ाई लड़ी थी और सभी सीटों पर जीत गई थी.

लोकसभा चुनाव 2019 की बात करें तो उस समय राजद और कांग्रेस के अलावा उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी, हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा और विकासशील इंसान पार्टी एक साथ मिलकर चुनाव मैदान में थे. वामदल इस गठबंधन का हिस्सा नहीं था. राजद तब 19, कांग्रेस 9, उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी 5, हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा और विकासशील इंसान पार्टी 3-3 सीटों पर चुनाव मैदान में थे.

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2024 में क्या क्या बदल गया? 

2024 में माहौल कुछ बदला बदला सा है. नीतीश कुमार नए नए एनडीए में आए हैं तो चारों ओर फीलगुड का माहौल दर्शाया जा रहा है पर सीट शेयरिंग होने के बाद भी यही फीलगुड कायम रहे तो बड़ी बात होगी. कहा जा रहा है कि जेडीयू इस बार भाजपा के बराबर नहीं, कुछ कम सीटों पर चुनाव लड़ सकती है और उसे बिहार के बाहर यानी झारखंड और अरुणाचल प्रदेश में कुछ और सीटें दी जा सकती हैं. वहीं जेडीयू की ओर से खबर आ रही है कि वह बिहार में भाजपा के बराबर और बाकी स्टेट में भी हिस्सेदारी चाहती है. कुल मिलाकर एक टेबल पर बैठने के बाद क्या होता है, यह देखने वाली बात होगी. 

अगर जेडीयू बिहार में 17 से कम सीटों पर राजी नहीं होती है तो भाजपा के लिए बहुत ही असहज स्थिति सामने आ सकती है, क्योंकि ऐसे में भाजपा को अपनी 17 सीटों में से सहयोगियों को एडजस्ट करना पड़ सकता है. इससे पहले 2019 में भाजपा ने अपनी 5 सीटिंग सीटें नीतीश कुमार की जेडीयू को दे दी थी और इसे भाजपा के लिए बड़ा सेटबैक माना गया था. अब 17 सीटों में से भी अगर भाजपा को कुछ कुर्बानी देनी पड़ जाए तो यह बिहार ​भाजपा के लिए बहुत अच्छी स्थिति नहीं हो सकती.

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चिराग पासवान और जीतनराम मांझी ने अभी से ही भाजपा और जेडीयू पर दबाव बनाने की रणनीति अपनानी शुरू कर दी है. चिराग पासवान ने तो 11 सीटों पर अपने पर्यवेक्षकों की तैनाती भी कर दी है. अब अगर भाजपा और जेडीयू 17-17 सीटों पर चुनाव लड़ते हैं तो बाकी 6 सीटों में अन्य सहयोगी दल कैसे एडजस्ट किए जाएंगे. 2019 में तो इतनी सीटों पर अकेले लोजपा ने चुनाव लड़ा था और रामविलास पासवान राज्यसभा भी भेजे गए थे. 2019 में उपेंद्र कुशवाहा और जीतनराम मांझी राजद और कांग्रेस खेमे में थे तो इस बार वे दोनों भी इधर ही हैं.

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