बीजेपी एमएलसी ने फेसबुक पोस्ट लिखकर कहा है कि सही से जलनिकासी नहीं हो पाने के लिए जो जिम्मेदार हैं, वो कैसे पूरे मामले की जांच करेंगे.
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पटना: बिहार की राजधानी पटना के जलजमाव (Water Logging) पर सिासत थमने का नाम नहीं ले रही है. पक्ष-विपक्ष, बीजेपी-जेडीयू (BJP-JDU) के बाद अब एक ही पार्टी के नेता आमने-सामने हैं. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) एमएलसी सच्चिदानंद राय ने अब नगर विकास विभाग की जांच पर ही सवाल उठा दिया है. ज्ञात हो कि यह जांच बिहार सरकार में बीजेपी कोटे से नगर विकास मंत्री सुरेश शर्मा की तरफ से मामले की जांच करायी जा रही है.
बीजेपी एमएलसी (BJP MLC) ने फेसबुक पोस्ट लिखकर कहा है कि सही से जलनिकासी नहीं हो पाने के लिए जिम्मेदार हैं, वो कैसे पूरे मामले की जांच करेंगे. उन्होंने इसे पटना के लोगों के साथ मजाक करार दिया है. साथ ही कहा कि अगर जलजमाव के कारणों का पता लगाना है तो न्यायिक जांच कराएं. ज्ञात हो कि तीन सदस्यीय जांच टीम में नगर विकास के विशेष सचिव, बुडको के एमडी और पटना नगर आयुक्त शामिल हैं.
बीजेपी एमएलसी ने अपने फेसबुक पोस्ट में लिखा:-
पटना में रिकॉर्ड जलजमाव, जिसने पटना वासियों के जीवन को बर्बाद करके रख दिया है, इसके लिए दोषी अधिकारियों का पता लगाना और उन्हें 'एक्ज़ेम्पलरी पनिशमेंट'देना, जिससे कि भविष्य में कोई अधिकारी सरकारी कामों, नागरिकों के प्रति दायित्वों को हल्के में ना लें, ऐसी ही हमारी मांग है.
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अब देखिए इस मांग को सरकार ने स्वीकार तो किया है. एक जांच समिति भी गठित की है. लेकिन जिन अधिकारियों के आपराधिक लापरवाही की वजह से पटना वासियों को नारकीय जिंदगी जीने के लिए विवश होना पड़ा, आज वे अधिकारी ही इस जांच समिति के सदस्य बन बैठे हैं.
शहरी आधारभूत संरचना को दुरुस्त रखने की जिम्मेदारी नगर विकास विभाग का होता है. नगर विकास विभाग के विशेष सचिव जांच कमेटी के अध्यक्ष हैं. नालों का रखरखाव, सफाई, निर्माण आदि का काम होता है बुडको का. अब उसके ही प्रबंध निदेशक इस जांच कमेटी के दूसरे सम्माननीय सदस्य हैं. तीसरे सदस्य पटना नगर निगम के नवनियुक्त आयुक्त हैं. नगर निगम के आयुक्त पटना नगर निगम के मुख्य कार्यकारी अधिकारी होते हैं, सारा दायित्व ही उन्हीं का होता है. सड़कों की साफ-सफाई के साथ-साथ यदि कहीं पर सफाई, नाली की सफाई में आधारभूत संरचना की कमी पाई जाती है, तो उस विषय में सरकार के साथ संपर्क कर उसका समुचित निदान निकलने की जिम्मेदारी इन पर होती है. लेकिन पूर्ववर्ती नगर आयुक्त 3 सप्ताह पहले ही त्यागपत्र देकर हट चुके थे. नहीं तो वह भी जांच कमेटी के सदस्य होते.
इस तरह का मजाक पटना वासियों के साथ क्यों हो रहा है? यदि सरकार दोषियों को पहचानने और दंडित करने के लिए तत्पर है, तो अविलंब इसकी एक न्यायिक जांच करवानी चाहिए, जिसे सारे अधिकारियों एवं कर्मचारियों की गतिविधियों की जानकारी दी जाए और पता किया जाए कि इन सैकड़ो-हजारों करोडों रुपए, जिसे पटना की गलियों-मोहल्लों को रहने के लायक बनाए रखने के लिए खर्च किया जाता है, उसका किस प्रकार से दुरुपयोग हुआ? जिसके परिणाम स्वरूप पटना नरक में तब्दील हो गया है. यदि ऐसा नहीं होता है और लीपापोती का प्रयास किया जाता है, तो इसे पटना की जनता कितना बर्दाश्त करेगी आने वाला समय बताएगा.