Shaktipeeth: बिहार का ऐसा शक्तिपीठ जिसका मां वैष्णो देवी जम्मू कश्मीर से है सीधा र‍िश्‍ता
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Shaktipeeth: बिहार का ऐसा शक्तिपीठ जिसका मां वैष्णो देवी जम्मू कश्मीर से है सीधा र‍िश्‍ता

बड़हिया में स्थित मां जगदम्बा का एक ऐसा मंदिर जिसका न सिर्फ इतिहास बल्कि महत्व दोनों बड़ा अनूठा है. मां जगदम्बा का यह मंदिर ना सिर्फ बिहार बल्कि पुरे पूर्वांचल के लोगों के लिए आस्था और विश्वास का बड़ा केंद्र है.

(फाइल फोटो)

लखीसराय : बड़हिया में स्थित मां जगदम्बा का एक ऐसा मंदिर जिसका न सिर्फ इतिहास बल्कि महत्व दोनों बड़ा अनूठा है. मां जगदम्बा का यह मंदिर ना सिर्फ बिहार बल्कि पुरे पूर्वांचल के लोगों के लिए आस्था और विश्वास का बड़ा केंद्र है. जिले के बड़हिया नगर स्थित प्रसिद्ध शक्तिपीठ मां बाला त्रिपुरसुन्दरी जगदम्बा मंदिर में यू तो प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु माता के मंदिर में अपना मत्था टेककर मन की मुरादें मांगते हैं. 

मां वैष्णो देवी के संस्थापक ने की इस मंदिर की स्थापना 
हर मंगलवार और शनिवार को विशेष रूप से जय मां जगदम्बे तथा जय माता दी के जयघोष के बीच हजारों की संख्या में महिला एवं पुरूष श्रद्घालुओं माता के दर्शन करते हैं तथा मन्नतें मांगते हैं. मगर नवरात्र को मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ जमा होती है. कश्मीर की माता वैष्णो देवी के संस्थापक भक्त शिरोमणि श्रीधर ओझा द्वारा अपने पैतृक ग्राम बड़हिया में जनकल्याण के लिए स्थापित सिद्ध मंगलापीठ मां बाला त्रिपुरसुन्दरी का मंदिर आज भी लोक आस्था का केन्द्र बना हुआ है.  मां त्रिपुर सुंदरी अपने नाम के अनुसार समस्त देवियों में अपूर्व सुंदरी देवी हैं. उनका सफेद संगमरमर का विशाल 151 फीट ऊंचा मंदिर के गुंबज पर सजे स्वर्ण कलश दूर से ही श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है. इस मंदिर के निर्माण में करोड़ों रुपए खर्च हुए हैं. 

विषधर सांप के काटे की मौत इस दरबार में आ जाने पर नहीं होती 
बिहार की राजधानी पटना से लगभग 120 किलोमीटर दूर लखीसराय जिले के बड़हिया में स्थित है मां जगदम्बा का यह विख्यात मंदिर अपनी महिमा और असीम कृपा के लिए जाना जाता है. मां जगदम्बा का यह मंदिर कई मायनों में अनूठा है. अपने कृपालु आशीर्वाद और महिमा के कारण ही आज ना सिर्फ जिले भर के बल्कि बिहार के हर कोने से लोग यहां पहुचते हैं. मां जगदम्बा के इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि बड़े से बड़े विषधर सांप का विष, यहां विष ना होकर अमृत बन जाता है. मां जगदम्बा के प्रांगण की यही सबसे बड़ी विशेषता है. अगर किसी भी व्यक्ति को कोई भी विषधर सांप ने काटा है तो लोग तुरंत यहां पहुचते हैं. यहां पहुंचने के बाद व्यक्ति के शरीर में फैला सारा विष खत्म हो जाता है. 

भारतवर्ष में गंगा के किनारे इस पीठ के सिवा और कोई मंगलापीठ नहीं है
यहां के मुख्य पुजारी और श्रद्धालुओं की मानें तो आजतक किसी भी व्यक्ति की मृत्यु यहां पहुंचने के बाद सांप काटने के कारण नहीं हुई. इतना ही नहीं यहां आने वाले श्रद्धालुओं की कम से कम एक मुराद जरूर पूरी होती है.  भागवत में एक जगह उल्लेख है कि गंगा के तट पर भगवती का एक सिद्ध पीठ है, जो मंगलापीठ कहा जाता है. मान्यता यह है कि पूरे भारतवर्ष में गंगा के किनारे इस पीठ के सिवा और कोई मंगलापीठ नहीं है. यहां इस मंदिर के बगल से पहले गंगा नदी बहती थी. यह भी कहा जाता है कि जिस जमीन पर मां का मंदिर है वहां के आसपास पहले बढ़ई जाति लोगों का निवास था. इसलिए कालांतर में यह इलाका बड़हिया के नाम से प्रसिद्ध हुआ.

यहां चार पिंडियों में विराजती हैं त्रिपुर सुंदरी, महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती
इस शक्तिपीठ के बारे में कहा जाता है कि वैष्णो देवी के संस्थापक भक्त शिरोमणि श्रीधर ओझा की मां त्रिपुर सुंदरी ने दो शर्तों के साथ विनती स्वीकार कर ली थी उनकी प्रथम शर्त यह थी कि गंगा की मिट्टी की पिंडी में वह निवास करेंगी और उनकी दूसरी शर्त की श्रीधर ओझा को जल समाधि लेना पड़ेगा. ओझा ने मां की दोनों बात को माना और घाट वाले डीह पर मां त्रिपुर सुंदरी को मिट्टी की पिंडी में शास्त्रीय विधि से प्रतिष्ठित किया और इस प्रकार मृत्तिका की चार पिंडिया वहां पधारीं. इन पिंडियों में क्रमशः त्रिपुर सुंदरी, महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती विराजती हैं. श्रीधर ओझा ने मां भगवती के आदेश पर गंगा के तट पर जल समाधि ले ली. 

ऐसे तो यहां सालों भर लोगों की भीड़ जुटती है पर नवरात्र के महीने में मां जगदम्बा के दर्शन के लिए बिहार भर से लोग पहुंचते हैं. श्रद्धालु यहां पहुंचकर प्रसाद के रूप में नारियल चढ़ाते हैं. मंदिर के प्रांगण में नारियल चढ़ाने के लिए अलग स्थान का निर्माण किया गया है. मंदिर के बगल में ही मां के लिए चुनरी और प्रसाद का बाजार सजा है. सच्चे मन से मांगी गई हर मुराद मां जगदम्बा पूरा करती है. 
(रिपोर्ट- राज किशोर)

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