भागलपुर के प्रसिद्ध 'कतरनी चूड़े' के उत्पादन पर ग्रहण! राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री तक पहुंचने पर भी संशय
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भागलपुर के प्रसिद्ध 'कतरनी चूड़े' के उत्पादन पर ग्रहण! राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री तक पहुंचने पर भी संशय

Katarani Chura & Rice: भारत के साथ-साथ विदेशों में भी प्रसिद्ध 150 वर्षों की विरासत को संजोए भागलपुरी कतरनी चूड़ा व चावल के बेहतर उत्पादन पर इस वर्ष ग्रहण लग गया है. दरअसल, भागलपुर जिले में इस वर्ष समय पर बारिश नहीं होने के कारण धान का आच्छादन कम हुआ है.

भागलपुर के प्रसिद्ध 'कतरनी चूड़े' के उत्पादन पर ग्रहण! राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री तक पहुंचने पर भी संशय

भागलपुर: Katarani Chura & Rice: भारत के साथ-साथ विदेशों में भी प्रसिद्ध 150 वर्षों की विरासत को संजोए भागलपुरी कतरनी चूड़ा व चावल के बेहतर उत्पादन पर इस वर्ष ग्रहण लग गया है. दरअसल, भागलपुर जिले में इस वर्ष समय पर बारिश नहीं होने के कारण धान का आच्छादन कम हुआ है. विशेषकर प्रसिद्ध कतरनी धान की खेती इस वर्ष कम हुई है. साथ ही साथ अब इसके उत्पादन पर भी किसानों में संशय बरकरार है. आशंका है कि देश के महामहिम राष्ट्रपति ,प्रधानमंत्री समेत कई गणमान्य भी इस साल कतरनी चूड़ा का आनंद नहीं ले सकेंगे.

पूर्वांचल का धान का कटोरा
पूर्वांचल का धान का कटोरा कहे जाने वाले जगदीशपुर में बारिश नहीं होने के कारण इस वर्ष 100 से डेढ़ सौ एकड़ में ही खेती हुई है. लगातार बारिश नहीं होने के कारण फसल को नुकसान हुआ है. जिस समय धान की बालियां लाल होकर झुक जाती थी या धान कटाई की तैयारियां होती थी. इस वक्त खेतों में कतरनी धान हरे-भरे या कई खेतों में अब तक बालियों में फल नहीं फूट सके है. लिहाजा किसान परेशान है. जिले के जगदीशपुर सुल्तानगंज व सनहौला में धान की बेहतर पैदावार होती थी. इसके लिए भागलपुर को खास प्रसिद्धि मिली है. यहां की कतरनी की खास खुशबू व मौलिकता को देखते हुए ही भारत सरकार ने 2017 में इसे भौगोलिक सूचकांक (जीआई टैग) प्रदान किया था. 2020-21 में कतरनी धान की खेती 1400 एकड़ में की गई थी. इस वर्ष महज 50 से 60 प्रतिशत ही धान की खेती हो सकी है. 

सरकार ने ध्यान नहीं दिया
किसानों से बात करने पर उन्होंने बताया कि हर वर्ष के मुकाबले इस वर्ष पैदावार बहुत कम होने वाली है. कई किसानों ने कर्ज लेकर खेती की थी उनके सामने अब कर्ज चुकाने  की समस्या आने वाली है. जगदीशपुर इलाके के किसानों के कमाई का जरिया धान है. किसान जितेंद्र ने बताया कि इस बार मौसम ने साथ नहीं दिया और सरकार ने भी ध्यान नहीं दिया है. उपज इस बार कम होगा. अभी फसल पकने लगता था लेकिन अब तक हरा भरा ही है. 

पैकेजिंग और एक्सपोर्ट पर काम
वहीं जिलाधिकारी सुब्रत सेन ने बताया कि बारिश नहीं हो पाने के कारण धान का आच्छादन कम हुआ और उत्पादन भी कम होगा. कतरनी चावल और कतरनी चूड़ा की डिमांड रहती है. बेहतर मार्केटिंग, पैकेजिंग और एक्सपोर्ट पर काम कर रहे हैं. पिछले साल एपीडा के माध्यम से विदेशों में जर्दालु आम भेजा था. इस बार कतरनी चावल और चूड़ा को भेजने की तैयारी है.

इनपुट- अश्वनी कुमार

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