कोरोना के लोगों ने लिए ज्यादा कर्ज, बना चिंता का विषय
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कोरोना के लोगों ने लिए ज्यादा कर्ज, बना चिंता का विषय

कोरोना महामारी के बाद कारोबार में गिरावट आई है. ऐसे में दुनियाभर में बहुत से लोगों ने कर्ज लिया है. यह कर्ज 132 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच गया है.

कोरोना के लोगों ने लिए ज्यादा कर्ज, बना चिंता का विषय

कोरोना काल में लोगों को बहुत दिक्कत हुई. इस दौरान कई लोगों की जान चली गई तो कई लोगों के कारोबार बुरी तरह से प्रभावित हुए. इसी दौरान एक और काम हुआ है, वह यह कि लोगों ने ज्यादा कर्ज लेना शुरू कर दिया है. क्रेडिट रेटिंग एजेंसी केयरएज रेटिंग की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, कोविड-19 के बाद वैश्विक कर्ज में बढ़ोतरी एक बड़ी चिंता का विषय है. यह 2022 में 92 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया, जो वैश्विक जीडीपी का लगभग 92 प्रतिशत है.

132 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर पहुंचा ऋण
2020 की शुरुआत से अब तक लगभग 19 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर या वैश्विक सार्वजनिक ऋण का लगभग 20 प्रतिशत ऋण जमा हो चुका है. अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के आंकड़ों के मुताबिक, वैश्विक ऋण साल 2028 तक 132 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है. केयरएज रेटिंग्स की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि कोविड महामारी के बाद वैश्विक ऋण में बढ़ोतरी एक बड़ी चिंता के रूप में उभर कर सामने आई है. 

डिफ़ॉल्ट का जोखिम बढ़ा
2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद के विभिन्न ऋण चक्रों के विश्लेषण से पता चलता है कि कोविड के बाद ऋण के स्तर में तेजी से बढ़ोतरी की वजह से ऋण संकट में लगातार बढ़ोतरी हुई है, जिससे कम आय वाले देशों में डिफ़ॉल्ट जोखिम बढ़ गया है. केयरएज रेटिंग ग्रुप के प्रबंध निदेशक और सीईओ मेहुल पंड्या ने कहा, "महामारी के बाद एडवांस्ड और ईएमडीई में ऋण स्तर में तेजी से वृद्धि हुई है. कई उन्नत अर्थव्यवस्थाएं लो इंटरेस्ट रेट का फायदा उठा रही हैं. लेकिन अब, ब्याज दरें लंबी अवधि तक ऊंची रहने के साथ, उन्हें बढ़ती ऋण सेवा लागत का दर्द महसूस होगा."

ऋण संकट की मात्रा बढ़ी
केयरएज रेटिंग्स की मुख्य अर्थशास्त्री रजनी सिन्हा ने कहा, "वैश्विक ऋण में हालिया उछाल इसकी तेज बढ़ोतरी और भारी मात्रा दोनों में उल्लेखनीय है. ऋण के स्तर में तेज वृद्धि के साथ, ऋण संकट की मात्रा भी लगातार बढ़ रही है. 2020 के बाद से लगभग 19 अर्थव्यवस्थाएं या तो अपने ऋण दायित्वों पर डिफॉल्ट कर चुकी हैं या उसका पुनर्गठन किया है. चीन के ऋण में बढ़ोतरी ने भी संकट को बढ़ा दिया है, जिससे ऋण लेने वाले देशों को भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि ये ऋण अपेक्षाकृत अधिक ब्याज दरों पर आते हैं और इनके नियम और शर्तों में पारदर्शिता नहीं होती है."

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