Urdu poetry in Hindi: "वो मुझ को छोड़ के जिस आदमी के पास गया..."

Siraj Mahi
Oct 06, 2024

इतने घने बादल के पीछे, कितना तन्हा होगा चाँद

जिस तरह ख़्वाब मिरे हो गए रेज़ा रेज़ा, उस तरह से न कभी टूट के बिखरे कोई

मैं फूल चुनती रही और मुझे ख़बर न हुई, वो शख़्स आ के मिरे शहर से चला भी गया

हुस्न के समझने को उम्र चाहिए जानाँ, दो घड़ी की चाहत में लड़कियाँ नहीं खुलतीं

कुछ तो तिरे मौसम ही मुझे रास कम आए, और कुछ मिरी मिट्टी में बग़ावत भी बहुत थी

दुश्मनों के साथ मेरे दोस्त भी आज़ाद हैं, देखना है खींचता है मुझ पे पहला तीर कौन

अब तो इस राह से वो शख़्स गुज़रता भी नहीं, अब किस उम्मीद पे दरवाज़े से झाँके कोई

वो न आएगा हमें मालूम था इस शाम भी, इंतिज़ार उस का मगर कुछ सोच कर करते रहे

वो मुझ को छोड़ के जिस आदमी के पास गया, बराबरी का भी होता तो सब्र आ जाता

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