Girl Facing Problem During Periods in Village: महिलाओं में पीरियड या महावारी आना एक सामान्य प्राकृतिक जैविक प्रक्रिया है, जिसका सामना हर एक लड़की और महिला करती है. पहले लड़कियां पीरियड के बारे में बात करने में हिचकिचाती थी, लेकिन अब जमाना बदल गया है. इसे लेकर पुरुष समाज की सोच भी काफी हद तक बदल रही है. लेकिन आज भी भारत के कई ऐसे इलाके हैं, जहां पीरियड को धार्मिक तौर पर एक टैबू समझा जाता है, और इसके लिए बेटियों के साथ जानवरों से भी बदतर सुलूक किया जाता है. शहरों में जहां पीरियड के दौरान बेटियों के लिए साफ-सफाई के पूरे इंतेजाम है, वहीं गावों में आज भी बेटियां पीरियड्स के दौरान पुराने कपड़ों का इस्तेमाल करती हैं,जो कई बार उनकी सेहत के लिए नुकसानदेह साबित होता है. आज भी गावों और पहाड़ी इलाकों में ऐसी-ऐसी परंपराएं और अंधविश्वास हैं, जिसका शिकार हमारी बेटियों और बहनों को होना पड़ता है. पीरियड्स की आधी अधूरी जानकारी ने यहां सदियों से एक अंधविश्वास को जन्म दिया है, जिसकी वजह से आज भी महिलाओं पर तरह-तरह के प्रतिबंध लगाये जाते हैं. उत्तराखंड के बागेश्वर के कई गांवों में पीरियड्स के दौरान लड़कियों और महिलाओं को घर के अंदर एंट्री नहीं मिलती. इस दौरान वह किसी को छू भी नहीं सकती है. कई जगह पर उन्हें पूजा-पाठ भी नहीं करने दिया जाता है. लड़कियों को पीरियड्स के चारों दिन जानवरों के साथ गौशाला में रहना होता है. देखें वीडियो