Hajj Ek Farz: Two times prayer is performed simultaneously on Hajj यौमे अरफ़ा पर अल्लाह ताला सबसे ज़्यादा अपने बंदों को जहन्नुम की आग से रिहाई देता है क्योंकि इस दिन अल्लाह पाक बंदों के ज़्यादा क़रीब होता है. नबी अकरम सल्ललाहू अलेहीवासल्लम ने फ़रमाया कि अरफ़ा ही हज है और हज का मतलब मआरफ़त कराना या पहचानना है. रसूल अल्लाह ने फ़रमाया दिनों में सबसे ज़्यादा अफ़ज़ल दिन अरफ़ा का दिन है. बता दें कि अराफ़ात में मस्जिदे नमरा है जो मैदाने अराफ़ात के मग़रिबी किनारे पर वाक़े है. इस की कुछ हुदूद अराफ़ात के अंदर और कुछ बाहर हैं. ये एक तारीख़ी मस्जिद है. अरफ़ा के दिन ज़वाल में यानि नमाज़े ज़ुहर के वक़्त की इब्तेदा होते ही बग़ैर अज़ान के इमाम ख़ुतबा हज देंगे. इसे ख़ामोशी, तवज्जो, खुशू ओ ख़ुज़ू से सुन कर और समझ कर अमल का पुख़्ता इरादा किया जाता है. ख़ुतबा के बाद अज़ान होती है. और फिर ज़ुहर और असर की नमाज़ बाजमाअत अदा की जाती है. इमाम अगर मुसाफ़िर हो तो वो नमाज़ क़सर कर देंगे यानि नमाज़े ज़ुहर और नमाज़े असर दो-दो रकात पढ़ाएंगे. मुसाफ़िर आज़मीने हज उनके साथ क़सर नमाज़ अदा करेंगे जबकि जो मुसाफ़िर नहीं हैं वो इमाम के सलाम फेरने के बाद बाक़ी की नमाज़ अदा करेंगे.