Azadi ka Amrit Mahotsav 2022: आजादी की 75 साल की 75 कहानियों में आज हम आपको बताएंगे एक ऐसे वीरांगना की कहानी जिनके वीरता की कहानी अपने देश भारत के साथ साथ पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में भी सुनाई जाती है. जी हां मैं बात कर रहा हूं मुस्लिम स्वतंत्रता सेनानी "अबादी बानो बेगम" की. उनका जन्म साल 1854 में उत्तर प्रदेश के अमरोहा में हुआ था. अबादी बानो बेगम खूद तो देश की आजादी में अपनी भूमिका निभा ही रहीं थी. लेकिन साथ साथ अपने बेटों को भी आजादी की जंग के लिए तैयार कर रही थीं. उनके बेटों के नाम हैं मौलाना मोहम्मद अली जौहर और मौलाना शौकत अली. जो आगे चलकर खिलाफत आंदोलन के प्रमुख चेहरे बने. जब दोनों बेटों को अंग्रेजों ने जेल में डाल दिया तो उन्होंने उनकी ओर से एक बड़ी सभा को संबोधित किया और जोरदार भाषण दिया. यह पहला मौका था जब एक मुस्लिम महिला बुर्का पहनकर एक राजनीतिक सभा को संबोधित कर रहीं थी. इसके बाद आबिदा बानो देश के कोने कोने में जाकर लोगों को संबोधित करती और देश की महिलाओं को आजादी की लड़ाई में सहयोग करने का अपील करती. उनके इस लगन और जोश को देख लोगों ने उन्हें प्यार से बी अम्मा कह कर बुलाना शुरू किया.उनके इस काम को देखते हुए गांधीजी भी काफी प्रभावित हुए और उनका उदाहरण देकर बाकि महिलाओं को भी स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के लिए प्ररित करने लगे. अबादी बानो बेगम ने मौलाना हसरत मोहानी, बसंती देवी और सरोजिनी नायडू के साथ सभा को संबोधित किया. फिर साल आया 1924 का जब 13 नवंबर के दिन 73 साल की उम्र में अबादी बानो बेगम ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया. आपको बता दें कि 28 सितंबर 2012 को, नई दिल्ली में जामिया मिल्लिया इस्लामिया के कैंपस में बी अम्मा की याद में एक गर्ल्स हॉस्टल का नाम रखा गया था. तो इस कहानी में इतना ही बाकि ऐसी ही कहानियों के लिए बने रहे मेरे साथ और देखते रहे.