Azadi ka Amrit Mahotsav 2022: आजादी के 75 साल की 75 कहानियों में आज हम आपको बताएंगे एक ऐसे स्वतंत्रता सेनानी के बारे में. जिसे हिंदू-मुस्लिम एकता और जलियांवाला बाग़ के नायक के नाम से जाना जाता हैं. मैं बात कर रहा हूं. डॉ. सैफुद्दीन किचलू की जब भी बात होती है जलियांवाला बाग़ की तो सबसे पहले लोगों के जुबां पर जो नाम आता है वह है सैफुद्दीन किचलू का, सैफुद्दीन किचलू के बारे में कहा जाता है कि वह स्वतंत्रता आन्दोलन में पंजाब के इलाकों में सबसे ज्यादा सक्रिय रहने वाले सेनानियों में से एक थे. डां किचलू पेशे से एक वकील थे और हमेशा हिंदू-मुस्लिम एकता की बात करते थे. जब अंग्रेजों की सरकार ने रॉलेट एक्ट को पास किया तो उस कानून का विरोध भी सबसे पहले डां किचलू ने ही किया था. इस कानून के तहत अंग्रेज युद्ध के समय इमरजेंसी लगा सकते थे. और उस कानून को संवैधानिक मान्यता भी दे दी गई थी ताकि ब्रिटिश सरकार अपने खिलाफ हो रहे तमाम आंदोलन को कुचल सकें. लेकिन डां किचलू ने इस कानून का जमकर विरोध किया. सरकार के खिलाफ लोगों ने अहिंसक सत्याग्रह में भाग लिया जहां डॉ. सैफुद्दीन किचलू ने ऐसा भाषण दिया जिसको सुन वहां मौजूद तमाम लोगों में एक आग पैदा हुई जिसने अंग्रेजों के पसीने छुड़ा दिए. ब्रिटिश सरकार लोगों के अंदर की आग से इतना डर गई कि डां किचलू को गिरफ्तार कर लिया गया और फिर तारीख आई 13 अप्रैल 1919 वैसाखी का वह दिन जिसे सुन आज भी लोगों की रूह कांप जाती है. उस दिन तमाम लोग डां किचलू की रिहाई के लिए जलियांवाला बाग़ में सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे. लेकिन बिना किसी जानकारी के जनरल डायर ने निहत्थे लोगों पर करीब1600 राउंड गोलियां चलाईं, जिसमें सैंकड़ो लोगों ने अपनी जान गंवा दीं जिसे इतिहास में जलियांवाला बाग़ हत्या कांड का नाम दिया गया.