नहीं मिल रही लड़कियां; दूल्हे के पोशाक में अपना दर्द सुनाने कलेक्टर के पास पहुंची कुंवारों की टोली
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नहीं मिल रही लड़कियां; दूल्हे के पोशाक में अपना दर्द सुनाने कलेक्टर के पास पहुंची कुंवारों की टोली

Mahrashtra Solapur, Not getting girls for marriage bachelors reached collector: यह मामला महाराष्ट्र के सोलापुर जिले का है, जहां घोड़ों पर सवार करीब 50 'दूल्हों’ ने सोलापुर कलेक्टर से शादी कराने की मांग की है.  

नहीं मिल रही लड़कियां; दूल्हे के पोशाक में अपना दर्द सुनाने कलेक्टर के पास पहुंची कुंवारों की टोली

सोलापुरः देश की आबादी में महिला और पुरुषों का अनुपात बिगड़ने पर उसके बुरे नतीजे सामने आ रहे हैं. हरियाणा जैसे प्रदेश में सालों से नौजवान लड़के शादी के लिए इसलिए तरस रहे हैं कि वहां उनसे शादी करने के लिए लड़कियां नहीं हैं. अब ये स्थिति महाराष्ट्र में भी पैदा हो गई है. महाराष्ट्र के सोलापुर में जवान से लेकर अधेर उम्र के लगभग करीब 50 लोग, ढोल-बाजे के साथ शानदार शादी की पोशाक में दूल्हा बन घोड़ों पर सवार होकर कलेक्टर के पास पहुंचे थे. पूरी जुलूस के साथ पहुंचे इन दूल्हों ने कलेक्टर से अपनी शादी कराए जाने की मांग की. 

जुलूस का मकसद समस्या की तरफ ध्यान दिलाना  
एक गैर सरकारी संगठन ज्योति क्रांति परिषद की तरफ से आयोजित इस मार्च ने सोलापुर और उसके आसपास के जिलों के ग्रामीण इलाकों में एक बड़ी समस्या को उजागर करने का काम किया है, जहां शादी की उम्र निकली जा रही पुरुषों के लिए दुल्हनों की भारी कमी हो गई है. यहां शादी की मांग लेकर पहुंचे सभी दूल्हे शेरवानी और फिर कुर्ता-पायजामा पहनकर आए थे. वह अपने गले में तख्तियां भी लटकाए हुए थे. इस लंबे जुलूस का एकमात्र मकसद इस समस्या की तरफ सरकार का ध्यान दिलाना था. 

“मेरी शादी होगी या नहीं?“
दूल्हें के हाथों और गले में लटकी तख्तियों पर लिखे गए शब्द कुछ इस तरह के थे, ’एक पत्नी चाहिए, एक पत्नी!’ मुझसे शादी करने के लिए कोई भी एक लड़की दे सकता है?’ ’सरकार, होश में आओ और हमसे बात करो’, तुम्हें हमारी दुर्दशा पर ध्यान देना होगा’. 12 साल के एक नाबालिग बच्चे विक्की सैडिगल ने अपनी तख्ती पर लिखा था, “मेरी शादी होगी या नहीं?“ जुलूस कलेक्ट्रेट पर खत्म हुआ, जहां दूल्हों ने मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नाम एक ज्ञापन सोलापुर के कलेक्टर मिलिंद शंभरकर को सौंपा है.

20 साल से खोज रहा लड़की, नहीं मिली कामयाबी 
दूल्हा बनने की चाह रखने वाले 40 वर्षीय लव माली ने बताया,  "मेरा पूरा परिवार दो दशक से ज्यादा वक्त से एक दुल्हन खोज रहा है, लेकिन आजतक कामयाबी नहीं मिली.’’ 39 साल के किरण टोडकर ने कहा, "मैं पिछले 20 वर्षों से विभिन्न सोशल मीडिया साइटों पर अपनी तस्वीरें, बायो डाटा और पारिवारिक डिटेल अपलोड कर रहा हूं, लेकिन 'हिट’ नहीं मिला. यहां तक कि धार्मिक इवेंट और मैच-मेकिंग कार्यक्रमों में भी हिस्सा लिया, लेकिन कोई लड़की नहीं मिली.’’ एक निजी कंपनी में एक अधिकारी 38 वर्षीय मनोज बदला हुआ नाम ने कहा,  "मेरे माता-पिता लोगों को सड़कों पर, बसों में, मंदिरों में या सामाजिक समारोहों में रोकते हैं, और कहते हैं कि बेटे की शादी के लिए एक लड़की चाहिए, लेकिन किसी ने लड़की नहीं बताई.’’

खाते-पीते घरों के लड़के कुंवारे रहने पर मजबूर 
इस जुलूस का आयोजन करने वाले गैर सरकारी संगठन के अध्यक्ष रमेश बारस्कर ने कहा, "बुधवार के जुलूस में सभी हताश कुंवारे लोग शामिल हुए थे. उनकी उम्र 25-40 के बीच थी. उनमें से ज्यादातर पढ़े-लिखे और सम्मानित मध्यवर्गीय परिवारों से थे ताल्लुक रखते हैं, जिनमें कुछ किसान, कुछ निजी कंपनियों में काम करने वाले भी शामिल थे.’’ बारस्कर कहा, "महिला-पुरूष अनुपात बिगड़ने की वजह से योग्य पुरुषों को भी विवाह के लिए लड़कियां नहीं मिलती हैं. स्थिति इतनी खराब है कि वे किसी भी लड़की से शादी के लिए तैयार हैं, उनके लिए जाति, धर्म, विधवा, अनाथ, कुछ मायने नहीं रखता है."

महाराष्ट्र में 1,000 लड़कों पर 920 लड़कियां
जनवरी 2022 में 'बेटी बचाओ’ आंदोलन शुरू करने वाले पुणे के डॉ. गणेश राख ने कहा, "भारत में आधिकारिक रूप से 1,000 लड़कों पर 940 लड़कियां हैं, पर महाराष्ट्र में 1,000 लड़कों पर 920 लड़कियां हैं. वहीं, केरल में 1,000 लड़कों पर 1,050 लड़कियां हैं. हालांकि देश के बाकी हिस्सों के आंकड़े काफी भ्रामक हैं. ग्रामीण क्षेत्रों या मध्यम और निम्न-मध्यम वर्ग के लड़कों में बड़ी समस्याएं हैं, जिन्हें लड़कियां नहीं मिलती हैं. डॉ. राख ने चेतावनी दी है कि अगर तत्काल उपाय नहीं किया गया तो स्थिति और खराब हो जाएगी." 

बुराईयों की तरफ मुड़ रहे हैं कुंवारे लड़के 
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता और मोहोल शहर के पूर्व परिषद प्रमुख बारस्कर ने कहा, "अध्ययन से पता चलता है कि शादी के लिए लड़कियां सरकारी नौकरी, आर्मी या फिर विदेशों में काम करने वाले लोगों को चुनना चाहती हैं, या फिर मुंबई और पुणे जैसे बड़े शहरों में नौकरी करने वाले लोग उनकी पहली पसंद होती है. जो लोग पहले से ही शहरों में रह रहे हैं, वे अलग-अलग वजहों से गांव में आना नहीं चाहते हैं, जबकि वे बहुत अमीर परिवारों से नहीं हैं." बारस्कर ने कहा, "वक्त पर शादी नहीं होने का नतीजा अविवाहित पुरुषों के लिए विनाशकारी साबित हो रहा है. वह बुराईयों की तरफ मुड़ जाते हैं, या शराब पीने लगते हैं. अभिभावक भी अपने अविवाहित बेटों की चिंता से बीमारियों का शिकार हो जा रहे हैं." 

Zee Salaam

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