UP News: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने लिव-इन रिलेशनशिप को लेकर बड़ी टिप्पणी की है. कोर्ट का कहना है कि लिव-इन रिलेशन को पेरेंट्स नहीं कर सकते मना, चाहे पार्टनर का धर्म अलग क्यों न हो.
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UP News: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने लिव-इन रिलेशन में रह रहे कपल को लेकर बड़ी टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा है कि अगर बच्चे अपने पार्टनर के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे हैं तो उनके माता पिता इसमें दखल नहीं दे सकते, फिर चाहे मजहब अलग ही क्यों न हो. इसके साथ ही कोर्ट ने कहा है कि लिव में रह रहे अंतरधार्मिक जोड़े को धमकी मिलने पर उन्हें पुलिस सुरक्षा मुहैया कराई जाए.
एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक बालिग याचिकाकर्ता ने इलाहाबाद कोर्ट का दरवाजा खटखटाते हुए गुजारिश कहा था कि उसकी मां और रिश्तेदार उसके पार्टनर संग उसके रिश्ते के खिलाफ हैं. पिटीशनर ने कहा था कि वह उसकी अच्छी खासी जिंदगी में खलल डाल रहे हैं और उन्हें परेशान कर रहे हैं. उसकी मां ने उन्हें जान से मारने की धमकी दी है और उसे ऑनर किलिंग का खतरा है.
इसी मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने ये टिप्पणी की है. अदालत जाने से पहले याचिकाकर्ता ने गौतमबुद्ध नगर पुलिस से सुरक्षा की मांग की थी, लेकिन उस पर कोई कार्रवाई नहीं की गई थी. इलाहाबाद हाईकोर्ट में पिटीशनर ने कहा कि वह आने वाले सालों में शादी करना चाहते हैं. वह शांति से रहना चाहते हैं इसलिए उन्होंने रिश्तेदारों के खिलाफ कोई एफआईआर दर्ज नहीं कराई.
अदालत में इस मसले का सरकारी वकील ने विरोध किया और कहा कि दोनों पिटीशनर अलग-अलग मजहब से ताल्लुक रखते हैं और मुस्लिम पर्सनल लॉ में लिव इन रिलेशनशिप में रहना ज़िना है. उन्होंने किरण रावत मामले का हवाला देते हुए कहा कि इलाहबाद हाई कोर्ट ने पहले लिव-इन-रिलेशनशिप में एक साथ रहने वाले जोड़ों को हिफाजत देने से इनकार कर दिया था.
जिस पर कोर्ट ने कहा कि किरण रावत मामले में हालात अलग थे और उसमें ये आम नियम नहीं माना गया था कि लिव-इन रिलेशन में रहने वाले जोड़े हिफाजत के हकदार नहीं है. कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के अलग-अलग फैसलों पर भरोसा जताते हुए कहा कि याचिकाकर्ता जो जवान हैं, वह लिव-इन रिलेशनशिप में एक साथ रहने के लिए आजाद हैं.
इस मामले को लेकर जस्टिस सुरेंद्र सिंह-I की पीठ ने कहा कि मामले के फैक्ट्स, हालातों और सुप्रीम कोर्ट के जरिए अपने फैसलों में निर्धारित कानून को ध्यान में रखते हुए, इस अदलात की राय है कि याचिकाकर्ता एक साथ रहने के लिए आजाद हैं. अगर पिटीशनर की पुरसुकून जिंदगी में कोई खलल पैदा होता है, तो याचिकाकर्ता इस आदेश की एक कॉपी के साथ पुलिस अधीक्षक से राबता कर सकते हैं, जो याचिकाकर्ताओं को तत्काल सुरक्षा प्रदान करेंगे.