बांग्लादेश को खोने के 52 साल बाद पाकिस्तान ने बांगला भाषा से तोड़ा अपना रिश्ता; पास किया ये नया कानून
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बांग्लादेश को खोने के 52 साल बाद पाकिस्तान ने बांगला भाषा से तोड़ा अपना रिश्ता; पास किया ये नया कानून


Pakistan news: पाकिस्तान अलग देश बना तब  पूर्वी बंगाल के कई प्रमुख राजनीतिक नेता मुस्लिम लीग का हिस्सा हुआ करते थे. ये मुख्यरूप से वो नेता थे जो  धार्मिक आधार पर ब्रिटिश भारत के विभाजन का समर्थन किया था. लेकिन पाकिस्तान के बनने के बो वर्ष बाद पता चला कि जो धार्मिक आधार पर बना पाकिस्तान का लक्ष्य कुछ अलग है.

बांग्लादेश को खोने के 52 साल बाद पाकिस्तान ने बांगला भाषा से तोड़ा अपना रिश्ता; पास किया ये नया कानून

Delhi News: हिन्दुस्तान से अलग होने के बाद ही पाकिस्तान में धार्मिक कट्टरताओं के साथ ही भाषाओं का कट्टरता भी सामने आने लगी. इसी को लेकर के पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान के बीच मतभेद शुरु हो गया. भारत ने पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान दोनों  को भौतिक रूप से अलग कर दिया. और नया देश को अस्तित्व में आया नाम पड़ा बांग्लादेश.जिसे पहले पूर्वी पाकिस्तान के नाम से जाना जाता था. पश्चिम को औपनिवेशिक युग के पंजाब, सिंध, बलूचिस्तान और उत्तर-पश्चिम सीमांत प्रांत के कुछ हिस्सों से बनाया गया और पूर्व को बंगाल,असम और त्रिपुरा के कुछ हिस्सों को पूर्वी बंगाल में मिलाकर बनाया गया.

जब भारत से पाकिस्तान अलग देश बना तब  पूर्वी बंगाल के कई प्रमुख राजनीतिक नेता मुस्लिम लीग का हिस्सा हुआ करते थे. ये मुख्यरूप से वो नेता थे जो  धार्मिक आधार पर ब्रिटिश भारत के विभाजन का समर्थन किया था. लेकिन पाकिस्तान के बनने के बो वर्ष बाद पता चला कि जो धार्मिक आधार पर बना पाकिस्तान का लक्ष्य कुछ अलग है. यानी इस्लामीवादी राजनीति से अलग राजनीतिक लक्ष्य.

अविभाजित बंगाल के अंतिम प्रधान मंत्री हुसैन शहीद सुहरावर्दी 1949 में अवामी मुस्लिम लीग बनाने के लिए अन्य बंगाली राजनेताओं के साथ शामिल हुए.अवामी मुस्लिम लीग के संस्थापक अध्यक्ष अब्दुल हामिद खान भशानी थे औऱ जिन्हें मौलाना भशानी के नाम से जाना जाता था. और उस समय के युवा नेता  'बंगबंधु' शेख मुजीबुर रहमान पार्टी में शामिल होने वाले कई बंगाली युवाओं में से एक थे.

बंगाली आबादी को सुहरावर्दी सरकार से कोई लाभ नहीं हुआ 
लेकिन सुहरावर्दी और कुछ अन्य बंगाली नेताओं ने पाकिस्तान का नेतृत्व किया और शीर्ष पदों पर बने रहे.और इससे पाकिस्तान की बंगाली आबादी को लाभ नहीं हुआ जिसके कारण वो  महसूस किया कि बहुसंख्यक होने के बावजूद भी पूर्वी पाकिस्तानियों का कल्याण प्राथमिकता सूची में कम था. लेकिन पूर्वी बंगाल से ( वर्तमान में बांग्लादेश ) आर्थिक लाभ, टैक्स डॉलर और सहायता का बड़ा हिस्सा पश्चिमी पाकिस्तान को जाता था.

भाषाओं और संस्कृति के कारण 
लेकिन इसका मुख्य मुद्दा भाषाओं के कारण  जिसने दो प्रांतों के बीच अंतर पैदा किया. और वह पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान के बीच भाषाई और सांस्कृतिक अंतर से संबंधित था. वर्षों से पाकिस्तान की भाषा और संस्कृति को समरूप बनाने के लिए पश्चिम पाकिस्तानी नेताओं द्वारा कई प्रयास किए गए. 

जिन्ना उर्दू को बंगालियों पर थोपना चाहते थे
पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना एक उर्दू वक्ता नहीं  होने के कारण भी वो उर्दू भाषा को पूरे देश में थोपना चाहते थे. 1948 में जिन्ना की मात्र पूर्वी पाकिस्तान की एक यात्रा के दौरान, उन्होंने बंगाली को पाकिस्तान की संघीय भाषा बनाने से इनकार कर दिया था.

पश्चिमी पाकिस्तान के निवासी स्वयं अनेक भाषाएं बोलते थे. पाकिस्तान के पूर्वी प्रांत में, बहुसंख्यक बंगाली बोलते थे. मुस्लिमों की एक अल्पसंख्यक हिंदी भाषी आबादी थी जो विभाजन के बाद उत्तर प्रदेश और बिहार से पलायन कर गई थी. 1947 में इसके निर्माण पर पाकिस्तान ने बंगाली को राष्ट्रीय भाषाओं की सूची से हटा दिया था.

सिर्फ 7 प्रतिशत लोग ऊर्दू बोलते थे
छात्रों ने मार्च 1948 से विरोध की लहर शुरू की औऱ उनके विरोध को जिन्ना और पाकिस्तान के बाद के शासकों ने नजरअंदाज कर दिया लेकिन जिन्होंने इस तथ्य की अनदेखी की कि 55 प्रतिशत पाकिस्तानी बांग्ला बोलते हैं और केवल 7 प्रतिशत उर्दू बोलते हैं.

21 फरवरी 1952 को ढाका विश्वविद्यालय में पुलिस ने पांच प्रदर्शनकारी छात्रों को गोलियों से भून दिया. जिसके बाद जब भाषा पर संघर्ष शुरु हो जाता है. इसने एक जन आंदोलन को प्रेरित किया जिसे एकुशे (शाब्दिक रूप से, 'इक्कीसवां') आंदोलन कहा जाता है. उस तारीख को छात्र शहीद के सम्मान के लिए  पाकिस्तान के पश्चिम पाकिस्तानी प्रभुत्व वाले नेतृत्व ने प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए पूर्वी बंगाल का नाम बदलकर पूर्वी पाकिस्तान कर दिया.

गहरी तनाव के बाद भी पूर्वी पाकिस्तान के राजनीतिक नेताओं ने पाकिस्तान की राष्ट्र-निर्माण प्रक्रिया में भाग लेना जारी रखा था. और दोनों विंग 1956 में एक संविधान बनाने में कामयाब रहे जिसने संसदीय लोकतंत्र का वादा किया.

अक्टूबर 1958 में, पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल अयूब खान ने पाकिस्तान के पहले सैन्य तख्तापलट में तत्कालीन राष्ट्रपति इस्कंदर मिर्जा से सत्ता छीन ली और मिर्जा ने खुद संविधान को निलंबित कर दिया था और उससे कुछ हफ्ते पहले ही सत्ता पर कब्जा कर लिया था। एक बंगाली मूल के सैनिक से नौकरशाह बने मेजर जनरल मिर्जा मीर जाफर के प्रत्यक्ष वंशज थे. जिन्होंने प्लासी की लड़ाई के दौरान गुप्त रूप से ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ गठबंधन किया था.

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