'हर हर महादेव' पर पाबंदी लगाने की मांग, हक़ीक़त के साथ छेड़ख़ानी करने पर हंगामा
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'हर हर महादेव' पर पाबंदी लगाने की मांग, हक़ीक़त के साथ छेड़ख़ानी करने पर हंगामा

Har Har Mahadev: कंट्रोवर्सी से घिरी मराठी फिल्म 'हर हर महादेव' के प्रोड्यूसर और डायरेक्टर की मुश्किलें  कम होती नज़र नहीं आ रही हैं. राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) की तरफ़ से फिल्म पर पाबंदी लगाने की मांग की गई है.

'हर हर महादेव' पर पाबंदी लगाने की मांग, हक़ीक़त के साथ छेड़ख़ानी करने पर हंगामा

Har Har Mahadev: कंट्रोवर्सी से घिरी मराठी फिल्म 'हर हर महादेव' के प्रोड्यूसर और डायरेक्टर की मुश्किलें  कम होती नज़र नहीं आ रही हैं. राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) की तरफ़ से फिल्म पर पाबंदी लगाने की मांग की गई है. एनसीपी लीडर महेश तपासे ने डिमांड की है कि सेंसर बोर्ड जिसने इसे हरी झंडी दी, वो इस फिल्म को फिर से देखे और इसको बैन करे. इससे पहले 7 नवंबर को एनसीपी लीडर और एक्स मिनिस्टर जितेंद्र अव्हाड ने ठाणे में फिल्म की स्क्रीनिंग रोक दी और वर्कर्स के साथ प्रोटेस्ट किया. इसके अलावा मेकर्स को मराठा महासंघ, संभाजी ब्रिगेड और दूसरी आर्गेनाईज़ेशन की तरफ से क़ानूनी नोटिस भेजा गया है. 

कई आर्गेनाईज़ेशन की तरफ़ की एहतेजाज
कई आर्गेनाईज़ेशन का इल्ज़ाम है कि फिल्म 'हर हर महादेव' में कई सीन ऐसे हैं, जो हिस्ट्री से मेल नहीं खाते. नाराज़ तंज़ीमों (संगठनों) ने फिल्म के प्रोड्यूसर और डायरेक्टर को 13 सवालों की एक लिस्ट भी भेजी है और उनके जवाब 7 दिनों के अंदर मांगे हैं. तंज़ीमों का इल्ज़ाम है कि सिनेमैटिक लिबर्टी के नाम पर फिल्म डायरेक्टर ने अपनी ज़िम्मेदारी पूरी नहीं की और तारीख़ (इतिहास) को ग़लत तरीक़े से पेश किया है.

'हक़ीक़त के साथ की गई छेड़ख़ानी'
मराठा हिस्ट्री टीचर श्रीमंत कोकाटे ने शिवाजी महाराज पर बनी 'हर हर महादेव' फिल्म की सख़्त मुख़ालेफ़त की है. कोकाटे का कहना है कि हक़ीक़त के साथ छेड़ख़ानी की गई है और इससे ये सवाल उठता है कि क्या इसके पीछे कुछ अलग वजह है? उन्होंने कहा, "फिल्म देखने के बाद ऐसा लगता है कि सब कुछ बाजी प्रभु ने किया है और इतिहास में शिवाजी ने कुछ नहीं किया. सिनेमैटिक लिबर्टी होनी चाहिए, लेकिन इतिहास के साथ आप खिलवाड़ नहीं कर सकते".

नोटिस में ये इल्ज़ाम लगाए गए
क़ानूनी नोटिस में इल्ज़ाम लगाया गया कि फिल्म में दिखाए गए कई सीन इतिहास से परे हैं. सिनेमैटिक लिबर्टी के नाम पर फिल्म में इतिहास को तोड़ मरोड़ कर पेश किया गया और डायरेक्टर अपनी ज़िम्मेदारी से बचते नज़र आए. छत्रपति शिवाजी महाराज को कई ज़बानों का इल्म था, लेकिन इस फिल्म में सिर्फ यह बताने की कोशिश की गई है कि उन्हें मराठी ज़बान से ही प्यार था. अफज़ल ख़ान का जब शिवाजी ने वध किया तब बाजी प्रभु देशपांडे वहां मौजूद नहीं थे. ये हिस्ट्री में है, लेकिन फिल्म में उनकी मौजूदगी दिखाई देती है.

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