नवरात्र के पहले दिन घट स्थापना का विधान होता है. घट स्थापना के समय पूजा स्थल पर थोड़ी मिट्टी रखी जाती है और फिर इस मिट्टी पर जौ के दाने डाले जाते हैं, जिस पर कलश यानी घट को रखा जाता है.
ये जौ नवरात्रि के नौ दिनों के भीतर हरे भरे हो जाते हैं. मान्यता है कि ये जौ जितने गहरे और घने होते हैं, मां की कृपा से उस घर में उतनी ही शांति और समृद्धि आती है.
मान्यता है कि नवरात्रों में जौ बोना बेहद शुभ होता है. इसके बिना नवरात्रि की पूजा को संपन्न नहीं माना जाता है.
शास्त्रों की मानें तो यह वैदिक धर्म में ही नहीं, बल्कि पृथ्वी की रचना में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. मान्यता है कि जब ब्रह्मा जी ने पृथ्वी का निर्माण किया था तब सबसे पहली जौ की फसल बोई थी. शास्त्रों में जौ को ब्रह्म स्वरूप भी माना गया है.
शास्त्रों में जौ को सोने के समान अनमोल माना गया है. मान्यता है कि जो व्यक्ति सोना खरीदने के लिए समर्थ नहीं है, वह अपने मंदिर में एक मुट्ठी जौ रख ले तो वह भी सोने के समान ही फल देगा.
जौ बोने के लिए सबसे पहले साफ जगह की मिट्टी लें. ध्यान रहे यह मिट्टी काले रंग की नहीं होनी चहिए. बता दें, जौ बोने के लिए शुभ मुहूर्त का भी ध्यान रखना जरूरी होता है.
जौ के पात्र को मंदिर की उत्तर-पूर्व दिशा यानि ईशान कोण में रखना चाहिए. इसमें नियमित रूप से रोजाना जल का छिड़काव करते रहना चाहिए.
जौ घर में खुशहाली लाने का काम करते हैं. अगर जौ 2 से 4 दिन में उग आते हैं तो यह उन्नति, समृद्धि और खुशहाली का संकेत होता है. ऐसे घर में कभी भी धन की कमी नहीं होती है.
अगर जौ 4 से 5 दिन में होते हैं तो इससे पता लगता है कि आपको अपने कार्य में अधिक मेहनत और परिश्रम करने की आवश्यकता है.
नवरात्रि के नौ दिन बाद यानी नवरात्रि समाप्त होने के बाद दसवें दिन सूर्योदय से पहले जौ को बहते पानी में प्रवाहित कर देना चाहिए.
ध्यान रहे पात्र में से थोड़े से जौ निकालकर लाल कपड़े में बांधकर अपनी तिजोरी में रखें. इससे घर में कभी भी धन की कमी नहीं होती है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं. जी न्यूज इसकी पुष्टि नहीं करता.)
ट्रेन्डिंग फोटोज़