हिमाचल प्रदेश में घूमने के लिए बहुत सी जगह हैं. यहां ऐसे कई मंदिर भी हैं जो काफी साल पुराने हैं. ऐसा ही एक मंदिर शिमला में हैं, जिसे लेकर लोगों का कहना है कि यहां हर मनोकामना पूरी होती है.
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समीक्षा कुमारी/शिमला: देव भूमि कहे जाने वाला हिमाचल प्रदेश प्राकृतिक सुंदरता के लिए विश्व मानचित्र पर अपनी एक अलग जगह बनाए हुए है, लेकिन यह देवी-देवताओं के मंदिरों के लिए भी विश्वविख्यात है. प्रदेश में ऐसे बहुत से शहर हैं जिनके नाम देवी देवताओं के नाम पर रखे गए हैं. इस खबर में हम आपको बताएंगे शिमला शहर के बीचो-बीच स्थित कालीबाड़ी मंदिर का इतिहास और यह मंदिर शहरवासियों के लिए श्रद्धा विश्वास की दृष्टि से महत्वपूर्ण क्यों है.
यह है काली बाड़ी मंदिर का इतिहास
बता दें, मां काली बाड़ी मंदिर का निर्माण 1885 में करवाया गया था, लेकिन स्थानीय लोगों की मानें तो यह मंदिर 200 से 300 साल पुराना है जो 'देवी श्यामला' को समर्पित है. कहा जाता है कि शिमला का नाम भी उनके ही नाम पर रखा गया है. 'श्यामला देवी' को 'देवी काली' का ही अवतार माना जाता है. मंदिर में देवी की लकड़ी की एक मूर्ति स्थापित है. दीवाली, नवरात्री और दुर्गापूजा जैसे हिंदू त्योहारों के अवसर पर बहुत से भक्त यहां दर्शन के लिए आते हैं.
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इतिहास के पन्नों में देखें तो काली बाड़ी मंदिर मूल रूप से एक बंगाली ब्राह्मण 'राम चरण ब्रह्मचारी' द्वारा जाखू हिल पर रोथनी कैसल के आसपास के क्षेत्र में बनाया गया था. यह शहर के प्राचीन मंदिरों में से एक है जो देवी काली के नीले रंग की लकड़ी की मूर्ति के साथ एक अद्वितीय हिंदू शैली की वास्तुकला पेश करता है. बाद में, अंग्रेजों ने इसे दूसरे स्थान पर स्थानांतरित कर दिया.
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मां काली इन लोगों की करती हैं देखभाल
ऐसा माना जाता है कि मां काली उन लोगों की देखभाल करती हैं जो पूरी आस्था और गहन समर्पण के साथ उनकी पूजा करते हैं. ऐसे भक्त अपने जीवन में सदैव देवी की कृपा का अनुभव करते हैं. कहा जाता है कि मां तारा, मां पार्वती, मां भवानी, मां कुमार सती, मां रुद्राणी, मां मीनाक्षी, मां चामुंडा और मां हिमावती के रूप में भी उनका आशीर्वाद लिया जा सकता है. कुछ लोगों का मानना है कि मां काली बाड़ी जागती जोत हैं जो अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं. कहा जाता है कि यहां जो मनोकामना मांगता है वो कभी खाली हाथ नहीं लौटता है.
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