What is Sengol? क्या है सेंगोल? जानें भारत के 'राजदंड' का महत्व और इतिहास
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What is Sengol? क्या है सेंगोल? जानें भारत के 'राजदंड' का महत्व और इतिहास

What is Sengol: सेंगोल शब्द का निर्माण तमिल भाषा के शब्द 'सेम्मई' से हुआ है जिसका अर्थ है धर्म, सच्चाई और निष्ठां. 14 अगस्त 1947 को तमिलनाडु की जनता द्वारा जवाहरलाल नेहरू ने सेंगोल स्वीकार किया था. 

What is Sengol? क्या है सेंगोल? जानें भारत के 'राजदंड' का महत्व और इतिहास

What is Sengol and its history? 28 मई को भारत के नए संसद भवन का उद्घाटन होने वाला है और इसके मद्देनज़र गृह मंत्री अमित शाह ने बुधवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा कि नया संसद भवन भारत के लिए इतिहास, सांस्कृतिक विरासत, परंपरा और सभ्यता को आधुनिकता से जोड़ने का प्रयास है. इस दौरान एक ऐतिहासिक परंपरा पुनर्जीवित की जा रही है यानी कि नए संसद भवन में सेंगोल स्थापित किया जाएगा. 

क्या है सेंगोल के चर्चा में आने का कारण? 
 
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 'सेंगोल' (राजदंड) की प्रथा को फिर से शुरू करने की घोषणा की और कहा कि यह अंग्रेजों से भारतीयों को मिली सत्ता का प्रतीक था. अमित शाह ने यह कहा कि पीएम नरेंद्र मोदी इस नए संसद भवन के उद्घाटन से पहले तमिलनाडु से सेंगोल प्राप्त करेंगे. 

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प्रधानमंत्री इसके बाद  इसे नए संसद भवन के अंदर रखेगें. इसे  सेंगोल स्पीकर की सीट के पास रखा जाएगा. सोर्सेज के अनुसार , भारत को स्वर्ण राजदंड मिलने के बाद कलाकृति को एक जुलूस के रूप में संविधान सभा हॉल में भी ले जाया गया था.

गृहमंत्री अमित शाह ने बताया कि इस सेंगोल का बहुत बड़ा महत्व है. उन्होंने आगे कहा, "इस पवित्र सेंगोल को किसी संग्रहालय में रखना अनुचित है. सेंगोल की स्थापना के लिए संसद भवन से अधिक उपयुक्त, पवित्र और उचित स्थान कोई हो ही नहीं सकता. "

तमिल भाषा के 'सेम्मई' शब्द से निकला हुए  इस शब्द का अर्थ; धर्म, सच्चाई और निष्ठा है.  सेंगोल राजदंड भारतीय सम्राट की शक्ति और अधिकार का प्रतीक हुआ करता था. 

जवाहरलाल नेहरू ने 14 अगस्त 1947 को 10:45 बजे के करीब तमिलनाडु की जनता से इस सेंगोल को स्वीकार किया  था. एक तरह कहा जाए तो सेंगोल भारत की आजादी का प्रतीक है. आजादी के समय जब लॉर्ड माउंट बेटन ने पंडित नेहरू से पूछा कि सत्ता हस्तांतरण के दौरान क्या आयोजन होना चाहिए? नेहरू जी ने अपने सहयोगियों से चर्चा की. नेहरू जी ने फिर गोपालाचारी जी से पूछा . गोपालाचारी ने सेंगोल प्रक्रिया के बारे में उन्हें  बताया. इसके बाद इसे तमिलनाडु से मंगाया गया और आधी रात को पंडित नेहरु ने स्वीकार किया. यह अंग्रेजों से इस देश के लोगों के लिए सत्ता के हस्तांतरण का संकेत था. आपको बता दें  इसे पहले इलाहाबाद के एक संग्रहालय में रखा गया था और इसे नए संसद भवन में ले जाया जाएगा.

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