Jakhu Mandir: जानें क्या है शिमला के ऐतिहासिक जाखू मंदिर का इतिहास
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Jakhu Mandir: जानें क्या है शिमला के ऐतिहासिक जाखू मंदिर का इतिहास

Jakhu Mandir Story: राजधानी शिमला में 'जाखू' पहाड़ी पर हनुमान जी का मंदिर है, जिसे 'जाखू मंदिर' कहा जाता है. धार्मिक पर्यटन के अलावा यह स्थान ट्रैकिंग के लिए भी प्रसिद्ध है. शिमला के ऐतिहासिक 'जाखू मंदिर' में हनुमान जी की सबसे ऊंची 108 फुट की मूर्ति स्थापित है. 

Jakhu Mandir: जानें क्या है शिमला के ऐतिहासिक जाखू मंदिर का इतिहास

Jakhu Mandir Story: यूं तो शिमला का मौसम और प्राकृतिक सौंदर्य देश ही नहीं, बल्कि विदेशों में अपनी विशेष पहचान रखता है, लेकिन शिमला में मौजूद जाखू मंदिर लोगों की आस्था का भी केंद्र है. ऐतिहासिक जाखू पर्वत के शिखर पर हनुमान जी का प्राचीन मंदिर दुनियाभर में प्रसिद्ध है. लोग अपनी मनोकामना पूरी होने पर यहां आकर भंडारण करते हैं. बजरंग बली के दरबार में देश-विदेश से हजारों की संख्या में लोग हाजिरी लगाने पहुंचते हैं. 
 
भंडारे में पहुंचे लोगों ने कहा, भगवान के प्रति आस्था भाव है, इसीलिए वे आए दिन यहां माथा टेकने मंदिर आते हैं. लोगों ने कहा, भगवान हनुमान से जो मांगो भगवान सभी मनोकामनाएं पूरी करते है. जाखू धार्मिक स्थान के साथ पर्यटन स्थल भी है. देश-विदेश से लोग यहां मनमोहक नजारे के साथ भगवान हनुमान जी की सबसे ऊंची 108 फुट मूर्ति देखने आते हैं. उन्होंने कहा यहां आकर भंडारे का सेवन करने से तृप्ति हो जाती है. 

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शिमला में रह रहे साहिल शर्मा के परिवारजनों ने पीढ़ी दर पीढ़ी चलती आ रही इस प्रथा को आज भी बरकरार रखा है. उन्होंने रविवार सुबह 8 बजे से लेकर शाम 5 बजे शाम तक भंडारण का आयोजन किया. साहिल शर्मा ने कहा उनके पूर्वजों ने जाखू मंदिर निर्माण में एक अहम भूमिका निभाई है, उन्होंने जमीन भी मंदिर निर्माण के लिए दान की है. कई वर्षों से परिवार जन मिलकर भंडारे का आयोजन करते आ रहें हैं.

क्या है जाखू मंदिर का इतिहास
पौराणिक कथा के अनुसार, रामायण की लड़ाई के दौरान, जब लक्ष्मण को एक तीर से बेहोश कर दिया गया था तब वैद्य सुशेण के अनुरोध पर भगवान राम ने उन्हें ठीक करने के लिए अपने भक्त हनुमान से हिमालय से संजीवनी बूटी लाने के लिए कहा था, जब हनुमान जी संजीवनी बूटी लेने जा रहे थे, रास्ते में उन्होंने एक ऋषि को एक पहाड़ पर ध्यान करते हुए देखा. संजीवनी के बारे में जानकारी के लिए हनुमान जी उस पर्वत पर उतरे और 'यक्ष' ऋषि से मिले.

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यक्ष ऋषि द्वारा निर्देशित पाकर हनुमान जी ने उनसे हिमालय लौटने का वादा किया, लेकिन हनुमान को रास्ते में कालनेमि राक्षस ने युद्ध के लिए ललकारा. राक्षस को युद्ध में परास्त करके हनुमान जी ने संजीवनी प्राप्त की, लेकिन इस कारण हुए विलंब के कारण हनुमान जी यक्ष ऋषि से मिलने वापस नहीं जा सके. जब हनुमान जी नहीं लौटे तो ऋषि चिंतित हो गए तभी हनुमान स्वयं ऋषि के सामने पर्वत पर प्रकट हुए. ऐसा कहा जाता है कि ऋषियों ने उसी स्थान पर हनुमान जी की एक मूर्ति स्थापित की थी. आज भी यह मूर्ति मंदिर में स्थापित है.

ऋषि यक्ष के नाम पर पर्वत को शुरू में यक्ष नाम दिया गया था, लेकिन यह यक्ष के याक, याक के याखू और याखू के जाखू में तब्दील हो गया. इस जगह पर हनुमान के पदचिन्हों को संगमरमर में उकेरा गया है और संरक्षित किया गया है. पर्यटक आज भी इसे देखने आते हैं. 

(समीक्षा कुमारी/शिमला)

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