चुपके चुपके रात दिन आंसू बहाना याद है। हम को अब तक आशिक़ी का वो ज़माना याद है।।
दिल के लुटने का सबब पूछो न सब के सामने। नाम आएगा तुम्हारा ये कहानी फिर सही।।
हंगामा है क्यूं बरपा थोड़ी सी जो पी ली है। डाका तो नहीं डाला चोरी तो नहीं की है।।
ओ पिछली रुत के साथी। अब के बरस मैं तन्हा हूं।।
तुम्हारे ख़त में नया इक सलाम किस का था। न था रक़ीब तो आख़िर वो नाम किस का था।।
महफ़िल में बार बार किसी पर नज़र गयी। हमने बचायी लाख मगर फिर भी उधर गयी।।
फिर उसी रहगुज़ार पर शायद। हम कभी मिल सकें मगर शायद।।
कुछ तो नाज़ुक मिज़ाज हैं हम भी। और ये चोट भी नई है अभी।।
रुक रुक के साज़ छेड़ कि दिल मुतमइन नहीं। थम थम के मय पिला कि तबीअत उदास है।।
फ़ासले ऐसे भी होंगे ये कभी सोचा न था। सामने बैठा था मेरे और वो मेरा न था।।