वृंदावन वाले प्रेमानंद जी महाराज कहते हैं कि इंसान को उन सभी बुरी आदतों का त्याग करना चाहिए, जो दुर्भाग्य या दुर्गति का कारण हैं.
प्रेमानंद महाराज की मानें तो अपने मुंह से खुद की तारीफ करने वालों की बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है और उसके पुण्य भी नष्ट हो जाते हैं. इसलिए ऐसा ना करें.
लालच, छल, कपट करने वालों के जीवन में सुख ज्यादा दिन नहीं टिकता है. लालच इंसान को नष्ट कर देता है. उसका सारा सुख छीन लेता है.
थोड़ा सा अपमान होने पर यदि बहुत ज्यादा क्रोध आने लगे तो यह आपके ही विनाश का कारण बन सकता है. मन में द्वेष कभी न आने दें.
यदि कोई पशु, पक्षी या मनुष्य आपकी शरण में आ जाए तो निश्चित ही आपको उसकी रक्षा करनी चाहिए. ऐसा न करने वालों के पुण्य नष्ट हो जाते हैं.
प्रेमानंद महाराज के मुताबिक, यदि कोई इंसान उत्साहित या प्रेरित होकर पाप कर रहा है तो ऐसे इंसान की दुर्गति होनी भी निश्चित है. ऐसे लोगों को ईश्वर कभी माफ नहीं करते.
प्रेमानंद महाराज कहते हैं मन में पराई स्त्री के साथ संभोग करने की भावना रखने वालों के पुण्य भी नष्ट हो जाते हैं. ये गलती कभी भी न करें.
खुद को श्रेष्ठ और दूसरे को नीच कहने वाले लोगों की भी दुर्गति होती है. जो इंसान विषमता पर विजय प्राप्त करता है, वहीं भगवत प्राप्ति का अधिकारी है.
प्रेमानंद महाराज कहते हैं कि दान देने की बात कहकर मुकर जाना या दान देकर पछताने वालों के भी पुण्य नष्ट हो जाते हैं. ऐसे में कभी भी दान देने का कहकर ना मुकरें.
अपनी आय घरवालों की जरूरतों पर खर्च करें. जरूरतमंद लोगों की मदद करें. ऐसा धन व्यर्थ है, जो किसी के काम न आ सका.
जो लोग दूसरों को नुकसान पहुंचाते हैं. उनकी दुर्गति भी निश्चित है. इसलिए ऐसे गलती कभी भी ना करें.
यहां बताई गई सारी बातें धार्मिक मान्यताओं पर आधारित हैं. इसकी विषय सामग्री और एआई द्वारा काल्पनिक चित्रण का जी यूपीयूके हूबहू समान होने का दावा या पुष्टि नहीं करता.