22 मार्च से चैत्र नवरात्र है. इन नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाएगी. नवदुर्गा बिमारियों का भी अंत करती क्योंकि कुछ औषधियों में इनका वास होता है.
नवदुर्गा का प्रथम सवरूप शैलपुत्री है जो औषधि हरड़ में रहती है. यह आयुर्वेद की प्रधान औषधि है, जो सात प्रकार की होती है.
ब्रह्मचारिणी नवदुर्गा का दूसरा रूप है. जो ब्राह्मी में वास करती है. यह आयु और स्मरण शक्ति को बढ़ाने वाली, और दिल की बिमारियों से बचाती है.
तीसरा रूप चंद्रघंटा, जो चन्दुसूर या चमसूर नामक पौधे में रहती है। यह एक ऐसा पौधा है जो धनिये के समान है। इस पौधे की पत्तियों की सब्जी बनाई जाती है.
नवदुर्गा का चौथा रूप कुष्माण्डा है. इस औषधि से पेठा मिठाई बनती है, इसलिए इस रूप को पेठा कहते हैं. वीर्यवर्धक व रक्त के विकार को ठीक कर पेट रखता है.
नवदुर्गा का पांचवा रूप स्कंदमाता है जिन्हें पार्वती एवं उमा भी कहते हैं। यह अलसी औषधि में विद्यमान हैं। यह वात, पित्त, कफ, रोगों की नाशक औषधि है.
नवदुर्गा का छठा रूप कात्यायनी है. इसे आयुर्वेद में मोइया अर्थात माचिका भी कहते हैं. यह कफ, पित्त, अधिक विकार एवं कंठ के रोग का नाश करती है.
दुर्गा का सप्तम रूप कालरात्रि है. यह नागदौन औषधि में रहतीहै.सभी रोगों की नाशक, मन एवं मस्तिष्क के समस्त विकारों को दूर करने वाली औषधि है.
नवदुर्गा का अष्टम रूप महागौरी है, इसका औषधि नाम तुलसी है जो हर घर में लगाई जाती है.जो रक्त को साफ करती है एवं हृदय रोग खत्म करती है.
नवम सिद्धिदात्री यानि शतावरी - नवदुर्गा का नवम रूप सिद्धिदात्री है, जिसे नारायणी या शतावरी कहते हैं. शतावरी बुद्धि बल एवं वीर्य के लिए उत्तम औषधि है.