'लम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है'...पढ़िए फैज अहमद फैज की चुनिंदा शायरियां

Harsh Katare
Dec 13, 2024

कब ठहरेगा दर्द ऐ दिल कब रात बसर होगी सुनते थे वो आएँगे सुनते थे सहर होगी

न जाने किस लिए उम्मीद-वार बैठा हूँ इक ऐसी राह पे जो तेरी रहगुज़र भी नहीं

और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा

जब तुझे याद कर लिया सुबह महक महक उठी जब तेरा ग़म जगा लिया रात मचल मचल गई

सारी दुनिया से दूर हो जाए जो ज़रा तेरे पास हो बैठे

न गुल खिले हैं न उन से मिले न मय पी है अजीब रंग में अब के बहार गुज़री है

दिल ना-उमीद तो नहीं नाकाम ही तो है लम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है

आप की याद आती रही रात भर चाँदनी दिल दुखाती रही रात भर

तुम्हारी याद के जब ज़ख़्म भरने लगते हैं किसी बहाने तुम्हें याद करने लगते हैं

और क्या देखने को बाक़ी है आप से दिल लगा के देख लिया

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