Rath Yatra 2024: देश भर में आज रथ यात्रा निकाली जा रही है. इसे लेकर के लोगों में काफी ज्यादा उत्साह है. यात्रा की शुरुआत ओडिशा के पुरी से हो रही है. मान्यता है कि इस रथयात्रा के दर्शन करने और इसमें भाग लेने से 1000 यज्ञों का पुण्य मिलता है. हर साल आषाढ़ महीने की शुक्ल पक्ष द्वितीया तिथि को भगवान जगन्नाथ की बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ रथयात्रा निकाली जाती है. छत्तीसगढ़ में एक अनोखी रथ यात्रा निकाली जाती है.
Rath Yatra 2024: देश भर में आज रथ यात्रा निकाली जा रही है. इसे लेकर के लोगों में काफी ज्यादा उत्साह है. यात्रा की शुरुआत ओडिशा के पुरी से हो रही है. मान्यता है कि इस रथयात्रा के दर्शन करने और इसमें भाग लेने से 1000 यज्ञों का पुण्य मिलता है. हर साल आषाढ़ महीने की शुक्ल पक्ष द्वितीया तिथि को भगवान जगन्नाथ की बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ रथयात्रा निकाली जाती है. छत्तीसगढ़ में एक अनोखी रथ यात्रा निकाली जाती है.
छत्तीसगढ़ के कई जगहों पर भव्य तरीके से रथ यात्रा का आय़ोजन होता है. लेकिन बस्तर में रथ यात्रा का पर्व अनोखे तरीके से मनाया जाता है. कई साल पुराना इसका इतिहास है.
बस्तर में रथ यात्रा के दौरान रथ को तुपकी की सलामी दी जाती है. इस पर्व में तुपकी का अपना अलग ही महत्व होता है. हर साल मनाए जाने वाले इस पर्व में गोंचा रथ यात्रा के दौरान पूरे रस्मों रिवाजों के साथ इसे मनाया जाता है.
बस्तर में बंदूक को तुपक कहा जाता है. तुपक शब्द से ही तुपकी शब्द बना हुआ है. तुपकी से लोग भगवान जगन्नाथ का आभार व्यक्त करने के लिए सलामी देते हैं.
तुपकी को पहले फलों से सजाया जाता है. इस फल को बस्तर में पेंग या पेंगु कहा जाता है. ये एक जंगली लता का है जो आषाण के महीने में पाया जाता है.
तुपकी की गोली की रेंज 50 फिट तक होती है. कहा जाता है कि नली के पीछे के तरफ पेंग फल को भरा जाता है. इसे भरने के लिए बांस का भी प्रयोग किया जाता है.
ऐसा कहा जाता है कि बस्तर में रथ यात्रा की शुरुआत जगन्नाथ पुरी के बाद हुआ था. लगभग 607 साल पहले शुरु हुई रथयात्रा का उत्साह आज भी लोगों के अंदर देखा जाता है.
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