Shankaracharya Swami Swaroopanand Saraswati: शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती की पार्थिव देह को आज भू समाधि दी जाएगी. बता दें कि साधु संतों को या तो भू समाधि दी जाती है या फिर उन्हें जल समाधि दी जाती है लेकिन उन्हें अग्नि नहीं दी जाती तो आइए जानते है कि क्या है इसकी वजह...
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नई दिल्लीः ज्योतिर्मठ बद्रीनाथ और शारदा पीठ द्वारका के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को आज भू-समाधि दी जाएगी. स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के अंतिम दर्शनों के लिए आज उनकी पार्थिव देह झोतेश्वर स्थित परमहंसी गंगा आश्रम के गंगा कुंड स्थल पर रखी गई है. दोपहर एक बजे तक अंतिम दर्शन हुए. इसके बाद करीब 4 बजे पार्थिव देह को भू-समाधि दे दी जाएगी. स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने रविवार को परमहंसी गंगा आश्रम में अंतिम सांस ली थी. शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के शिष्य अविमुक्तेश्वरानंद महाराज ने बताया कि गुरुजी भू-समाधि दी जाएगी क्योंकि उन्होंने अंतिम समय में भू समाधि की इच्छा जाहिर की थी.
साधु संतों को क्यों दी जाती है भू-समाधि?
हिंदू धर्म में आम लोगों का अंतिम संस्कार जलाकर किया जाता है. वहीं छोटे बच्चों को दफनाकर अंतिम विदाई दी जाती है. वहीं साधु संतों का अंतिम संस्कार का अलग नियम है. साधु संतों को जल-समाधि या फिर भू समाधि दी जाती है. दरअसल यह माना जाता है कि साधु संतों की आत्मा का उनके शरीर से कोई जुड़ाव नहीं होता क्योंकि अध्यात्मिक ट्रेनिंग, अनुशासन के जरिए उनका भौतिक वस्तुओं और संसार से जुड़ाव खत्म हो चुका होता है, इसलिए उनकी पार्थिव देह को जलाने की जरूरत नहीं है, इसलिए उनकी पार्थिव देह को या तो दफनाया जाता है या फिर जल समाधि दी जाती है.
एक ये भी मान्यता है कि साधु संतों का पूरा जीवन परोपकार के लिए होता है, इसलिए मृत्यु के बाद भी वह अपने शरीर से परोपकार करते हैं और इससे छोटे-छोटे करोड़ों जीवों को आहार मिल जाता है.
बैठाकर दी जाती है भू समाधि
संतों को हमेशा पद्मासन या फिर सिद्धासन की मुद्रा में भू-समाधि दी जाती है. अक्सर गुरु की समाधि के बगल में शिष्य को भू समाधि दी जाती है. शैव, नाथ, दशनामी, अघोर और शाक्त परंपरा में साधु संतों को भू समाधि देने की परंपरा है. शंकराचार्य के निधन के बाद उनके उत्तराधिकारी को लेकर चर्चाएं शुरू हो गई हैं.स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद महाराज का कहना है कि समाधि की प्रक्रिया पूरी होने के बाद संत समाज की मीटिंग की जाएगी.