MP News: आज देश दुनिया में जब गांधी की प्रासंगिकता को लेकर लोग पक्ष और विपक्ष में बंट कर चर्चा कर रहे हैं. ऐसे में मध्य प्रदेश के सतना में एक ऐसा गांव हैं, जहां बाबू के आदर्श हर घर में जिंदा हैं.
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MP News: सतना। आज गांधी के विचारों को लेकर कई चरह की चर्चाएं होती है. ऐसे में कई स्थान ऐसे हैं जहां बापू को संजोकर रखा गया है. ऐसा ही एक गांव मध्य प्रदेश में है. महात्मा गांधी के आदर्शों में चलने वाला सतना जिले का एक ऐसा गांव जिसे गांधीवादी गांव के नाम से आज भी जाना जाता है, इस गांव का नाम सुलखमां है. यहां आज भी गांव के लोग बापू के आदर्शो पर चल रहे हैं.
सुलखमां में लोग दशकों बीत जाने के बाद भी लोग बापू के चरखे को चलाकर वस्त्र तैयार करने का काम करते हैं, जिस चरखे को चलाकर महात्मा गांधी ने देश को आजादी दिलाने में सफलता कार्य किया था, उस चरखे की आवाज आज भी जिले के सुलखमाँ गांव में घर घर में सुनाई देती है।
हर घर में एक चरखा
सतना जिला मुख्यालय से लगभग 90 किलोमीटर दूर बसा स्वावलंबन की प्रथा को बनाए रखने वाले इस गांव सुलखमां के लगभग हर घर में एक चरखा चलाया जाता है. पाल जाति बाहुल्य इस गांव की यह परम्परा महात्मा गांधी के सिखाए पाठ की देन है. यहां के लोगो का कहना है कि चरखा चलाने से बहुत बचत तो नहीं होती है. लेकिन, घर का खर्च किसी तरह से चल जाता है.
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महिलाओं को होता है सहूलियत
यहां सूत काटने की परंपरा बहुत दिनों से है. इस काम करने का एक फायदा यह होता है कि घर की महिलाओं को बाहर काम करने नहीं जाना पड़ता है. गांव में आज भी सवा सौ परिवार महात्मा गांधी के चरखे को सजोये हुए हुए हैं. ग्रामीणों की माने तो इस चरखे से कंबल, टाट पट्टी बैठकी जैसी चीजें बनाई जाती हैं.
इस तरह से होती है तैयार
कंबल को तैयार करने के लिए सबसे पहले भेड़ो के बाल को काटते हैं. उसके बाद उसकी धुनाई करते हैं. धुलाई के बाद माड़ी लगाते हैं और उसे सुखाते हैं. इसके बाद चरखे से उसका सूत बनाते हैं. सूत के बाद कंबल और टाट पट्टी तैयार किया जाता है. इस तरीके से ग्रामीण महात्मा गांधी के चरखे से आज भी कंबल और टाट पट्टी बनाने का कार्य कर रहे हैं. ग्रामीणों का कहना है कि उनके बड़े बुजुर्ग यह कार्य करते चले आ रहे हैं और आज भी लोग इस कार्य को कर रहे हैं.
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