भारत की आजादी के 75 साल पूरे होने पर देश में अमृत महोत्सव के तहत तरह-तरह के कार्यक्रम किये जा रहे हैं. इसे दौर में इतिहास की कहानियां निकलकर सामने आ रही है. इसी इसी कड़ी में हम आज यहां आपको बता रहे हैं कि मध्य प्रदेश का नामकरण कैसे हुआ और इसका प्रस्ताव देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के पास कैसे पहुंचे.
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श्यामदत्त चतुर्वेदी/नई दिल्ली: आजादी के 75 साल पूरे होने पर देश अमृत महोत्सव मना करा है. इस दौर में कई ऐतिहासिक कहानियां सामने आ रही है. ऐसी एक कहानी छुपी है मध्य प्रदेश के नामकरण के पीछे. आज हम यहां आपको बता रहे हैं की चार राज्यों को मिलाकर मध्य प्रदेश का गठन कैसे हुआ और इसका नामकर देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू किस प्रस्ताव पर दिया.
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सेंट्रल प्रोविंस एंड बरार थी पिछली पहचान
आजादी पहले और उसके कुछ समय बाद तक मध्य प्रदेश को सेंट्रल प्रोविंस यानी मध्य प्रांत और बरार के नाम से जाना जाता था. देश की आजादी के बाद सभी रियासतों को स्वतंत्र भारत में मिलाकर एकीकृत किया गया. इसके बाद एक नवंबर 1956 को मध्य भारत को मध्यप्रदेश के तौर पर पहचाना जाने लगा. इसे आजादी के पहले गठित 4 राज्यों को मिलाकर बनाया गया था.
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4 राज्यों से मिलकर बना था मध्य प्रदेश
मध्य प्रदेश का निर्माण तत्कालीन सीपी एंड बरार, मध्य भारत ( ग्वालियर-चंबल ), विंध्यप्रदेश और भोपाल को मिलाकर हुआ था. राज्यों के पुनर्गठन की प्रक्रिया आजादी के बाद शुरू हुई थी. इसके लिए राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन किया गया. आयोग के पास उत्तर प्रदेश जितना बड़ा एक और राज्य बनाने की जिम्मेदारी थी. क्योंकि यह राज्य महाकौशल, ग्वालियर-चंबल, विंध्य प्रदेश और भोपाल के आसपास के हिस्सों को मिलाकर बनाया जाना था.
पंडित नेहरू ने दी मध्य प्रदेश को सहमति
राज्य पुनर्गठन आयोग को सभी सिफारिशों पर विचार-विमर्श करने में करीब 34 महीने यानि ढाई साल लग गए. आखिरकार राज्य पुनर्गठन आयोग ने तमाम अनुशंसाओं के बाद अपनी रिपोर्ट जवाहरलाल नेहरू के सामने रखी, तब उन्होंने इसे मध्यप्रदेश नाम दिया और एक नवंबर 1956 को मध्यभारत को मध्यप्रदेश के तौर पर पहचाना जाने लगा.
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गठन में लगे थे 34 महीने
राज्य पुनर्गठन आयोग के सामने उत्तर प्रदेश जितना बड़ा राज्य बनाने की चुनौती थी. वो भी इन हालातों में जब इसे चार राज्यों को जोड़कर बनाना हो. चुनौती इसलिए भी बड़ी हो जाती है कि पहले से मौजूद इन राज्यों की अपनी एक अलग पहचान थी. इतना ही नहीं इन राज्यों की अपनी एक अलग विधानसभा भी थी. जब इन राज्यों को एक साथ किया जाने लगा तो सभी नेताओं ने अपनी-अपनी सिफारिशें देनी शुरू कर दी.
तीन हिस्सों में था मध्य प्रदेश
मध्य प्रदेश का अस्तित्व ब्रिटिश शासन से ही था. तब इसे सेंट्रल इंडिया के नाम से जाना जाता था. जो पार्ट ए, पार्ट बी और पार्ट सी भाग में बंटा हुआ था. जबकि राजधानी भोपाल में नवाबी शासन था. पार्ट-ए की राजधानी नागपुर थी. इसमें बुंदेलखंड और छत्तीसगढ़ की रियासतें शामिल थी. इसी तरह पार्ट-बी की राजधानी ग्वालियर और इंदौर थी, इसमें मालवा-निमाड़ की रियासतें शामिल थी. वहीं पार्ट सी में विंध्य के इलाके शामिल थे, जिनकी राजधानी रीवा हुआ करती थी. इसके अलावा महाकौशल को अलग क्षेत्र में गिना जाता था, जिसकी राजधानी जबलपुर थी.
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महाराष्ट्र और यूपी को कुछ हिस्सा देकर बना एमपी
पुनर्गठन के समय पार्ट-ए का हिस्सा रहे नागपुर को महाराष्ट्र में शामिल कर दिया गया. इसी तरह बुंदेलखंड का आधा हिस्सा उत्तर प्रदेश में शामिल हो गया. इसके बाद शेष बचे क्षेत्रों को मिलाकर मध्य प्रदेश का गठन किया गया.