बुंदेलखंड में BJP का अभेद्य किला बन चुकी है यह सीट, यहां आठ बार से एक ही नेता जीत रहे चुनाव
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बुंदेलखंड में BJP का अभेद्य किला बन चुकी है यह सीट, यहां आठ बार से एक ही नेता जीत रहे चुनाव

Rahli Vidhan Sabha Seat: बुंदेलखंड अंचल की एक विधानसभा सीट मध्य प्रदेश में बीजेपी का मजबूत किला बन चुकी है. इस सीट पर बीजेपी लगातार आठ चुनाव जीत चुकी है. 

रहली विधानसभा सीट

Rahli Vidhan Sabha Seat: मध्य प्रदेश में एक विधानसभा सीट कांग्रेस के लिए किसी सिरदर्द से कम नहीं है, क्योंकि इस सीट पर 1985 के बाद से कांग्रेस को बीजेपी की कोई काट नहीं मिली है. बुंदेलखंड अंचल की इस सीट पर पिछले आठ चुनावों से एक ही नेता विधायक चुने जा रहे हैं, जिससे वर्तमान विधानसभा में सीनियरटी में उनका पहला नंबर हैं. ऐसे में यह सीट बीजेपी का मजबूत किला बन चुकी है. हम आपको इसी विधानसभा सीट के सियासी समीकरणों के बारे में बताते हैं. 

रहली विधानसभा बीजेपी का गढ़ 

दरअसल, सागर जिले की रहली विधानसभा सीट बीजेपी का गढ़ मानी जाती है. भाजपा के कद्दावर नेता और शिवराज सरकार में सीनियर मंत्री गोपाल भार्गव इस सीट से लगातार आठ विधानसभा चुनाव जीत चुके हैं. खास बात यह है कि कभी इस सीट पर कांग्रेस मजबूत रहती थी, लेकिन 1985 के चुनाव से गोपाल भार्गव यहां अंगद के पैर की तरह जमे हुए हैं, जहां कांग्रेस हर चुनाव में नए प्रयोग किए, लेकिन जीत हमेशा गोपाल भार्गव को ही मिली. ऐसे में इस बार भी रहली सीट चर्चा में हैं, खास बात यह है कि रहली विधानसभा सीट के सियासी समीकरण भी दिलचस्प हैं. 

रहली सीट का सामाजिक ताना-बाना 

बात अगर रहली विधानसभा सीट के सामाजिक ताने-बाने की जाए तो इस सीट पर सबसे ज्यादा ओबीसी वर्ग में आने वाले कुर्मी-पटेल समाज के मतदाता हैं, जिनकी संख्या 35 प्रतिशत से ज्यादा है, इसके बाद ब्राह्म्ण और एससी वोटर्स भी अहम भूमिका में रहते हैं, लेकिन बीजेपी लगातार इस सीट से आठ चुनाव जीत चुकी है, ऐसे में यहां जातिगत समीकरणों की चर्चा तो होती है, लेकिन इसके मायने ज्यादा समझ नहीं आते हैं. 

2018 में वोटर्स का समीकरण 

2018 के विधानसभा चुनाव में रहली विधानसभा सीट पर 2 लाख 20 हजार 675 मतदाता थे, जिनमें पुरुष वोटर्स की संख्या 116,937 थी, जबकि महिला मतदाताओं की संख्या 103,736 थी. रहली विधानसभा सीट पर इस बार भी चुनाव की तैयारियां शरू हो गई हैं. 

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रहली सीट का राजनीतिक इतिहास 

बात अगर रहली विधानसभा सीट के राजनीतिक इतिहास की जाए तो यह सीट शुरू में कांग्रेस के दबदबे वाली सीट मानी जाती थी. पहले यहां कांग्रेस की मजबूत पकड़ थी. लेकिन जनसंघ और बीजेपी की जड़े मजबूत हुई तो इस सीट पर पासा पलटना शुरू हो गया. बात अगर इस सीट के विधायकों की जाए तो 

  • बाला प्रसाद वाजपेयी, 1951, कांग्रेस 
  • मणिभाई पटेल, 1957, कांग्रेस 
  • मणिभाई पटेल, 1962, कांग्रेस 
  • एनपी तिवारी,  1967, भारतीय जनसंघ
  • महादेव प्रसाद हजारी, 1977, कांग्रेस 
  • महादेव प्रसाद हजारी, 1980, कांग्रेस 

1985 से शुरू हुआ बीजेपी का दौर 

1985 के विधानसभा चुनाव से गोपाल भार्गव ने यहां बीजेपी की जड़े जमाई. गोपाल भार्गव 1985 से 2018 तक लगातार आठ विधानसभा चुनाव जीत चुके हैं, इस दौरान उन्होंने वह 20 साल विपक्ष में रहे, जबकि 2003 में बीजेपी की सरकार बनने के बाद वह लगातार मंत्री पद पर रहे हैं. 15 महीने की कमलनाथ सरकार के दौरान नेता प्रतिपक्ष रहे. 

2018 के विधानसभा चुनाव में गोपाल भार्गव के सामने कांग्रेस ने कमलेश साहू को मैदान में उतारा था, जहां गोपाल भार्गव को 93,690 वोट मिले थे, जबकि कांग्रेस के कमलेश साहू को 66,802 वोट मिले थे, इस तरह गोपाल भार्गव ने 26,888 वोटों से यह चुनाव जीता था. 

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