Health Tips For Facial Paralysis : बेल्स पाल्सी को फेशियल पैरालिसिस के नाम से भी जाना जाता है. इसमें व्यक्ति के चेहरे की एक तरफ की मांसपेशियां सख्त हो जाती हैं, जिससे चेहरा हिलता बंद हो जाता है. ये समस्या ठंड में तेजी से बढ़ जाती है.
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Bells palsy: बॉडी पैरालिसिस के बारे में तो हर कोई जानता है लेकिन बेल्स पाल्सी के बारे में कम लोग ही जानते हैं. दरअसल बेल्स पाल्सी को (फेशियल पैरालिसिस) भी कहते है. यह सर्दियों में होने वाली ऐसी बीमारी है जो चेहरे की मांसपेशियों में सिकुड़न आ जाने से होती है. ये समस्या सिर्फ चेहरे पर ही होती है. बेल्स पाल्सी एक ऐसी स्थिति होती है जिससे चेहरे की मांसपेशियों में बहुत अधिक कमजोरी आ जाती है. इससे चेहरे का एक तरफ का हिस्सा लटका हुआ दिखने लगता है. इससे आप एक ही तरफ से हंस पाते हैं. एक ही आंख से देख पाते हैं. गंभीर बात ये है कि यह बीमारी किसी भी उम्र में हो सकती है. यह चेहरे के एक तरफ की मांसपेशियों को कंट्रोल करने वाली नसों में सूजन आने के कारण होती है.
facial paralysis symptoms: मुंह से लार टपकना, चेहरे की प्रभावित साइड के जबड़े के आसपास या कान के पीछे दर्द महसूस होना, प्रभावित साइड के कान से सुनाई देने में परेशानी, स्वाद महसूस करने की क्षमता कम होना, आंसू और लार बनने में बदलाव, चेहरे की एक तरफ मांसपेशियों में थोड़ी कमजोरी महसूस होना, चेहरा लटकने से चेहरे के एक्सप्रेशन करने में परेशानी होने लगती है, आंख बंद करने और मुस्कुराने में परेशानी, आदि जैसे लक्षण दिखने लगते हैं. ये इस बात की तरफ इशारा करते हैं कि आप बेल्स पाल्सी से ग्रसित हो चुके हैं.
facial paralysis 3 treatments: जब आप चेहरे में कमजोरी का सामना करते है, तो तुरंत अपने डॉक्टर से मिलें. बेल्स पाल्सी का इलाज इन चीजों के द्वारा आसानी से हो सकता है.
1. फिजियोथेरेपी: बेल्स पाल्सी के लिए फिजियोथेरेपी से चेहरे की मालिश, एक्सरसाइज की जाती है. साथ ही एक्यूपंक्चर से भी ट्रीटमेंट किया जाता है, जो फेशियल पैरालिसिस में लाभकारी होता है.
2. दवाइयां: किसी अच्छे डॉक्टर से संपर्क कर के इसका आसानी से इलाज किया जा सकता है. कई ऐसी दवाईंया आती हैं, जो इसे कंट्रोल करने में कारगर साबित हुई हैं. इसलिए इससे डरने की जरूरत नहीं है, बल्कि अच्छे अनुभवी डॉक्टर से इसका इलाज सही समय से शुरू करवाला जरूरी है.
3. सर्जरी: यह फेशियल पैरालिसिस की तीसरा ऑप्शन है. यह इलाज तब अपनाया जाता है जब दवाइंया और व्यायाम कारगर साबित नहीं होता है और डॉक्टर के पास सिर्फ सर्जरी का ऑप्शन ही बचता है.