Happy Sawan Shivratri 2022: आज सावन माह की पहली शिवरात्रि है. सावन भगवान शिव का प्रिय महीना होने से इस शिवरात्रि का महत्व बढ़ जाता है. ऐसी मान्यता है कि आज के दिन जो भक्त उज्जैन स्थित बाबा महाकाल के मंदिर में एक बेलपत्र भी चढ़ा देता है तो उसके तीन जन्मों के पाप कट जाते हैं. आइए महाकाल मंदिर के मुख्य पुजारी से जानते हैं शिवरात्रि पर महाकाल मंदिर में होने वाले पूजा और महत्व के बारे में.
Trending Photos
राहुल सिंह राठौड़/उज्जैन: (Sawan Shivratri 2022) प्रत्येक माह में दो बार शिवरात्रि पर्व मनाया जाता है, लेकिन श्रावण माह में आने वाली कृष्ण पक्ष की शिवरात्रि का महत्व बढ़ जाता है, क्योंकि सावन भगवान शंकर का सबसे प्रिय महीना होता है. आज सावन माह की पहली शिवरात्रि है. जिसकी वजह आज सुबह से ही विश्वप्रसिद्धि ज्योतिर्लिंग बाबा महाकाल के दरबार में सुबह से ही भक्तों की लंबी लाइन लगनी शुरू हो गई है. आइए मंदिर के मुख्य पुजारी महेश गुरु से जानते हैं कि महाकाल के मंदिर में क्या है सावन माह की इस शिवरात्रि का महत्व, कैसे की जाती है बाबा महाकाल की पूजा और शुभ मूहर्त का महाकाल मंदिर में कितना होता है असर?
महाकाल मंदिर के मुख्य पुजारी बताते हैं कि श्रावण माह शिव का ही महीना कहलाता है, जिसमें भक्त शिव की सेवा में लीन रहते है. लेकिन सावन माह का सोमवार, प्रदोष व शिवरात्रि ये जो तीन दिन होते है, इनका महत्व अत्यधिक बढ़ जाता है. इस दिन कोई श्रद्धालु सामान्य सच्चे मन से कुछ भी बाबा को अर्पित करता है तो बाबा उसकी हर मनोकामना पूर्ण करते है, बाबा को बेल पत्र बहुत प्रिय है. इसलिए सावन माह में बेलपत्र चढ़ाने का विशेष लाभ मिलता है.
पार्थी पूजा होती है विशेष
पुजारी महेश गुरु बताते है कि शिवरात्रि के दिन पार्थी पूजा का अत्यधिक महत्व होता है. इस दिन बाबा महाकाल की मिट्टी से बनी मूर्ति बनाकर उनकी पूजा की जाती है. ऐसा करने से हर मनोकामना तो पूर्ण होती ही है, साथ ही कई यज्ञों के फल की प्राप्ति भी भक्त को होती है.
महाकाल मंदिर में बेलपत्र का महत्व
पुजारी महेश गुरु बताते है कि ज्योतिर्लिंग के शिवालयों में उर्जा का स्त्रोत बहुत अधिक होता है, ऐसे में भगवान शिव को कोई एक बेलपत्र भी अर्पित करता है तो उसके तीन जन्मों के पापों का सर्वनाश हो जाता है. उन्होंने बताया कि ज्योतिर्लिंग के शिवालय में पूजन करने वालो को पुण्य की कोई कमी नहीं होती है.
मंदिर में नहीं काम करती कोई मुहूर्त
मंदिर के मुख्य पुजारी ने बताया कि मंदिर की जो परिधि है, ऐसा माना जाता है कि शिखर का ध्वज उसकी छांया जहां तक जाती है वहां तक पूरा क्षेत्र पवित्र होता है, और जहां ज्योतिर्लिंग, आत्मलिंग स्वयं शिव विराजमान हो वो भी दक्षिण मुखी शिवलिंग वहां किसी प्रकार का नक्षत्र, मूहर्त काम नहीं करता है.
जानिए दर्शन व्यवस्था
मंदिर में दर्शन व्यवस्था पूर्व की व्यवस्था की तरह की रहेगी श्रद्धलूओ को चार धाम मार्ग की और से हरसिद्धि माता मंदिर होते हुए शंख द्वारा से मंदिर में पहुंचना होगा और उसी रास्ते से बाहर की ओर निकलना होगा. श्रद्धालु प्रवेश मार्ग में रास्ते में ही प्रसादी ले सकेंगे. मंदिर में VIP दर्शन करने वालो को गेट नंबर 4 भस्मार्ती द्वार से प्रवेश दिया जा रहा है.
ये भी पढ़ेंः ये है छत्तीसगढ़ की 'काशी', जहां भगवान राम ने की थी लक्ष्मणेश्वर शिवलिंग की स्थापना