Betul Ke Gobar KE Diye:आत्मनिर्भर भारत की तस्वीर पेश करती महिलाएं बैतूल के पास त्रिवेणी गौशाला में गोबर से बनने वाले उत्पात बनाने में जुटी हुई हैं.
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इरशाद हिंदुस्तानी/बैतूल: चाइनीज दियो को टक्कर देने अब शुद्ध देशी दिए बाजार में उतर गए हैं. वह भी महज मिट्टी के नहीं, बल्कि उस गोबर से बने हुए हैं.जिसके बारे में कहा जाता है कि गोबर रेडिएशन से बचाता है.जी हां, हम बात कर रहे हैं. एक ऐसी गौशाला और उसमें बनाये जा रहे दियो की जो देशी गाय के गोबर से तैयार किये जा रहे हैं.यह नवाचार बैतूल में किया जा रहा है.जहां महिला स्व सहायता समूह की महिलाओं ने दीपावली पर घरों को रोशन करने के लिए गोबर से बने दीपक बाजार में उतार दिए हैं. महिलाएं यहां दीपक,मुर्तियां, मंगलकारी धार्मिक चिन्ह के निर्माण गोबर से कर रही हैं.
आत्मनिर्भर भारत की तस्वीर पेश करती महिलाएं बैतूल के पास त्रिवेणी गौशाला में गोबर से बनने वाले उत्पात बनाने में जुटी हुई हैं.राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत बनाये गए स्व सहायता समूह से जुड़ी 20 से ज्यादा महिलाएं यहां गोबर के दीपक तैयार कर रही हैं. इसके अलावा गोबर से ही धूप बत्ती ,गणेश और लक्ष्मी की प्रतिमाएं,शुभ लाभ और स्वास्तिक की आकृतियों के अलावा गोबर से ही बना मंजन भी बना रही हैं.इस महिला समूह को गोबर से बनने वाले 25 हजार दीपक बनाने का टारगेट दिया गया है.जिसके एवज में वे अब तक 5 हजार दिए तैयार कर चुकी हैं.
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ऐसे बनता है दीपक
3 किलो गोबर, एक किलो मिट्टी और इतने ही प्रीमिक्स के मिश्रण से सौ दीपक तैयार कर रही महिलाएं इसे जैविक उत्पाद मानकर पूरी तल्लीनता से इन्हें बनाने में जुटी हुई है.गोबर को इस मिश्रण में तैयार करने के बाद उसे सांचे में ढालकर सुखा लिया जाता है.फिर उन्हें विभिन्न रंगों में रंगकर दोबारा सुखाने के बाद बिक्री के लिए तैयार कर दिया जाता है.गोबर से तैयार यह दीपक बाजार में चार रुपये की कीमत में उपलब्ध हैं.जबकि इसे बनाने में ढाई रुपये का खर्च आ रहा है.इन दियो को बेचने के बाद पूरी रकम इन्हीं महिलाओ को दे दी जाएगी.
हजारों दियो के ऑर्डर मिलेे
जिला पंचायत बैतूल भी इन महिलाओं को स्वावलंबन की दिशा में ले जाने पूरे प्रयास कर रही है. महिलाओं द्वारा बनाए गए इन दियो और बाकी उत्पादों को भोपाल हाट में बिक्री के लिए भेजा जा रहा है.समूह की अध्यक्ष पुष्पलता सर्ले के मुताबिक इस बार भोपाल,इटारसी से दियो के बल्क में ऑर्डर मिले हैं.जिसके अनुसार दीपक तैयार किए जा रहे हैं.बैतूल में भी इसका आउट लेट बनाया गया है. जहां आम लोगों को दिये बेचे जा रहे हैं.इस दौरान आउटलेट से दिए खरीद रहे ग्राहक जलज पांडे बताते हैं कि वे पिछले दो साल से दीपक खरीद रहे हैं. इसकी वजह यही है कि सीमेंट,कंक्रीट के घरों में गोबर का प्रवेश ही निषिद्ध हो गया है. ऐसे में कम से कम गोबर के दीपक जलाकर पूजन में धार्मिक रीति पूरी कर ली जाती है.
खूबसूरती से आकर्षित हो रहे ग्राहक
आउटलेट पर सेल्स संभाल रही करुणा बारस्कर बताती हैं कि ग्राहक उनके दियो की खूबसूरती से प्रभावित हो रहे हैं.यह देखने में छोटे ,रंग बिरंगे तो है ही गिरने पर टूटते भी नहीं हैं. जबकि वजन में भी हल्के हैं. एंटी रेडियेशन वाले गोबर के गुण के कारण भी लोग इन्हें पसंद कर रहे हैं.जाहिर है कि आत्मनिर्भर भारत की सच्ची तस्वीर पेश करती महिलाओ के इस नवाचार से साफ हो गया है कि गोबर सिर्फ कंडे या उपले और खेतों की खाद बनाने के काम ही नहीं आता इसके और भी उपयोग हो सकते हैं.