1 साल की हुई मोहन सरकार, जो 2 दशकों में न हुआ उसे सालभर में कर दिखाया
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1 साल की हुई मोहन सरकार, जो 2 दशकों में न हुआ उसे सालभर में कर दिखाया

Mohan Govt: मध्य प्रदेश की मोहन सरकार 11 दिसंबर को अपना एक साल पूरा करने जा रही है. एक साल के अंदर ही इस सरकार के फैसलों ने सबका ध्यान अपनी तरफ खींचा हैं. 

मोहन सरकार के एक साल पूरे

CM Mohan Yadav: मध्य प्रदेश में 11 दिसंबर 2023 की तारीख अहम मानी जाती है, क्योंकि इसी दिन बीजेपी ने डॉ. मोहन यादव को मध्य प्रदेश की कमान सौंपने का ऐलान किया था. भाजपा दफ्तर में जब सीएम मोहन यादव के नाम का ऐलान हुआ तो हर कोई हैरान रह गया, लेकिन 13 दिसंबर को बनी मोहन सरकार के एक साल के कार्यकाल ने कई मायनों में यह साबित कर दिया कि डॉ. मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनाने का बीजेपी का फैसला दूरदर्शी था, क्योंकि सीएम मोहन के नेतृत्व में इस सरकार ने मध्य प्रदेश में कई बड़े फैसले किए हैं जो प्रदेश में एक नई ऊर्जा का संचार कर रहे हैं. क्योंकि सीएम मोहन यादव के सामने चुनौतियां कई थी, लेकिन इन चुनौतियों को उन्होंने मजबूतियों में बदलकर अब तक यह साबित किया है कि बीजेपी आलाकमान का उन्हें मुख्यमंत्री बनाने का फैसला सही था. 

मध्य प्रदेश के लिए अहम रहा एक साल 

सीएम मोहन यादव ने 13 दिसंबर 2023 को पीएम मोदी की मौजूदगी में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी संभाली थी. जिसके बाद उन्होंने कई ऐसे फैसले लिए, जिनकी चर्चा जनता के बीच भी हो रही है. शहर से लेकर ग्रामीण व्यवस्था तक हर मोर्चे पर सरकार ने अपना विजन बनाया और काम शुरू किया. जो काम प्रदेश में 20 साल में भी नहीं हुए थे उन पर सरकार ने सबसे ज्यादा फोकस किया, जैसे मध्य प्रदेश और राजस्थान के बीच जल बंटवारे का विवाद सालों से चला आ रहा था, लेकिन सीएम मोहन यादव ने इस पर सबसे ज्यादा फोकस किया और दोनों राज्यों के बीच 25 सालों से चल रहा यह मुद्दा अब सुलझ गया है, जिसका मध्य प्रदेश को बड़ा फायदा होगा. एक साल में सीएम मोहन यादव ने शहरी, ग्रामीण, महिला, बुजुर्ग, किसान से लेकर युवाओं तक पर सबसे ज्यादा फोकस किया है. 

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मध्य प्रदेश में आ रहा निवेश 

सीएम मोहन यादव ने प्रदेश की कमान संभालने के बाद निवेश पर सबसे ज्यादा फोकस किया, इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यह सरकार लगभग हर महीने ही क्षेत्रीय उद्योग सम्मेलन करवा रही है.  इंदौर, उज्जैन, रीवा और सागर जैसे शहरों में इंडस्ट्री कॉन्क्लेव के जरिए करोड़ों का निवेश मध्य प्रदेश में आने वाला है, उज्जैन में हुए उद्योग सम्मेलन में ही 1 लाख करोड़ रुपये का निवेश का प्रस्ताव आया, जिससे यह अभियान सफल माना गया. इसी तरह जबलपुर इंडस्ट्री कॉन्क्लेव में 17,000 करोड़, ग्वालियर में 1.84 लाख करोड़, सागर में 23,000 करोड़ रुपयों के प्रस्ताव आए हैं, जिसमें सागर के सुरखी में खोले जाना वाला डेटा सेंटर और स्टील प्लांट जैसे काम भी शामिल है. रीवा के इंडस्ट्री कॉन्क्लेव में भी 31,000 करोड़ के प्रस्ताव आए थे, जबकि सीएम मोहन यादव के विदेश दौरे पर भी 60,000 करोड़ रुपये के निवेश के प्रस्ताव मध्य प्रदेश को मिले हैं. जिससे इस सरकार की उपयोगिता को समझा जा सकता है. 

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मध्य प्रदेश-राजस्थान के बीच सुलझा जल बंटवारे का मुद्दा 

मध्य प्रदेश और राजस्थान के बीच पिछले 20 सालों से चंबल-कालीसिंध और पार्वती नदी के पानी को लेकर विवाद चल रहा था, सीएम मोहन यादव ने इस मुद्दे पर भी खास फोकस किया, खास बात यह है कि राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने भी इस पर फोकस दिखाया, ऐसे में दोनों राज्यों के सीएमों ने केंद्रीय जल शक्ति मंत्री सीआर पाटिल के साथ बैठकर यह मुद्दा सुलझाने पर फोकस किया, जिससे 20 साल पुराना यह विवाद सुलझ गया है और मध्य प्रदेश और राजस्थान के बीच एमओयू पर भी साइन हो गए हैं. पार्वती-कालीसिंध-चंबल नदीं की लिंकिंग परियोजना के जरिए मध्य प्रदेश को बड़ा फायदा होगा. इस महत्वाकांक्षी परियोजना से मध्य प्रदेश के 11 जिले गुना, शिवपुरी, सीहोर, देवास, राजगढ़, उज्जैन, आगर मालवा, इंदौर, शाजापुर, मंदसौर और मुरैना को फायदा होगा. 2094 गांवों में लगभग 6 लाख हैक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई होगी, इसके अलावा पेयजल और औद्योगिक आपूर्ति के लिए भी प्रदेश में पानी आएगा. 

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महिलाओं 35 प्रतिशत आरक्षण

महिलाओं 35 प्रतिशत आरक्षण देने का मोहन सरकार का फैसला भी ऐतिहासिक माना जा रहा है. इस फैसलें के तहत अब मध्य प्रदेश में सिविल सेवाओं में महिलाओं को 33 प्रतिशत की जगह 35 प्रतिशत पदों पर आरक्षण मिलेगा. इसी तरह मोहन सरकार ने कोयला आवंटन को लेकर भी बड़ा फैसला लिया है, जहां वह केंद्र सरकार से  41000 मेगावाट के थर्मल पावर प्लांट के लिए कोयला आवंटन को स्वीकृति दिलाने में सफल रहे, इससे मध्य प्रदेश में 25000 करोड़ से ज्यादा का इन्वेस्टमेंट आने की संभावना है. जिससे प्रदेश के हजारों लोगों को रोजगार उपलब्ध होंगे. इसके अलावा प्रदेश में 1 लाख नई नौकरियों का ऐलान भी मोहन सरकार ने किया है. जिसके लिए वित्त विभाग ने तैयारियां शुरू कर दी हैं. बीआरटीएस कॉरिडोर को हटवाना, सीपीए को बहाल करना, राज्य परिवहन निगम फिर से  शुरू करने जैसे फैसले भी शामिल हैं. 

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अफसरशाही पर लगाम 

मध्य प्रदेश में सीएम मोहन अफसरशाही को लेकर भी सख्त दिखे. उन्होंने अपने एक साल के कार्यकाल के दौरान कई बड़े फैसले लिए और साफ संदेश देने की कोशिश की कि सरकार के लिए जनता ही सबसे ऊपर है. उनके कुछ फैसले ऐसे रहे जिनकी चर्चा न केवल एमपी में बल्कि देश में भी हुई, 2023 में गुना में बड़ा बस हादसा हुआ था, जिसके बादस सीएम मोहन ने गुना के कलेक्टर तरुण राठी, एसपी विजय खत्री को हटाया और परिवहन आयुक्त संजय झा भी जिम्मेदारी से हटा दिया. इसी तरह शाजापुर में भी तत्कालीन कलेक्टर किशोर कन्याल का 'औकात' वाला वायरल हुआ तो लगे हाथ कार्रवाई हुई और कलेक्टर को हटाया गया. देवास में भी इसी तरह का मामला सामने आया था जहां फसल को लेकर किसान और तहसीलदार आमने-सामने आ गए, तहसीलदार ने किसान के बेटे से कहा 'चूजे हैं ये, अंड़े से निकले नहीं और बड़ी-बड़ी मारने लगे' इसके बाद लगे सीएम मोहन ने यहां भी एक्शन लिया. सिंगरौली के चितरंगी में महिला से जूते के फीते बंधवाने वाले एसडीएम को भी हटाया गया था, जबकि सागर के शाहगढ़ में हुए दीवाल हादसे के बाद यहां के कलेक्टर और एसपी पर भी गाज गिरी थी.

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राजनीतिक जानकारों का भी यह मानना है कि सीएम मोहन यादव ने एक सख्त प्रशासक की छवि अपनाई थी, जिसमें उन्होंने एक तरह से यह तय किया कि जितनी जिम्मेदारी सरकार की जनता के प्रति हैं, उतनी ही जिम्मेदारी प्रशासनिक अधिकारियों की भी जनता के प्रति है. ऐसे में अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए भी सबसे ज्यादा फोकस जनता के लिए ही करना है. 

सियासी मोर्चे पर भी सफल हुए सीएम मोहन 

सीएम मोहन यादव न केवल सरकार चलाने में सफल साबित हुए बल्कि वह राजनीतिक मोर्चे पर भी सबसे सफल रहे. 2023 में सरकार बनने के बाद सीएम मोहन के सामने सबसे बड़ी चुनौती 2024 का लोकसभा चुनाव था, जहां उन्होंने 100 प्रतिशत सफलता का रिजल्ट देकर राजनीतिक पंडितों को भी हैरान कर दिया. मध्य प्रदेश में बीजेपी ने सभी 29 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की थी. यहां तक की देशभर में कांग्रेस के सबसे मजबूत गढ़ों में शामिल रही मध्य प्रदेश की छिंदवाड़ा लोकसभा सीट पर भी बीजेपी ने जीत हासिल की थी, यह काम बड़े-बड़े राजनीतिक धुंरधंर नहीं कर पाए थे, लेकिन मोहन यादव के नेतृत्व में बीजेपी ने 26 साल बाद कांग्रेस का सबसे मजबूत किला ढहा दिया. ऐसे में सीएम मोहन यादव की कार्यकुशलता का लोहा अब उनके विरोध भी मान रहे हैं. हालांकि सरकार को अभी एक साल पूरा हुआ है, फिलहाल उनके सामने कई चुनौतियां है तो कई अवसर भी हैं, जिसमें सरकार कैसे चलती है यह तो समय ही बताएगा. 

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