4 साल में सिर्फ एक बंदर की नसबंदी हुई, 59 लाख की लागत से बना था मंकी स्टरलाइजेशन सेंटर
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4 साल में सिर्फ एक बंदर की नसबंदी हुई, 59 लाख की लागत से बना था मंकी स्टरलाइजेशन सेंटर

रायगढ़ जिले में 2017-18 में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर बंदरों की नसबंदी के लिए मंकी स्टरलाइजेशन सेंटर बनाया गया था. लेकिन चार साल होने के बावजूद अब तक सिर्फ एक बंदर की नसबंदी हुई है.

4 साल में सिर्फ एक बंदर की नसबंदी हुई, 59 लाख की लागत से बना था मंकी स्टरलाइजेशन सेंटर

श्रीपाल यादव/रायगढ़: जिले में बंदरों की नसबंदी के नाम पर लाखों रुपए खर्च करने के बाद अब मंकी स्टरलाइजेशन सेंटर बंद पड़ा हुआ है. जिले में लगभग 59 लाख की लागत से मंकी स्टरलाइजेशन सेंटर का निर्माण पूर्वर्ती सरकार ने करवाया था. ताकि क्षेत्र में बढ़ती हुई बंदरों की आबादी को नियंत्रण किया जा सके. लेकिन लाखो रुपए का बंदरबांट करते हुए जिले के वन विभाग ने मात्र एक बार बंदर की नसबंदी करने के बाद स्टरलाइजेशन सेंटर बंद पड़ा हुआ है.

बंदरों की नसबंदी के लिए बनाया गया स्टरलाइजेशन सेंटर 
बंदरों का उपद्रव भला कौन नहीं जानता, ये जब उत्पात मचाने को आए तो घरों के छत से लेकर खेतों पर खड़ी फसल सब कुछ तबाह कर देते हैं. अब ऐसे उत्पाती बंदरों को भला कौन संभाल सकता है. कभी कभी तो इनका आतंक इतना बढ़ जाता है कि लोग बंदरों को भगाने के लाख उपाय करते हैं. लेकिन ये सब कुछ कुछ दिनों या हफ्तों के लिए होता है और फिर बंदरों का आतंक शुरू हो जाता है. बंदरों के आतंक को कम करने के लिए रायगढ़ जिले में अनोखा प्रयोग किया गया, 2017-18 में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर बंदरों की नसबंदी के लिए स्टरलाइजेशन सेंटर बनाया गया, तब अधिकारी और जिम्मेदारों ने यही सोचा था कि बंदरों की आबादी कम हो जाएगी तो इनका उपद्रव भी कम हो जाएगा, अब 4 साल बीत जाने के बाद ना तो बंदरों का उत्पात कम हुआ और ना ही बंदरों की नसबंदी हो रही है, सरकार के करोड़ों रुपए यहां बंदरों में ही बट गए, इसे वर्तमान सरकार की नाकामी बता रही है तो वहीं वन विभाग के अधिकारी पशु चिकित्सक की कमी होने का ठीकड़ा फोड़ रहे हैं.

जानिए क्या थी योजना
दरअसल पूरा मामला यह है कि रायगढ़ जिले में पूर्ववर्ती भाजपा सरकार ने पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर रायगढ़ वन मंडल अंतर्गत इंदिरा विहार में मंकी स्टेरलाइजेशन सेंटर बनाया गया था, इस प्रोजेक्ट में सरकार के 59 लाख रूपए  लगाकर गए थे, परियोजना का मुख्य उद्देश्य था बंदरों का धरपकड़ करके नसबंदी करना था, जिससे बंदरों की आबादी संतुलित रहे, पूरा प्रोजेक्ट इंदिरा बिहार के मध्य भवन बनाकर तैयार किया गयाा. राज्य के पूर्वरती सरकार ने इस सेंटर के भवन को बनाने में लगभग 59 लाख रुपए लग गए थे. साथ ही मशीनरी और पिंजड़े खरीदने में करोड़ों लग गए थे. करोड़ों खर्च करने के बाद 4 साल में केवल एक बंदर की नसबंदी हो सकी है.

जानिए क्या कहा वन विभाग के अधिकारी ने
वन विभाग की अधिकारी ने कहा कि पहले जिस वेटरनरी डॉक्टर को नियुक्त किया गया था. वह संविदा में था. रेगुलर नौकरी लगने पर उसने यहां काम छोड़ दिया. जिसके बाद से वन विभाग को अब तक कोई वेटरनरी डॉक्टर नहीं मिल पाया है. इसलिए बंदरों की नसबंदी नहीं हो रही है. पूरे मामले में वन विभाग के जानकार ने प्रदेश कांग्रेस सरकार पर लापरवाही और पूर्व के शासकीय योजनाओं की अवहेलना करने का आरोप लगाया है. वर्तमान सरकार भाजपा द्वारा किए गए विकास कार्यों की अवहेलना कर रही है. यही वजह है कि करोड़ों खर्च करने के बाद इस परियोजना द्वारा आतंकी बंदरों से लोगों को राहत मिलती है. ऐसे परियोजना को सरकार कबाड़ बना रही है.

 

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