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Kukurdev Mandir: अनोखा मंदिर जहां होती है कुत्ते की पूजा, दिग्गज भी झुकाते हैं सिर

Kukurdev Mandir of Khapri Balod: विभिन्न संस्कृती और मान्यताओं वाले भारत के छत्तीसगढ़ में एक ऐसा मंदिर है, जहां कुत्ते की पूजा की जाती है. इस मंदिर के निर्माण की कहानी भी बड़ी रोचक है और लोगों की इसमें गहरी आस्था है. यहां आने वाला हर शख्स मंदिर में सिर झुकाने जरूर आता है.

 

छत्तीसगढ़ के बालोद जिले में है मंदिर

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छत्तीसगढ़ के बालोद जिले में है मंदिर

छत्तीसगढ़ के बालोद जिले में है मंदिर (kukurdev mandir of khapri balod) अनोखा मंदिर मंदिर छत्तीसगढ़ के बालोद जिला मुख्यालय से महज 6 किलोमीटर खपरी गांव में स्थित है. इस प्राचीन मंदिर को कुकुरदेव मंदिर से जाना जाता है. यह मंदिर किसी देवता को नहीं बल्कि कुत्ते को भी समर्पित है.

दर्शन को लेकर है ये मान्यता

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दर्शन को लेकर है ये मान्यता

दर्शन को लेकर है ये मान्यता (dog worship) कुकुरदेव मंदिर में कुत्ते के साथ शिवलिंग की भी पूजा की जाती है. मान्यता है कि कुकुरदेव का दर्शन करने से न कुकुरखांसी (kukurkhansi) होने का डर रहता है और न ही कुत्ते के काटने (dog bite) का खतरा रहता है.

राजनेता यहां झुकाते हैं सर

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राजनेता यहां झुकाते हैं सर

राजनेता यहां झुकाते हैं सर (kukurdev temple mystery) कोई राजनेता इस क्षेत्र में आता है तो यहां दर्शन करने जरूर पहुंचता है. कुछ दिनों पहले बालोद दौरे पर आए छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी यहां पहुंचे थे. इस दौरान उन्होंने कुकुरदेव मंदिर में बेजुबान जानवर की वफादारी के आगे सिर झुकाया था और लोक आस्था को नमन करते हुए प्रदेश की सुख समृद्धि और खुशहाली की कामना की.

फणी नागवंशीय शासकों ने कराया था जीर्णोंद्धार

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फणी नागवंशीय शासकों ने कराया था जीर्णोंद्धार

फणी नागवंशीय शासकों ने कराया था जीर्णोंद्धार (kukurdev temple renovation) इस ऐतिहासिक और पुरातत्वीय मंदिर का निर्माण फणी नागवंशीय शासकों द्वारा 14वीं-15वीं शताब्दी के बीच कराया गया था. गर्भगृह मे जलधारी योनिपीठ पर शिवलिंग प्रतिष्ठापित है. ठीक उसी के पास स्वामी भक्त कुत्ते की प्रतिमा भी स्थापित है. लोगों की अटूट आस्था इस स्थल के प्रति है.

कुकुर देव मंदिर वास्तव में एक स्मारक

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कुकुर देव मंदिर वास्तव में एक स्मारक

कुकुर देव मंदिर वास्तव में एक स्मारक (kukurdev mandir facts) वास्तव में कुकुर देव मंदिर एक स्मारक है, जिसे एक वफादार कुत्ते की याद में बनाया गया था बाद में मंदिर का रूप ले लिया और लोक आस्था से जुड़ गया. इस मंदिर के पीछे एक बंजारे और उससे पालतू कुत्ते की कहानी जुड़ी है.

क्या है मंदिर के निर्माण की कहानी?

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क्या है मंदिर के निर्माण की कहानी?

क्या है मंदिर के निर्माण की कहानी? (kukurdev mandir story) लोक मान्यताओं के अनुसार, सदियों पहले एक बंजारा एपने कुत्ते और परिवार के साथ यहां आया था. गांव में एक बार अकाल पड़ गया तो बंजारे ने गांव के साहूकार से कर्ज लिया, लेकिन वो कर्ज वो वापस नहीं कर पाया. ऐसे में उसने अपना वफादार कुत्ता साहूकार के पास गिरवी रख दिया और वहां से चला गया.

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कुछ समय बाद साहूकार के यहां चोरी हो गई, लेकिन कुत्ते को उस लूटे हुए माल के बारे में पता चल गया और वो साहूकार को वहां तक ले गया. कुत्ते की बताई जगह पर साहूकार ने गड्ढा खोदा तो उसे अपना सारा माल मिल गया. इससे खुश होकर उसने कुत्ते के गले में पर्ची लगाकर उसे उसके वास्तिक मालिक के पास भेज दिया.

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कुत्ता जैसे ही बंजारे के पास पहुंचा, उसे लगा कि वो साहूकार के पास से भागकर आया है. इसलिए उसने गुस्से में आकर कुत्ते को पीट-पीटकर मार डाला, लेकिक जब उसने पर्ची देखी तो उसे पछतावा हुआ. उसके बाद उसने उसी जगह कुत्ते को दफना दिया और उस पर स्मारक बनवा दिया, जो बाद में मंदिर बन गया. इसे की जीर्णोंद्धार बाद में नागवंशीय शासकों ने कराया.

मंदिर के नजदीक ही है बंजारे के नाम का गांव

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मंदिर के नजदीक ही है बंजारे के नाम का गांव

मंदिर के नजदीक ही है बंजारे के नाम का गांव बताया जाता है कि खपरी गांव के कुकुरदेव मंदिर के सामने की सड़क को पार करते ही माली धोरी गांव शुरू होता है. इस गांव का नाम माली धोती बंजारा के नाम पर पड़ा. यहीं वफादार कुत्ते का वास्तिक माली था और साहूकार का कर्ज न चुका पाने के बाद वो इस गांव में रहने लगा था.

नवरात्र और महाशिवरात्रि में लगती है भक्तों की भीड़

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नवरात्र और महाशिवरात्रि में लगती है भक्तों की भीड़

नवरात्र और महाशिवरात्रि में लगती है भक्तों की भीड़ नवरात्र के दौरान लोग यहां मनोकामना ज्योतिकलश प्रज्‍वल‍ित करते हैं. लोग इस ज्योतिकलश को वफादारी की जोत भी मानते हैं. महाशिवरात्रि के दौरान यहां विशेष पूजा अर्चना भी की जाती है. सावन में यहां लोग भगवान शिव की पूजा करने के लिए आते है इस दौरान गांव में मेले जैसा माहोल होता है.