क्या होता है पॉलीग्राफ और नार्को टेस्ट, कैसे साबित होता है आरोपी का गुनाह?
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क्या होता है पॉलीग्राफ और नार्को टेस्ट, कैसे साबित होता है आरोपी का गुनाह?

डेक्सटर मर्डर केस के आरोपी आफताब के पॉलीग्राफ टेस्ट को मंजूरी मिलने के बाद पॉलीग्राफ और नार्को टेस्ट की चर्चा है. पर क्या आप जानतै हैं ये टेस्ट्स क्या होते हैं, कैसे, क्यों और कब किये जाते हैं. इसकी पूरी जानकारी के लिए पढ़िए इस रिपोर्ट को.

क्या होता है पॉलीग्राफ और नार्को टेस्ट, कैसे साबित होता है आरोपी का गुनाह?

नई दिल्ली: दिल्ली में श्रद्धा वाकर मर्डर (Shraddha Walker Murder Case) केस में आरोपी आफताब (Aftab Poonawala) के नार्को टेस्ट को कोर्ट की मंजूरी मिलने के बाद यह काफी चर्चा में है. ऐसे टेस्ट्स को अमानवीय माना जाता है और केवल उन्हीं मामलों में इसे मंजूरी मिलती हैं जिनमें जुर्म या तो मानवता की सभी हदों से परे हो या आरोपी पुलिस की जांच में सहयोग ना कर रहा हो. लेकिन पॉलीग्राफ या नार्को टेस्ट कैसे होते हैं, इनकी सटीकता कितनी होती है, कब हुई थी ऐसे टेस्टस् की शुरुआत और क्या ये टेस्ट्स कोर्ट में सबूत के तौर पर मान्य हैं भी या नहीं? 

पॉलीग्राफ या लाई डिटेक्टर टेस्ट (What is Polygraph Test)
लाई डिटेक्टर टेस्ट में अभियुक्त के रक्तचाप, धड़कन और सांसें जैसे अनेक शारीरिक गतिविधियों को माप के रिकॉर्ड किया जाता है. ऐसा माना जाता है कि जब कोई झूठ बोल रहा होता है तो उसकी शारीरिक प्रतिक्रियाएं सामान्य से अलग होती हैं. एग्ज़ामिनर एक सवाल पूछता है और बदले में आरोपी द्वारा दिए गए हर एक उत्तर और प्रतिक्रिया को माप कर न्यूमेरिकल वैल्यू देता है जो ये बताता है कि व्यक्ति सच बोल रहा है, झूठ बोल रहा है या अपने जवाब को लेकर सुनिश्चित नहीं है.  

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कब हुई लाई डिटेक्टर टेस्ट की शुरुआत?
पॉलीग्राफ टेस्ट की शुरुआत 19वीं सदी में हुई थी, जब इटैलियन क्रिमिनोलॉजिस्ट सीज़ेर लॉम्ब्रोसे ने एक अपराधी के रक्तचाप को पूछताछ के दौरान मापा था. साल 1914 और साल 1921 यानी की 20वीं सदी में अमेरिका के दो मनोवैज्ञानिक विलियम मार्सटन और कैलिफोर्निया के पुलिस अफसर जॉन लार्सन ने पॉलीग्राफ टेस्ट लेने के लिए दो डिवाइसों का निर्माण किया था.

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नार्को एनालिसिस टेस्ट (Narco Test Analysis)
नार्को टेस्ट में अभियुक्त को सोडियम पेन्टोथाल या सोडियम अमायटल नामक एक ड्रग दिया किया जाता है. इस ड्रग को ट्रूथ सीरम (Truth Serum) के नाम से भी जाना जाता है. इसी ड्रग की डोज़ को बढ़ा के सर्जरी के दौरान दिया जाता है जो कि एनसथीसिया के रूप में काम करता है. सोडियम पेन्टोथाल से व्यक्ति हिप्नोटाइज़ हो जाता है, और ऐसा माना जाता है कि बेहोशी की हालत में इंसान सच ही बोलता है. 

कब हुई नार्को एनालिसिस टेस्ट की शुरुआत?
नार्को एनालिसिस शब्द को सबसे पहले हॉर्सले ने यूज़ किया था. साल 1922 में अमेरिका के टेक्सॉस राज्य में रॉबर्ट हाउस ने सबसे पहले ट्रूथ सीरम का उपयोग किया. इसके बाद इस ड्रग का उपयोग द्वितीय विश्व युद्ध में जानकारी निकालने कि लिए किया जाने लगा.

कितने सही होते हैं पॉलीग्राफ, नार्को एनालिसिस टेस्ट? (Success Rate of Poly and Narco Test)
पॉलीग्राफ या नार्को एनालिसिस टेस्ट दोनों की ही सटीकता हमेशा से विवादों के घेरे में रही है. कई मामलों में ऐसा हुआ है कि अभियुक्त एग्जामिनर्स को गुमराह कर टेस्ट के नतीजों को अपने मन-माफिक प्रभावित करने में सफलता हासिल की है. शत-प्रतिशत सटीकता ना होने के कारण ऐसे टेस्ट्स की आलोचना होती रहती है. मेडिकल साइंस ने ऐसे टेस्ट्स को पूरी तरह से मान्यता नहीं प्रदान की है. 

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क्या कोर्ट में मान्य हैं ऐसे टेस्ट्स?
कोर्ट में पॉलीग्राफ या नार्को एनालिसिस टेस्ट के नतीजों को मुजरिम के कबूलनामा के तौर पर पेश नहीं किया जा सकता है, हालांकि साल 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक के एक मामले में कहा था कि आरोपी की अनुमति से लिए गए टेस्ट में मिली जानकारी को कोर्ट में सबूत के तौर पर कोर्ट में पेश किया जा सकता है.

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