Sindur Khela 2022: दुर्गा पूजा पर सिंदूर खेला की परंपरा है कई सालों पुरानी, बेहद रोचक है इसका इतिहास
Advertisement
trendingNow0/india/delhi-ncr-haryana/delhiharyana1380465

Sindur Khela 2022: दुर्गा पूजा पर सिंदूर खेला की परंपरा है कई सालों पुरानी, बेहद रोचक है इसका इतिहास

Sindur Khela 2022: हिंदू धर्म के अनुसार, दुर्गा पूजा में बंगालियों में सिंदूर खेला होता है. जानते हैं सिंदूर खेला कब और क्यों खेला जाता हैं और क्या है इसके पीछे का इतिहास. जानें हमारे साथ. 

Sindur Khela 2022: दुर्गा पूजा पर सिंदूर खेला की परंपरा है कई सालों पुरानी, बेहद रोचक है इसका इतिहास

Sindur Khela 2022: देशभर में इन दिनों नवरात्रि (Navratri 2022) की धूम चारों तरफ देखने को मिल रही है. नवरात्रि के नौ दिनों तक मां के नौ रूपों की पूरे विधि-विधान के साथ पूजा अर्चना की जाती है. इसी के साथ मां भक्त नौ दिनों तक उपवास भी रखते हैं. इस दौरान पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजन का आयोजन किया जाता है. पश्चिम बंगाल में भी हर जगह भव्य पंडाल लगाए जाएगा.

हिंदू धर्म के अनुसार, नौ दिनों के बाद मां दुर्गा की मुर्ति को विसर्जन के लिए ले जाया जाता है, उस दिन पूरे बंगाल में सिंदूर (Sindur Khela) या सिंदूर उत्सव मनाया जाता है. इस दिन विजयदशमी भी आयोजित की जाती है. इस दिन सभी सुहागिन महिलाएं मां दुर्गा को पान के पत्ते से सिंदूर चढ़ाती हैं और मिठाई खिलाती है. इसके बाद सभी महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाती हैं और जश्न मनाती हैं.

ये भी पढ़ेंः कौन था मेघनाथ जिसका वध भगवान राम भी नहीं कर सकते थे, ऐसी क्या शक्ति थी उसके पास?

मायके से विदा होने पर मां दुर्गा को लगाया जाता है सिंदूर

कहते है कि जिस दिन मां दुर्गा मायके से विदा होती है तो उनकी सिंदूर से मांग भरी जाती है. इतना ही नहीं सभी महिलाएं आपस में सिंदूर खेलती हैं. इस दौरान सभी महिलाएं कामना करती हैं कि एक-दूसरे की शादीशुदा जिंदगी  सुखद और सौभाग्यशाली रहे. तो चलिए आपको बताते हैं कि सिंदूर खेला की परंपरा की शुरुआत कब और कैसे हुई.

450 साल पहले शुरू हुई ये परंपर

कहते हैं कि सिंदूर लगाने की यह परंपरा आज की नहीं, बल्कि सदियों पुरानी है क्योंकि मां दुर्गा साल में एक बार अपने मायके आती है और इस दौरान वो 10 दिनों तक अपने मायके में ही रहती है, जिसके बाद से ही यह 10 दिनों का त्योहार दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है. पहली बार ये रस्म पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश के कुछ हिस्सों में शुरू हुई थी.

यहां रहने वाली महिलाओं ने 450 साल पहले मां दुर्गा, सरस्वती, कार्तिकेय, लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा के बाद उनका श्रृंगार किया. उनके विसर्जन से पहले उन्होंने मीठे व्यंजनों का भोग लगाया. इसके बाद उन्होंने खुद का भी सोलह श्रृंगार किया. इसके बाद उन्होंने जो सिंदूर मां को चढ़ाया जाता है उससे अपनी भी मांग भरी. मान्यता थी कि इससे मां दुर्गा उनके सुहाग की रक्षा करेंगी.

ये भी पढ़ेंः 11 Famous Durga Puja Pandals in Delhi: इन 11 जगहों पर सजा है मां का 'प्यारा दरबार', क्या आपने देखा?

जानें, कौन देवी बोरोन

मान्यता है कि जब सिंदूर खेला खत्म हो जाता है उसके बाद पूजा के बाद देवी बोरोन किया जाता है. यहां पर सभी विवाहित महिलाएं देवी को अंतिम अलविदा कहने के लिए लाइन में लगी होती हैं. इस दौरान महिलाएं दोनों हाथों में पान का पत्ता और सुपारी लेती हैं और मां के चेहरे को पोंछती हैं. इसके बाद मां दुर्गा को सिंदूर लगाती है. कहते हैं कि मां दुर्गा के साथ एक पोटली बांध के रखी जाती है, जिसमें कुछ खाने-पीने की चीजें होती हैं, ताकि उन्हें देवलोक पहुंचने में किसी भी तरह की कोई परेशानी ना हो.